बारां जिले में ठेंगा दिखाती नजर आ रहीं जनकल्याणकारी योजनाएं! कुपोषण रोकने नाकाम सरकार
Baran News: बारां जिले के आदिवासी क्षेत्र शाहाबाद में सरकार कुपोषण को लेकर लाखों करोड़ों रुपए का खर्च कर रही है. एमटीसी केंद्र, आंगनबाड़ी केंद्र ,मां बाडी केंद्र ओर दर्जनों एनजीओ संस्था क्षेत्र में काम कर रही हैं. लेकिन इसके बाद भी कुपोषित बच्चों की हालत में कोई सुधार नहीं दिख रहा है.
Baran News: बारां जिलें के आदिवासी क्षेत्र शाहाबाद में एक और तो सरकार कुपोषण को लेकर लाखों करोड़ों रुपए का खर्च कर, एमटीसी केंद्र, आंगनबाड़ी केंद्र ,मां बाडी केंद्र ओर दर्जनों एनजीओ संस्था क्षेत्र में काम कर रही है. बच्चों को अच्छे पोषण मिलें उसको लेकर कई योजनाएं चलाई जा रही है. वहीं सहरिया क्षेत्र में कुपोषण से ग्रस्त बच्चों की सांसे कम हो रही है.
सहरिया क्षेत्र में कुपोषण बेलगाम
सहरिया क्षेत्र में कुपोषण से ग्रस्त बच्चों की सांसे धीरे-धीरे कम कम होती जा रही हैं. इन कुपोषित बच्चों के नर कंकालो जैसे शरीर में जीवन मरण की सांसे चलती दिखाई दे रही है. सहरिया आदिवासी क्षेत्र के समरानिया की सहरिया बस्ती में कुपोषण से ग्रसित कार्तिक सहरिया पुत्र शनीराम सहरिया उम्र ढाई वर्ष अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रहा है. उसका शरीर कंकाल बन चुका है.
ढाई साल के मासूम का बुरा हाल
ढाई साल के कार्तिक के शरीर से मांस गायब हो चुका है. सहरिया क्षेत्र में संचालित सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएं ठेंगा दिखाती नजर आती हैं. कुपोषित बच्चे के पिता शनीराम ने बताया कि वह बच्चों को लेकर दो बार केलवाड़ा अस्पताल गया था, लेकिन वहां पर व्यवस्थाएं ठीक नहीं थी. गोली दवा देकर भगा दिया और बताया कि बच्चों में खून की कमी नहीं है. दवा गोली खिलाओ ठीक हो जाएगा.
जंगल में बसे गांव के कई बच्चे कुपोषण का हो रहे शिकार
कुपोषण जैसी बीमारियों से जंगल में बसे गांव के कई बच्चे शिकार हो रहे हैं. लेकिन उनकी जांच पड़ताल करने वाला कोई जिम्मेदार कर्मचारी नजर नहीं आता है. जब समरानिया जैसे कस्बे में बच्चे कुपोषित नजर आ रहे हैं, तो सहरिया इलाके के दूर-दराज क्षेत्रों में बसे गांव में जन्मे बच्चों के क्या हाल होंगे आप इसी से अंदाज लगा सकते हैं. कुपोषित बच्चे के पिता का कहना है की मेरा बच्चा ढाई साल का है जो कुपोषण से ग्रसित है इसको इलाज के लिए दो बार केलवाड़ा लेकर गया था लेकिन वहाँ पर ठीक इलाज नहीं हो पाया इसलिए मुझे घर वापस आना पड़ा, अस्पतालों में व्यवस्थाए ठीक नहीं हुआ है.
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