Baytoo (Baytu) Vidhansabha Seat : पश्चिमी राजस्थान की सबसे हॉट सीट बन चुकी बायतु विधानसभा क्षेत्र का मुकाबला उसके गठन के बाद से ही रोचक रहा है. साल 2008 में परिसीमन के बाद बाड़मेर विधानसभा क्षेत्र से अलग होकर बनी बायतु विधानसभा सीट पर एक बार भाजपा और दो बार कांग्रेस का कब्जा रहा है.


खासियत


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बायतु विधानसभा सीट की खासियत यह है कि जब से इस सीट का गठन हुआ है तब से लेकर आज तक तीन बार विधानसभा चुनाव हुए हैं और इन तीनों ही चुनावों में जाट प्रतिनिधि की जीत हुई. पहले चुनाव में कर्नल सोनाराम चौधरी, दूसरे में कैलाश चौधरी और तीसरे विधानसभा चुनाव में हरीश चौधरी को जीत हासिल हुई. इस सीट को लेकर मिथक है कि जो भी यहां  चुनाव लड़ता है वह दोबारा विधानसभा सीट से चुनाव नहीं जीत पाता है. बायतु विधानसभा सीट के लिए कहा जाता है कि जहां से एक बार चुनाव जीतने वाला व्यक्ति दूसरी बार चुनाव नहीं जीत पाता है. 


बायतु विधानसभा सीट का इतिहास


पहला विधानसभा चुनाव 2008


बायतु विधानसभा सीट पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस की ओर से कर्नल सोनाराम चौधरी चुनावी मैदान में थे तो वहीं भाजपा ने कैलाश चौधरी को उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में कर्नल सोनाराम चौधरी के पक्ष में 62,207 मत पड़े तो वहीं कैलाश चौधरी के खाते में महज 25,789 वोट पड़े. इस चुनाव में कैलाश चौधरी को करारी हार का सामना करना पड़ा.


दूसरा विधानसभा चुनाव 2013


बायतु विधानसभा क्षेत्र के दूसरे चुनाव में एक बार फिर मुकाबला कांग्रेस की ओर से कर्नल सोनाराम चौधरी और भाजपा की ओर से कैलाश चौधरी के बीच था, मोदी लहर के बीच इस चुनाव में कैलाश चौधरी की जीत हुई और उनके पक्ष में 73,093 वोट पड़े. जबकि उनके सबसे करीबी प्रतिद्वंदी कर्नल सोनाराम चौधरी को महज 59,123 वोटों से संतोष करना पड़ा.



तीसरा विधानसभा चुनाव 2018


2018 के विधानसभा चुनाव में मुकाबला चतुषकोणीय हो चला था, इस चुनाव में कांग्रेस ने हरीश चौधरी को प्रत्याशित बनाया तो वहीं भाजपा की ओर से उस वक्त के तत्कालीन विधायक कैलाश चौधरी ताल ठोक रहे थे, वहीं 2018 में हीं अस्तित्व में आई हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी चुनावी मैदान में थी. इस चुनाव में आरएलपी की ओर से उम्मेदाराम अपनी किस्मत आजमा रहे थे. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार हरीश चौधरी की जीत हुई और उनके पक्ष में 57,703 वोट पड़े जबकि उनके सबसे करीबी प्रतिद्वंदी उम्मेदाराम को सिर्फ 43,900 वोटों से संतोष करना पड़ा.


कर्नल सोनाराम चौधरी कर्नल


सोनाराम चौधरी ने 2008 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और वह यहां के पहले विधायक चुने गए. इस चुनाव के बाद साल 2013 में कर्नल चौधरी ने फिर चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें कैलाश चौधरी के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में हार के बाद कर्नल सोनाराम चौधरी ने कांग्रेस का दामन छोड़ कर भाजपा ज्वाइन कर ली. जिसके बाद भाजपा ने उन्हें 2014 में बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया. चुनाव में सोनाराम चौधरी की जीत हुई और वह लोकसभा पहुंचे.


हरीश चौधरी


2013 में कांग्रेस को यहां हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में पूर्व सांसद रहे हरीश चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया. जबकि सामने एक बार फिर कैलाश चौधरी थे, हालांकि यह चुनाव त्रिकोणीय नहीं बल्कि चतुषकोणीय मुकाबला हो चला था. जहां कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवार चुनावी ताल तो ठोक ही रहे थे तो वहीं हनुमान बेनीवाल की पार्टी ने उमेदाराम बेनीवाल को चुनावी मैदान में उतार दिया. वहीं मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी ने भी ताल ठोक दी और किशोर सिंह कानोड़ को उतार दिया. इस बेहद दिलचस्प चुनाव में हरीश चौधरी के सिर जीत का सेहरा बंधा तो वहीं आरएलपी उम्मीदवार दूसरे स्थान पर आया. जबकि भाजपा प्रत्याशी और उस वक्त के मौजूदा विधायक कैलाश चौधरी को करारी हार का सामना करना पड़ा और भाजपा इस चुनाव में तीसरे स्थान पर खिसक गई. इस चुनाव के बाद हरीश चौधरी को पार्टी ने जीत का तोहफा देते हुए कैबिनेट मंत्री बनाया. हालांकि बाद में मंत्रिमंडल विस्तार से पहले हरीश चौधरी ने इस्तीफा दे दिया और उन्हें पंजाब कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया.


कैलाश चौधरी


2018 के विधानसभा चुनाव में हरीश चौधरी से शिकस्त पा चुके कैलाश चौधरी को भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बाड़मेर-जैसलमेर सीट से अपना प्रत्याशी बनाया. इस चुनाव में कैलाश चौधरी को जीत हासिल हुई और उन्हें केंद्र की मोदी मंत्रिमंडल में भी जगह मिली.


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