मुंबई: लॉकडाउन (Lockdown) में फंसे प्रवासी मजदूरों (Migrant Workers) के मुद्दे पर राजनीति गरमा गई है. राजनीतिक दलों की ओर से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं. इस संबंध में शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ ने यूपी की योगी आदित्यनाथ और बिहार की नितीश कुमार सरकार पर निशाना साधा है. सामना ने कहा कि योगी सरकार ने मजदूरों के मामले में जहां 'यू-टर्न' ले लिया है वहीं बिहार सरकार ने भी हाथ खड़े कर दिए. मजदूरों के राजनीतिक मालिक मास्क लगाकर घरों में बैठे हैं.  


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सामना के मुताबिक, यूपी और बिहार के ज्यादातर मजदूर मुंबई सहित महाराष्ट्र के कई अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं. श्रमिकों की संख्या करीब 25-30 लाख होगी. लेकिन सीएम योगी का कहना है कि श्रमिकों की कोरोना जांच करो और उसके बाद ही भेजो, ऐसी टेढ़ी राजनीति को अपनाकर योगी सरकार ने अपनों को संकट में धकेल दिया है. दूसरे हिंदी भाषी राज्यों ने भी इसी प्रकार की नीति अपनाई है जिससे सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में अटके मजदूरों पर भी संकट आ गया है.


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सामना का कहना है कि बिहार और यूपी के श्रमिकों का महाराष्ट्र सरकार ध्यान रखती रही है. लेकिन जब वह अपने घर वापस लौटना चाहते हैं तो, उन्हें उसकी अनुमति नहीं दी जा रही है. बिहार सीएम नीतीश कुमार पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए सामना ने लिखा- “बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या योगी उन्हें अपने लोगों के साथ ऐसा निर्दयी व्यवहार नहीं करना चाहिए. यह सरकारें अमीर और गरीब के बीच भेदभाव करती हैं.”


राजस्थान के कोटा से छात्रों की वापसी को लेकर योगी सरकार पर निशाना साधते हुए सामना ने आगे लिखा- “योगी सरकार ने राजस्थान के कोटा में अटके हुए अपने विद्यार्थियों के लिए सैकड़ों बसें भेजीं और उन्हें बिना जांच के ही वापस ले आए क्योंकि वे अमीरों के बच्चे थे, लेकिन मजदूरों का कोई सहारा नहीं है. मजदूरों के लिए नियम और शर्तें बताई जा रही हैं. श्रमिकों के लिए रेलवे और बस टिकट कौन खरीदेगा, जैसे सवाल भी उठ रहे हैं.”


मजदूरों के 'वोट बैंक' पर निशाना साधते हुए सामना ने आगे लिखा- ''कल तक ये मजदूर वर्ग कई राजनीतिक पार्टियों और नेताओं का ‘वोट बैंक’ बना हुआ था और मानो मुंबई-महाराष्ट्र का विकास इन्हीं के कारण हुआ है, ऐसा कहा जा रहा था. अब इस मुंबई के बाहरी मालिक संकट के समय पलायन कर रहे हैं और उनके राजनीतिक मालिक और अभिभावक मुंह में मास्क लगाकर घरों पर बैठे हैं. इन श्रमिकों के लिए अब कोई नहीं खड़ा हो रहा.''


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