Thanagazi: साउथ अफ्रीका के डरबन में बाल श्रम और बाल-विवाह के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली अलवर के ग्रामीण क्षेत्र की तारा बंजारा अपने गांव लौट आई है. तारा बंजारा ने बताया कि किस तरह उसने बचपन में मजदूरी करते हुए सड़क बनाने का काम किया, इतना ही नहीं अपनी बहन के बाल विवाह को भी उसने रोका है. 8 साल की उम्र में तारा ने बाल मजदूरी शुरू कर दी थी लेकिन उसके मन में पढ़ने-लिखने का शौक था. 


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2012 में नोबल पुरुस्कार प्राप्त कैलाश सत्यार्थी और सुमेधा के संपर्क में आई फिर बाल आश्रम स्कूल में 2012 से उसने पढ़ाई शुरू की जहां उसने तीन साल में उसने सात क्लास पास करते हुए आठवीं कक्षा में प्रवेश किया, आज तारा बीए प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रही है और पढ़-लिखकर पुलिस में भर्ती होना चाहती है. तारा ने बताया कि गांव में पहले कभी बाल विवाह और बालश्रम आम बात थी लेकिन अब ऐसा नहीं होता. बच्चे आज स्कूलों में जाते है और कोई बाल विवाह नहीं होता. 


तारा के परिवार में 6 बहन एक भाई है इनमें तारा सबसे बड़ी है. माता पिता और दादी सहित परिवार में दस लोग रहते है. पिता पहले गधे पर नमक और मुल्तानी मिट्टी बेचने का काम करते थे, अब प्याज और लहसुन बेचते हैं. तारा बताती है कि आस-पास करीब दो दर्जन बच्चे है अब कोई बाल श्रम नहीं करता सब पढ़ रहे हैं. 


तारा ने बताया कि डरबन में भी उसने मंच से बाल श्रम और बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरूतियों के खिलाफ लड़ने की लोगों से अपील की है. तारा ने अपने ही परिवार में अपनी नाबालिग छोटी बहन के विवाह को भी रुकवाया है. तारा ने बताया कि परिवारवालों ने उसकी छोटी बहन की सगाई पांच साल की उम्र में कर दी थी. कोरोना काल में उसकी शादी भी करने वाले थे लेकिन मैंने इसका विरोध किया और शादी रुकवाई, तारा ने बताया कि वह स्वयं भी पढ़-लिखकर पहले नौकरी करेगी फिर शादी करेगी.


Report: Jugal Gandhi


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