BJP के गढ़ में कांग्रेस का `कार्ड` और राहुल गांधी की `मंदिर पॉलिटिक्स`
लिंगायत समुदाय को शिव का उपासक माना जाता है. 12वीं सदी के दार्शनिक बासवा ने इस संप्रदाय की स्थापना की थी.
कर्नाटक में पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा बीजेपी के चुनावी शंखनाद के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 10 फरवरी से चार दिवसीय कर्नाटक दौरा शुरू किया है. आंध्र प्रदेश की सीमा से सटे कर्नाटक के उत्तरी जिलों से उन्होंने अपनी जन आशीर्वाद यात्रा शुरू की. कर्नाटक के उत्तरी जिलों को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. पिछली बार यहां की 40 में से 23 सीटों पर कांग्रेस को कामयाबी हासिल हुई थी. 2004 में सोनिया गांधी ने बेल्लारी से ही लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान शुरू किया था.
गुजरात चुनाव की तर्ज पर राहुल गांधी ने सबसे पहले कोप्पल जिले में प्रसिद्ध हुलिगम्मा मंदिर में दर्शन किए. उसके बाद उनका काफिला गवी सिद्धेश्वर मठ के लिए रूका. यह मठ बहुसंख्यक लिंगायत समुदाय का है. इसके अलावा अपनी यात्रा के दौरान बसावाकल्याण स्थित अनुभवा मंटपा जाएंगे. बसावाकल्याण को 12वीं सदी के समाज सुधारक बासवाना के कारण जाना जाता है. ये मंदिर लिंगायत समुदाय की धार्मिक आस्थाओं से जुड़े हैं.
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लिंगायत समुदाय
इस समुदाय की राज्य की आबादी में 18 प्रतिशत हिस्सेदारी है. इनको परंपरागत रूप से बीजेपी का वोटर माना जाता है. बीजेपी के मुख्यमंत्री पद का चेहरा बीएस येद्दयुरप्पा इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. 10 साल पहले जब दक्षिण भारत के पहले राज्य के रूप में कर्नाटक में 'कमल' खिला था, तो उस वक्त इस समुदाय के बूते बीजेपी सत्ता के रथ पर सवार हुई थी. तब से यह समुदाय बीजेपी का वोटबैंक रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इसी समुदाय में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए राहुल गांधी गुजरात की तर्ज पर इन मंदिरों में जा रहे हैं. लिंगायत समुदाय को शिव का उपासक माना जाता है. 12वीं सदी के दार्शनिक बासवा ने इस संप्रदाय की स्थापना की थी.
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कांग्रेस की 'रणनीति'
दरअसल कांग्रेस किसी भी सूरत में कर्नाटक पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहती है. इसलिए अबकी बार इस समुदाय को अपने पाले में लाने की कोशिशों में लगी है. लिंगायत समुदाय में से एक समूह हिंदू धर्म से अलग नई धार्मिक पहचान की मांग कर रहा है. माना जाता है कि बीजेपी ने इस पर अपनी यदि सधी प्रतिक्रिया दी है तो वहीं कांग्रेस के बारे में माना जा रहा है कि इसने इस मांग को शह दी है.
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कांग्रेस नेता और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पिछड़ी जाति से आते हैं. कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का फॉर्मूला पिछड़ी जाति, दलित और माइनॉरिटी के गठजोड़ पर टिकी हुई है. लेकिन सूबे की सियासत में प्रभावशाली वोक्कालिका और लिंगायत समुदाय ही चुनावों में जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यही वजह है कि कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय को अपने पाले में लाने के लिए उनको राज्य में अल्पसंख्यक का दर्जा देने और तमाम सुविधाओं की मांग उछाल दी है. जिसकी डिमांड खुद लिंगायत समुदाय के तमाम महत्वपूर्ण संगठन कर रहे हैं. वोक्कालिका समुदाय को परंपरागत रूप से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस का समर्थक माना जाता है.