पटना : संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (United Progressive Alliance) सरकार में केंद्रीय मंत्री का दायित्व निभाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) अपनी अंतिम यात्रा के अनंत सफर पर निकल गए. गंवई अंदाज से राजनीति में पहचान बनाने वाले रघुवंश ने आखिरी सांस लेने के पहले राष्ट्रीय जनता दल (Rashtriya Janata Dal) छोड़ दिया था. वहीं राजनीति में उनकी पहचान 'अजातशत्रु' की थी. 


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उनकी तारीफ सभी दलों के नेता करते थे. रघुवंश अपनी साफगोई के लिए जाने जाते थे. जिन्होने पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद को भी जरूरत पड़ने पर खरी-खरी सुनाने में कसर नहीं छोड़ी. उनका रहन सहन साधारण था वहीं उनके व्यक्तित्व में दिखावा भी नहीं था इसलिए जनता उनसे सीधा जुड़ाव महसूस करती थी.


जेपी की विचारधारा से प्रभावित थे
बिहार की वैशाली लोकसभा सीट से सांसद रहे रघुवंश प्रसाद का जन्म छह जून 1946 को वैशाली के पानापुर शाहपुर में हुआ था. उन्होंने बिहार विश्वविद्यालय से गणित में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी. अपनी युवावस्था में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलनों में भाग लिया था.


रघुवंश का राजनीतिक सफर
1973 में उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का सचिव बनाया गया था. 1977 से लेकर 1990 तक वे बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे. 1977 से 1979 तक उन्होंने बिहार के ऊ र्जा मंत्री का पदभार संभाला था. इसके बाद उन्हें लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया.


1996 में पहली बार वे लोकसभा के सदस्य बने. 1998 में वे दूसरी बार और 1999 में तीसरी बार लोकसभा पहुंचे. 2004 में डॉक्टर सिंह चौथी बार लोकसभा पहुंचे. 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री रहे. 2009 के लोकसभा चुनाव में लगातार पांचवी बार उन्होंने जीत दर्ज की. 10 सितंबर को उन्होंने राजद से इस्तीफो दे दिया था. हालांकि पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद ने उन्हें पत्र लिखकर कहा था, 'आप कहीं नहीं जा रहे'. उनके भाषणों में लालू प्रसाद की छवि भी दिखाई देती थी, लेकिन वे स्पष्ट बोलते थे.


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क्रेडिट वार से दूर रहे रघुवंश
सिंह के साथ काम करने वाले वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि ऐसे लोग अब राजनीति में दिखाई नहीं देते. उन्होंने कहा कि इनमें संघर्ष करने का अदम्य साहस था और पार्टी के प्रति समर्पण रहा. उन्होने कहा कि वे कभी भी किसी काम का श्रेय लेने के लिए तत्तपर नहीं होते थे. मनरेगा के लिए उन्होंने काफी मेहनत की लेकिन कभी भी श्रेय लेने की कोशिश नहीं की. 


आखिरी खत में लिखी ये बात .....
पूर्व सांसद रामा सिंह को पार्टी में लाने की संभावना के कारण इन दिनों रघुवंश अपनी पार्टी से खासे नाराज थे. वे किसी भी हाल में रामा सिंह को पार्टी में नहीं आने देना चाह रहे थे. अपनी राजनीति शैली से उन्होंने इसका विरोध किया. स्वास्थ्य कारणों से जब वे दिल्ली के एम्स में इलाजरत थे और उन्हें लगा कि वे अब इसका विरोध नहीं कर पाएंगे तब उन्होंने अपने राजनीति सहयोगी रहे और पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद को एक पत्र लिखकर कह दिया, 'अब नहीं' .


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