चंडीगढ़: ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद हरियाणा सरकार (Haryana Government) द्वारा 17 जिलों में इंटरनेट बैन (Internet Ban) की घोषणा करने के फैसले पर पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab-Haryana High Court) ने आपत्ति जताई है. जिसके बाद कोर्ट ने नोटिस जारी कर केंद्र और हरियाणा सरकार से सोमवार तक जवाब मांगा है.


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ये याचिका अंबाला, हिसार और सोनीपत के तीन वकीलों ने डाली थी. हरियाणा सरकार के वकील ने कोर्ट में दलील दी थी कि जिला अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही नहीं बल्कि फिजिकल हियरिंग भी हो रही है तो उनको इंटरनेट की क्या जरूरत है. इस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आप भी तो इंटरनेट के माध्यम से ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश हो पा रहे हो. कोर्ट ने केंद्र सरकार और हरियाणा से पूछा है कि किन कारणों की वजह से हरियाणा में इंटरनेट सेवाएं सस्पेंड की गई?


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महज संभावनाओं पर इंटरनेट बंद करना गलत


याचिकाकर्ता संदीप कुमार सिंहमार, पंकज त्यागी और अन्य ने तर्क दिया कि किसान आंदोलन के दौरान हरियाणा प्रदेश में कहीं भी उग्र प्रदर्शन या हिंसा नहीं हुई है. पूरे प्रदेश में शांतिपूर्ण आंदोलन चल रहा है. लेकिन महज संभावनाओं को देखते हुए 17 जिलों में मोबाईल इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाना तर्कसंगत नहीं है. वर्तमान में जब केंद्र सरकार डिजिटल इंडिया का सपना संजो रही हो तब बिना किसी ठोस वजह के पूर्ण रूप से इंटरनेट सेवा बंद करना किसी अन्याय से कम नहीं है. उन्होंने कहा कि इंटरनेट आज के समय में हर किसी नागरिक की दिनचर्या का हिस्सा बन गया है.


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डिजिटल इकोनॉमी को भी हुआ नुकसान


याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा कि न केवल आम आदमी की दैनिक क्रियाएं बल्कि कॉरपोरेट व सरकारी क्षेत्र की सभी सेवाएं ऑनलाइन हैं. इसके अलावा मोबाइल इंटरनेट बंद होने से डिजिटल इकोनॉमी को भी भारी नुकसान हो रहा है. वकील आरएस बैंस ने कहा है कि सरकार ने बिना सोचे समझे सोशल मीडिया पर किसान आंदोलन से संबंधित अफवाहें फैलने व फेक न्यूज फैलने की संभावना जताते हुए इंटरनेट सेवाओं को पब्लिक एमरजेंसी-पब्लिक सेफ्टी एक्ट-2017 के नियम-2 के बहाने से बंद कर दिया. जबकि इसी इंटरनेट से कई जरूरी सेवाएं भी चल रही है, जिनमें शिक्षा, व्यापार, सरकारी सेवाएं भी शामिल है. फिलहाल मामले की अगली सुनवाई सोमवार यानी कि 8 फरवरी को होगी.


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