Jodhpur Vidhansabha Seat : मारवाड़ की सबसे अहम जोधपुर विधानसभा सीट चुनावी लिहाज से बेहद अहम है, क्योंकि इस सीट को जोधपुर जिले में आने वाली 10 विधानसभा सीटों का किंग कहा जाता हैं. इस सीट पर सवर्ण का दबदबा रहा है. हालांकि पिछले कुछ वक्त में ओबीसी उम्मीदवारों ने चुनौती पेश की है. लिहाजा ऐसे में 2023 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर जबरदस्त घमासान देखने को मिल सकता है. इस सीट को भाजपा का गढ़ भी कहा जाता है. हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के गढ़ को ध्वस्त करते हुए कब्जा लिया था.


जातीय समीकरण


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जोधपुर विधानसभा सीट पर घांची, प्रजापत, रावणा राजपूत, ब्राह्मण, पुष्करणा, मुस्लिम, ओसवाल और जैन समाज का खासा दबदबा है. हालांकि इस सीट पर लंबे वक्त तक ब्राह्मण और जैन समाज का दबदबा रहा है. लेकिन 2018 में पिछड़ी जाति के उम्मीदवार की जीत के बाद यहां के समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं. हालांकि 2023 के विधानसभा चुनाव में यहां क्या कुछ होता है. यह देखना बेहद दिलचस्प होगा.


मुख्यमंत्री


इस सीट से चुनाव लड़ने वाले 2 सदस्य मुख्यमंत्री भी रहे. इनमें पहला नाम जय नारायण व्यास का आता है. हालांकि जय नारायण व्यास को पहले ही चुनाव में हनुमंत सिंह से करारी शिकस्त मिली थी. वहीं बाद में इस सीट से 3 बार चुनाव जीतने वाले बरकतुल्लाह खान भी मुख्यमंत्री बने. बरकतुल्लाह खान को राजस्थान का पहला अल्पसंख्यक मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त है.


जोधपुर विधानसभा सीट का इतिहास


पहला विधानसभा चुनाव 1951


1951 के विधानसभा चुनाव में जोधपुर महाराज हनुमंत सिंह ने निर्दलीय के तौर पर चुनावी ताल ठोकी थी. तो वहीं कांग्रेस ने दिग्गज नेता जयनारायण व्यास को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में जोधपुर महाराज हनुमंत सिंह का दबदबा देखने को मिला. वह महज 28 साल के थे. उनके सामने कांग्रेस ने तत्कालीन मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास को उतारा, लेकिन हनुमंत सिंह की आंधी के आगे जय नारायण व्यास जोधपुर बी और जालौर ए दोनों ही सीटों से चुनाव हार गए. हनुमंत सिंह का साथ 78% से ज्यादा जनता ने दिया, जबकि जयनारायण व्यासको महज 21% जनता का साथ मिला. हनुमंत सिंह 26 जनवरी को लंबे चुनावी अभियान के बाद अपनी तीसरी पत्नी जुबैदा के साथ हवाई सफर पर निकले थे, लेकिन कुछ देर बाद ही उनका प्लेन क्रैश हो गया. जिसमें महाराजा और जुबैदा दोनों की मौत हो गई. हनुमंत सिंह की मृत्यु के बाद चुनावी नतीजे आए जिसमें उनकी बड़े अंतर से जीत हुई.


उपचुनाव 1952


1951 में हनुमंत सिंह की बड़ी जीत तो हुई लेकिन चुनावी नतीजे आने से पहले ही प्लेन क्रैश में उनकी मृत्यु हो गई. जिसके बाद इस सीट पर उप चुनाव करवाने पड़े. इस चुनाव में जहां कॉमरेड नेता हरि कृष्ण व्यास ने चुनावी ताल ठोकी तो वहीं कई निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन हरि कृष्ण व्यास की इस चुनाव में 3259 वोटों से जीत हुई.


दूसरा विधानसभा चुनाव 1957


1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अल्पसंख्यक चेहरे के रूप में बरकतुल्लाह खान को चुनावी मैदान में उतारा. कम्युनिस्ट पार्टी से हरीकृष्ण दोबारा चुनावी मैदान में थे. इस चुनाव में बरकतुल्लाह खान के पक्ष में 9150 वोट पड़े तो वहीं हरीकृष्ण को महज 4463 मतदाताओं का साथ मिला. इसके साथ ही बरकतुल्लाह खान चुमाव जीतकर राजस्थान विधानसभा पहुंचे.


तीसरा विधानसभा चुनाव 1962


इस चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस ने बरकतुल्लाह खान को चुनावी मैदान में उतारा. जबकि सामने गुमन मल लोढ़ा ने चुनौती पेश की. इस चुनाव में भी बरकतुल्लाह खान की 9964 वोटों से जीत हुई. जबकि गुमन मल लोढा चुनाव हार गए.


चौथा विधानसभा चुनाव 1967


1967 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की ओर से बरकतुल्लाह खान चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं उनको गुमन मल लोढ़ा ने चुनौती दी. इस चुनाव में बरकतुल्लाह खान चुनाव तो जीत गए लेकिन जीत का अंतर सिर्फ 400 वोटो से भी कम का था. हालांकि इस चुनाव के बाद बरकतुल्लाह खान ने इस सीट से चुनाव तो नहीं लड़ा लेकिन 1971 में मुख्यमंत्री जरूर बन और 1973 तक मुख्यमंत्री रहे. 


