Srimadhopur Sikar Vidhansabha Seat : पीतल और तांबे के लिए विश्व प्रसिद्ध श्रीमाधोपुर विधानसभा क्षेत्र में लंबे अरसे से दो परंपरागत प्रतिद्वंदी के बीच मुकाबला देखने को मिलता रहा है. एक ओर जहां दीपेंद्र सिंह शेखावत कांग्रेस की ओर से चुनावी मैदान में उतरते आए हैं तो वहीं दूसरी ओर खर्रा परिवार, जिसकी दूसरी पीढ़ी यानी झाबर सिंह खर्रा चुनावी मैदान में है.


खासियत


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श्रीमाधोपुर विधानसभा सीट की खासियत यह है कि यहां से 5-5 बार दीपेंद्र सिंह शेखावत और हरपाल सिंह खर्रा ने जीत हासिल की है. हरपाल सिंह ने 1967 में पहली जीत हासिल की थी. इसके बाद वह 1977, 1985, 1990 और 2003 में जीतने में कामयाब रहे, जबकि दीपेंद्र सिंह शेखावत की पहली जीत 1980 में हुई थी. इसके बाद उन्होंने 1993, 1998, 2008 और 2018 में जीत हासिल की. इस सीट से 1957 में भैरों सिंह शेखावत ने भी जीत हासिल की थी. जो बाद में राजस्थान के मुख्यमंत्री और देश के उपराष्ट्रपति भी रहे.


जातीय समीकरण


इस सीट पर जाट और यादव मतदाताओं की आबादी बहुसंख्यक है तो वहीं राजपूत और महाजन समाज की भी बड़ी आबादी है. इस सीट पर लंबे वक्त से जाट बनाम राजपूत की सियासी वर्चस्व की जंग होती आई है.


2023 का विधानसभा चुनाव


2023 के विधानसभा चुनाव से पहले दीपेंद्र सिंह शेखावत ने चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है, ऐसे में उनके पुत्र बालेंदु सिंह शेखावत को कांग्रेस टिकट दे सकती है, तो वहीं विक्रम सिंह शेखावत और बलराम यादव जैसे अन्य दावेदार भी मैदान में हैं. वहीं बीजेपी की ओर से झाबर सिंह खर्रा एक मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं. अगर कांग्रेस इस बार दीपेंद्र सिंह शेखावत के पुत्र को टिकट देती है तो शेखावत और खर्रा दोनों ही परिवारों की दूसरी पीढ़ी इस चुनाव में आमने-सामने होगी.


श्रीमाधोपुर विधानसभा क्षेत्र का इतिहास


पहला विधानसभा चुनाव 1951


1951 के विधानसभा चुनाव में श्रीमाधोपुर विधानसभा क्षेत्र नीमकाथाना क्षेत्र के नाम से था. जहां से कांग्रेस ने गणेशराम खर्रा को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं राम राज्य परिषद की ओर से रूप नारायण ने ताल ठोकी. वहीं कृषक लोक पार्टी से रुद्रा चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में राम राज्य परिषद के रूपनारायण की जीत हुई और उन्हें 8,875 मतदाताओं ने अपना मत दिया.


दूसरा विधानसभा चुनाव 1957


1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने महिला प्रत्याशी के रूप में गीता बजाज को टिकट दिया तो वहीं उनके सामने भारतीय जनसंघ से भैरों सिंह शेखावत चुनावी ताल ठोकने उतरे. इस चुनाव में भैरों सिंह शेखावत को 7,568 वोट मिले तो वहीं गीता बजाज 5,778 वोट ही हासिल कर सकीं. इसके साथ ही भैरों सिंह शेखावत की चुनाव में जीत हुई.


तीसरा विधानसभा चुनाव 1962


1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से राम चंद्रा चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में हनूत सिंह को 6,032 मत हासिल हुए. कांग्रेस के रामचंद्र को 18,427 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ और उसके साथ ही पहली बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की.


चौथा विधानसभा चुनाव 1967


1967 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जन संघ की ओर से हरलाल सिंह चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं कांग्रेस ने मुक्ति लाल को टिकट दिया. इस चुनाव में हरलाल को 24,511 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया और उसके साथ ही भारतीय जनसंघ के हरलाल सिंह की जीत हुई.


पांचवा विधानसभा चुनाव 1972


1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार बदलते हुए सांवरमल को टिकट दिया, जबकि एक बार फिर चुनावी मैदान में हरलाल सिंह उतरे. इस चुनाव में हरलाल सिंह को 20,990 मत हासिल हुए तो वहीं 27,578 मत मिले. इसके साथ ही इस चुनाव में सांवरमल की जीत हुई.


छठा विधानसभा चुनाव 1977


1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी की ओर से हर लाल सिंह खर्रा चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं निर्दलीय के तौर पर बिशन सिंह ने ताल ठोकी. इस चुनाव में जनता पार्टी के हरलाल सिंह को 60 फ़ीसदी से ज्यादा मतदाताओं का साथ मिला और उन्हें 26,937 मत मिले और उसके साथ ही उनकी जीत हुई.


