Prashant Kishor Slams Nitish Kumar and Tejashwi Yadav: बिहार के कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की जोड़ी अब सवालों के घेरे में है. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी उन पर निशाना साधा है. प्रशांत किशोर ने कहा कि आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के बिना उनके बेटे तेजस्वी यादव कुछ भी नहीं हैं. किशोर ने कहा कि जब से ये नई जोड़ी यानी नीतिश कुमार और तेजस्वी यादव गठबंधन कर सत्ता में आए हैं, तब से अभी तक 3 उपचुनाव हुए हैं और इसमें से दो में इस जोड़ी को हार मिली है. 


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प्रशांत किशोर इन दिनों जन सुराज पदयात्रा कर रहे हैं. उन्होंने अपनी यात्रा के 69वें दिन बिहार के नए गठबंधन पर जनता के साथ धोखा करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि इनके (नीतीश-तेजस्वी) सत्ता में आने के बाद हुए तीन उपचुनावों में से एक ही में जीत मिली है. वो भी इसलिए क्योंकि वो बाहुबली की सीट थी.


'उपचुनाव जीत नहीं पाते और राजनीति सिखाते हैं'


उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि ये उपचुनाव तो जीत नहीं पाते और मुझे सिखाते हैं कि चुनाव कैसे लड़ा जाता है. उन्होंने पिछले समय को याद दिलाते हुए कहा कि अगर साल 2015 के चुनावों में मैं इनका मददगार नहीं होता तो क्या इन्हें जीत मिल पाती? इस दौरान उन्होंने तेजस्वी यादव पर कहा कि उन्हें राजनीति की समझ ही कितनी है? वो साल 2015 में पहली बार विधायक बने. इससे पहले क्या उन्हें कोई जानता भी था? इन्हें बिहार के लोगों ने नहीं चुना है.


तेजस्वी की पेन टूट गई या स्याही सूख गई?


प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव के उस वादे को भी याद दिलाया जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार बनने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में 10 लाख नौकरी की व्यवस्था कर देंगे. किशोर ने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या अब तेजस्वी की पेन टूट गई है या उनके पेन की स्याही सूख गई है?


बिहार के पैसे से हो रहा गुजरात-महाराष्ट्र का विकास


किशोर ने बिहार की चौपट अर्थव्यवस्था के लिए भी नीतीश और लालू के कार्यकाल को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि बिहार में सरकारी नाकामी की वजह से राज्य बर्बादी के कागार पर है. यहां के पैसों से गुजरात और महाराष्ट्र में इंडस्ट्री फल-फुल रहे हैं. बिहार के लोग वहां मेहनत-मजदूरी कर रहे हैं.


उन्होंने कहा कि बिहार में काम के लिए बैंक से कर्ज नहीं मिल पाता. आलम ये है कि जहां राष्ट्रीय स्तर पर क्रेडिट डिपोजिट का आंकड़ा 70 फीसदी है, वहीं बिहार में यह करीब 35 फीसदी है. लालू यादव के कार्यकाल में ये 20 फीसदी से भी नीचे था. क्रेडिट डिपोजिट का मतलब ये है कि लोग जिस पैसे को बैंकों में जमा करते हैं, बिहार में उसका सिर्फ 35 से 40 परसेंट हिस्सा ही कर्ज के तौर पर मिल पाता है. वहीं, विकास के रास्ते पर दौड़ने वाले राज्यों में ये औसत 90 परसेंट तक है.


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