पांचवा विधानसभा चुनाव 1972


1972 के विधानसभा चुनाव में गुमान मल लोढ़ा ने एक बार फिर चुनाव लड़ा जबकि उनके खिलाफ कांग्रेस ने एक और अल्पसंख्यक चेहरे पर दांव खेलते हुए लियानुल्लाह खान पर दांव खेला लेकिन कांग्रेस का यह दांव उल्टा पड़ गया और गुमान मन लोढ़ा आखिर कार चुनाव जीतने में कामयाब रहे. 22763 मतदाताओं ने उनका साथ दिया.



छठा विधानसभा चुनाव 1977


1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी की ओर से बिराड़ मल सिंघवी चुनावी मैदान में उतरे. तो वहीं कम्युनिस्ट पार्टी से एचके व्यास ने फिर चुनावी ताल ठोकी. हालांकि एचके व्यास को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी के बिराड़ मल सिंघवी की जीत हुई. इस चुनाव में कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो गया.


सातवां विधानसभा चुनाव 1980


1980 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जनता पार्टी के टिकट से चुनाव जीत चुके बिराड़ मल सिंघवी को टिकट दिया. जबकि 1980 के चुनाव में कमजोर हो चुकी कांग्रेस ने अहमद बख्श सिंह को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में अहमद बख्श सिंह की जीत हुई और बिराड़ को हार का सामना करना पड़ा. 


आठवां विधानसभा चुनाव 1985


1985 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर बिराड़ मल सिंघवी को टिकट दिया. जबकि कांग्रेस ने एक दूसरे अल्पसंख्यक चेहरे पर दांव खेला. अबकी बार सैयद अंसारी को कांग्रेस ने टिकट दिया. हालांकि इस बेहद करीबी मुकाबले में बिराड़ मल सिंघवी चुनाव जीतने में कामयाब हुए और उन्हें 19,336 मतदाताओं का साथ मिला जबकि सैयद अंसारी को 18908 मत मिले.


9वां विधानसभा चुनाव 1990


इस चुनाव में बीजेपी ने अपनी तेज तर्रार युवा नेत्री सूर्यकांता व्यास को चुनावी मैदान में उतारा जबकि कांग्रेस की ओर से अहमद बख्श सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में सूर्यकांता व्यास की जीत हुई जबकि अहमद बख्श सिंह को करारी हार का सामना करना पड़ा.


10वां विधानसभा चुनाव 1993


1993 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर सूर्यकांता व्यास को आगे किया जबकि कांग्रेस फिर से अल्पसंख्यक चेहरे के रूप में सईद अंसारी को चुनावी मैदान में उतारा. सईद अंसारी के पक्ष में 28,528 मतदाताओं ने वोट किया तो वहीं सूर्यकांता व्यास को 34,132 मतदाताओं ने अपना समर्थन देकर चुनाव जताया.


11वां विधानसभा चुनाव 1998


1998 के विधानसभा चुनाव में आखिरकार कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी और अब कांग्रेस ने अल्पसंख्यक जगह जुगल काबरा को टिकट दिया जबकि कांग्रेस का विश्वास सूर्यकांता व्यास पर बरकरार रहा. चुनाव में बीजेपी की सूर्यकांता व्यास के पक्ष में 23,073 वोट पड़े. लंबे अरसे बाद कांग्रेस की रणनीति सफल हुई और जुगल काबरा की जीत हुई. जुगल काबरा को 33,991 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया.


12 वां विधानसभा चुनाव 2003


2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सूर्यकांता व्यास को चुनावी जंग में उतारा. कांग्रेस ने जुगल काबरा पर ही दांव खेला. एक बार फिर मुकाबला सूर्यकांता व्यास वर्सेस जुगल काबरा हुआ, लेकिन इस चुनाव में सूर्यकांता व्यास की जीत हुई और जुगल काबरा को तकरीबन 4000 मतों के अंतर से शिकायत मिली.


13वां विधानसभा चुनाव 2008


2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर जुगल काबरा पर विश्वास जताते हुए उन्हें टिकट दिया तो वहीं बीजेपी ने समीकरण के बाद बदले हालात को देखते हुए कैलाश चंद भंसाली को चुनावी मैदान में उतारा. भाजपा का तीर निशाने पर लगा और कैलाश चंद्र भंसाली की जीत हुई. जबकि कांग्रेस के जुगल काबरा को लगातार दूसरी बार करारी हार का सामना करना पड़ा.


12 विधानसभा चुनाव 2013


2013 के विधानसभा के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए हम था. मोदी लहर पर सवार बीजेपी ने कैलाश चंद भंसाली को फिर से टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस ने रणनीति बदलते हुए अब की बार सुपरस भंडारी को चुनावी मैदान में उतारा. लेकिन कांग्रेस की यह रणनीति भी विफल साबित हुई और कैलाश भंसाली की जीत हुई.


14वां विधानसभा चुनाव 2018


2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक बार फिर अपने रणनीति बदलने को मजबूर थी. कांग्रेस ने इस बार एक महिला चेहरा पर दांव खेलने की रणनीति बनाई और मनीषा पवार को चुनावी मैदान में उतारा. जबकि बीजेपी की ओर से अतुल भंसाली चुनावी मैदान में थे. इस चुनाव में आखिरकार कांग्रेस का 20 साल का सुख मिटा और मनीषा पवार की जीत हुई. जबकि अतुल भंसाली को हर का सामना करना पड़ा.


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