सातवां विधानसभा चुनाव 1980


1980 के विधानसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की ओर से दीपेंद्र सिंह शेखावत ने ताल ठोकी तो वहीं गोपाल सिंह खंडेला जनता पार्टी सेकुलर की ओर से चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में दीपेंद्र सिंह शेखावत को 21,444 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ और उनकी जीत हुई, जबकि जनता पार्टी के गोपाल सिंह खंडेला 13,353 मत ही हासिल कर सके.


आठवां विधानसभा चुनाव 1985


1985 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने हरलाल सिंह खर्रा को टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस की ओर से दीपेंद्र सिंह शेखावत चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में दीपेंद्र सिंह शेखावत को 28,974 वोट मिले तो वहीं हरलाल सिंह खर्रा 37,377 मत हासिल करने में कामयाब हुए और उसके साथ ही हरलाल सिंह की एक बार फिर जीत हुई.


9वां विधानसभा चुनाव 1990


1990 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से अपने मजबूत कैंडिडेट हरलाल सिंह खर्रा को ही टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस की ओर से सांवरमल चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के सांवरमल  को 25,306 मत मिले तो वहीं हरलाल सिंह खर्रा 45,921 मत पाने में कामयाब हुए और उसके साथ ही हरलाल सिंह खर्रा की लगातार दूसरी बार जीत हुई.


10वां विधानसभा चुनाव 1993


1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से दीपेंद्र सिंह शेखावत तो बीजेपी की ओर से हरपाल सिंह खर्रा चुनावी मैदान में उतरे यानी मुकाबला एक बार फिर हरपाल सिंह बनाम दीपेंद्र सिंह था. इस चुनाव में कांग्रेस के दीपेंद्र सिंह 43,924 मतों के साथ की चुनाव अपने पक्ष में करने में कामयाब हुए और हरलाल सिंह खर्राटे 33,080 मत पाकर भी चुनाव हार गए.



11वां विधानसभा चुनाव 1998


1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दीपेंद्र सिंह शेखावत पर ही भरोसा जताया और उन्हें चुनावी मैदान में भेजा तो वहीं बीजेपी की ओर से हरपाल सिंह खर्रा थे यानी दीपेंद्र सिंह बनाम हरलाल खर्रा के बीच मुकाबला एक बार फिर देखने को मिला. इस चुनाव में हरपाल सिंह को 36,454 वोट हासिल हुए तो वहीं दीपेंद्रसिंह शेखावत 47,286 पाने में कामयाब हुए. साथ ही दीपेंद्र सिंह शेखावत श्रीमाधोपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने राजस्थान विधानसभा पहुंचे.


12वां विधानसभा चुनाव 2003


2003 के विधानसभा चुनाव में हरलाल सिंह और दीपेंद्र सिंह शेखावाटी एक दूसरे के सियासी प्रतिद्वंद्वी बने. चुनाव में हरलाल सिंह लगातार दो बार चुनाव हारने के बाद जीतने में कामयाब हुए. हालांकि चुनाव में हरपाल सिंह ने निर्दलीय ही ताल ठोक था, जबकि कांग्रेस की ओर से दीपेंद्र सिंह शेखावत थे. वहीं भाजपा ने हरपाल सिंह की जगह हीरा सिंह को टिकट दिया था. इस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार हीरा सिंह की जबरदस्त हार हुई और वह अपनी जमानत भी जप्त कर बैठे. जबकि हरपाल सिंह निर्दलीय चुनाव लड़कर भी जीतने में कामयाब हुए और उन्हें 66,779 वोट मिले.


13वां विधानसभा चुनाव 2008


2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दीपेंद्र सिंह शेखावत को ही टिकट दिया तो वहीं बीजेपी ने अपनी पिछली गलती सुधारते हुए फिर से हरपाल सिंह खर्रा को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में हरपाल सिंह खर्रा को 29,357 वोट मिले, जबकि दीपेंद्र सिंह शेखावत 29,357 वोटों के साथ जितने में कामयाब हुए.


14वां विधानसभा चुनाव 2013 


2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से हरपाल सिंह खर्रा के पुत्र झबर सिंह खर्रा चुनावी मैदान में उतरे. तो वहीं दीपेंद्र सिंह कांग्रेस के टिकट पर एक बार फिर किस्मत आजमाने उतरे. मोदी लहर पर सवार झबर सिंह खर्रा की जीत हुई और उन्हें 75,101 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ, जबकि 67,000 मतों से ज्यादा हासिल करने में दीपेंद्र सिंह शेखावत को हार का मुंह देखना पड़ा.


15वां विधानसभा चुनाव 2018


2018 के विधानसभा चुनाव में फिर से झबर सिंह खर्रा और दीपेंद्र सिंह शेखावत आमने-सामने थे, चुनाव में दीपेंद्र सिंह शेखावत को 90,941 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ और वह प्रचंड जीत हासिल करने में कामयाब हुए जबकि झबर सिंह खर्रा 79,131 मत ही हासिल कर सके.


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