मास्को: यूक्रेन पर रूस के हमले का आज चौथा दिन (Russia-Ukraine War Updates 5th Day) है. रूस (Russia) के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Puitn) अटैकिंग मोड में हैं. कीव (Kyiv) समेत संंबंधित क्षेत्र पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिशों के बीच पुतिन अमेरिका (US) समेत पश्चिमी देशों (Western Countries) पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में भी कामयाब दिख रहे हैं.  


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दरअसल रूस की सेना खारकीव में दाखिल हो चुकी है. रूसी मीडिया के हवाले से आई खबर के मुताबिक खारकीव में पिछले कुछ घंटों से लगातार धमाके की आवाजें आ रही हैं. वहीं रूस (Russia) के खिलाफ यूक्रेन के नागरिक सड़कों पर उतर आए हैं. इससे ठीक पहले पुतिन ने पश्चिमी देशों और नाटो खासकर अमेरिका को सीधी धमकी देते हुए कहा है कि अगर उसके मामले में किसी ने भी आगे बढ़ने की कोशिश की तो वो अपने परमाणु बमों के जखीरे का इस्तेमाल करने से परहेज नहीं करेगा.


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फिनलैंड और स्वीडन को भी चेतावनी


रूस किसी भी स्थिति में यूक्रेन मसले पर बाहरी दखल या दबाव स्वीकार करने के मूड में नहीं है. इसलिए हमले का आदेश देने वाले दिन से ही पुतिन लगातार अमेरिका, ब्रिटेन समेत सभी नाटो देशों को इस जंग से दूर रहने की चेतावनी देते हुए बार-बार अपने परमाणु जखीरे का हवाला दे रहे हैं. रूस ने फिनलैंड और स्वीडन को धमकी दी है. यह धमकी NATO में शामिल होने को लेकर दी गई है. इसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने NATO से ओपन-डोर पॉलिसी पर जोर देने की मांग की है.


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रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने कहा- फिनलैंड और स्वीडन को अन्य देशों की सुरक्षा को नुकसान पहुंचाकर अपनी सुरक्षा का आधार नहीं बनाना चाहिए. इन देशों को NATO में शामिल होने पर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. इसके अलावा सैन्य और राजनीतिक परिणामों का सामना करना पड़ सकता है.


1945 के बाद से नहीं हुआ एटम बम से हमला


एपी में प्रकाशित रिपोर्ट में आगे ये भी कहा गया है कि 1945 के बाद से किसी भी देश ने परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं किया है. हालांकि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने जापान पर एटम बम गिराने के पीछे ये वजह बताई थी क्योंकि उन्हें लगता था कि ऐसा करके वो द्वितीय विश्व युद्ध को जल्द खत्म करा सकेंगे. उस परमाणु त्रासदी में हिरोशिमा और नागासाकी में 2 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे. आज भी इसे मानवता के खिलाफ अपराध माना जाता है. इस घटनाक्रम के कुछ साल बाद सोवियत संघ (USSR) ने खुद का एटम बम बनाने के साथ न्यूक्लियर पावर होने का ऐलान किया था. जिसके बाद दोनों देशों में परमाणु हथियारों को इकठ्ठा करने की होड़ शुरू हो गई थी.


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