Ajmer News : विश्व प्रसिद्ध ब्यावर का बादशाह मेला बुधवार को धूमधाम से मनाया गया. पूरा ब्यावर लाल रंग की गुलाल से रंगा नजर आया. भैरुजी की पूजा अर्चना करने के पश्चात बादशाह अपनी सवारी पर सवार हुए और शहर में लाल रंग की खर्ची जमकर लुटाई. बादशाह के आगे बीरबल का नृत्य आकर्षण का केन्द्र रहा.


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हर तरफ गलियों में आओ बादशाह... आओं बादशाह.. की संगीत धुन सुनाई दी. दूर दराज से आए दर्शकों ने बादशाह मेले का भरपूर आनंद लिया और बादशाह के साथ जमकर गुलाल खेली. दर्शकों ने बादशाह से बरकत के रुप में ली जाने वाली गुलाल को लूटा और सुख समृद्धि की प्रतिक गुलाल को अपने साथ घर लेकर गए. बादशाह की सवारी विभिन्न मार्गा से होती हुई उपखंड कार्यालय पहूंची जहां पर एसडीएम व अन्य पदाधिकारियों ने बादशाह के साथ गुलाल संग होली खेली. उसके पश्चात बादशाह ने शहर की खुशहाली के लिए एसडीएम को फरमान पढ़कर सुनाया. इस दौरान भव्य आतिशबाजी के पश्चात बादशाह मेले का समापन किया गया. इस बार बादशाह रोशन सिंघल को बनाया गया वही गुलाब गर्ग ने वजीर व गोविन्द शर्मा ने बीरबल की भूमिका निभाई.


इन मार्गों से गुजरी सवारी
बादशाह मेले की सवारी का आगाज भैरुजी के खेजड़े से किया गया. उसके पश्चात बादशाह की सवारी भारत माता सर्किल, महादेव जी की छत्री, अग्रसेन बाजार, अजमेरी गेट, सुभाष चौक, एसबीआई बैंक क्षेत्र से कोर्ट परिसर होते हुए उपखंड कार्यालय पहुंची.


1851 से चली आ रही परंपरा, बादशाह की गुलाल से मिलती है बरकत


राजा महाराजा के समय से चला आ रहा बादशाहत का क्रम आज भी ब्यावर में कायम है. फ्रक सिर्फ इतना है कि पहले राजा की प्रजा के मध्य हीरे जवाहरात लुटाये जाते थे और आज जमकर गुलाल लुटाई जाती है. लाल रंग की चूनर ओढा आसमान हो या जमीन पर बिछी लाल रंग की चादर. लाल रंग में रंगा शहर ब्यावर में बादशाह मेले की पहचान है. सन् 1851 से चली आ रही परंपरा के तहत मुगल बादशाह अकबर के समय में उनके नवरत्नो में से एक टोडरमल को ढाई दिन की बादशाहत मिलने की याद ताजा करने के उद्वेश्य से होली के तीसरे दिन ब्यावर में बादशाह मेला भरा जाता है. ऐसी  किवदंती प्रचलित है कि एक बाद बादशाह अकबर शिकार के उद्वेश्य से जंगल में गए, रास्ता भटक जाने के कारण वह काफी आगे निकल गए.


उन्हे डाकूओ ने घेर लिया ओर जान से मारने की धमकी दी. उस समय बादशाह के साथ सेठ टोडरमल भी थे, जिन्होने अपने वाकचातुर्य से न केवल बादशाह को डाकुओं के चंगुल से छुडवाया बल्कि उनके माल असबाब को भी लूटने से बचा लिया. अकबर ने इस पर तोहफे के रुप में सेठ टोडरमल को ढ़ाई दिन की बादशाहत बख्शी. आम जनता को धनवान और समर्थ बनाने के लिये ढ़ाई दिन की बादशाहत की याद को संजोए रखने के लिये ढाई घंटे तक बादशाह की सवारी ब्यावर शहर में निकाली जाती है.


अग्रवाल समाज का बादशाह, ब्राहम्ण समाज का बनता है बीरबल


साल 1851 से ब्यावर में शुरु हुए बादशाह मेले में बादशाह को सजाने संवारने का कार्य माहेश्वरी समाज के लोगो द्वारा किया जाता है. इसके अलावा भांगयुक्त ठंडाई बनाने का कार्य जैन समाज के निर्देशन में उनका सेवक करता है और इसका वितरण शहर के प्रमुख बाजारो में प्रसाद के रुप में किया जाता है. मेले की पूर्ण व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी अग्रवाल समाज द्वारा निभाई जाती है. बादशाह मेले में गुलाल की बोली लगाकर बादशाह का चयन किया जाता है, जो कि अग्रवाल समाज में से किसी सदस्य को बनाया जाता है, जिस सदस्य द्वारा सबसे ज्यादा बोली लगाई जाती है, उसी को बादशाहत प्रदान की जाती है.


टोडरमल के मित्र बीरबल मुगल साम्राज्य में अपने मित्र को प्रथम हिन्दू शासक देख कर पगला से गए थे ओर बादशाह की सवारी के आगे नृत्य करते हुए चल रहे थे. नृत्य की यह परंपरा आज भी अनवरत चली आ रही है. जिसमें ब्राहम्ण सदस्य द्वारा बीरबल का रुप धारण कर बादशाह की सवारी के आगे नृत्य किया जाता है. नगर के प्रशासनिक अधिकारी कार्यालय परिसर में बादशाह उपखंड अधिकारी से गुलाल खेलते है ओर नगर विकास का आदेश देते है. तदन्तर उपखंड अधिकारी बादशाह का सम्मान करते हुए राजकीय कोष से बीरबल को नारीयल व मुद्रा के रुप में नजराना पेश करते है. यह आदेश ब्यावर के संस्थापक कर्नल डिक्शन के समय से प्रभावी है. मान्यता है कि बादशाह द्वारा लुटाई जाने वाली गुलाल घर में रखने से सुख समृद्धि में बढ़ोतरी होती है, यही कारण है कि आओ बादशाह... आओं बादशाह संगीत की धून के साथ लोगों द्वारा बादशाह का इंतजार किया जाता है ओर बादशाह से गुलाल लेकर घर के मंदिर में रखी जाती है.


Reporter- Dilip Chouhan