जयपुर: महाराष्ट्र में सियासी बग़ावत का बवंडर क्या राजस्थान में भी फिर से सुनाई देगी ऑपरेशन लोटस की गूंज
महाराष्ट्र में शिव सेना की अंदरुनी बग़ावत के चलते सरकार पर आए सियासी संकट के बीच, राजस्थान में भी एक बार फिर से सियासी हलचल नज़र आने लगी है.
Jaipur: महाराष्ट्र में शिव सेना की अंदरुनी बग़ावत के चलते सरकार पर आए सियासी संकट के बीच, राजस्थान में भी एक बार फिर से सियासी हलचल नज़र आने लगी है. खास तौर पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के मध्यावधि चुनाव की आशंका और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयानों में तल्ख़ी कई इशारे कर रही हैं हालाँकि इन सबके बीच एक सच्चाई ये भी है कि देश में भारतीय जनता पार्टी का ऑपरेशन लोटस राजस्थान में आकर ही फ़ेल हुआ है, अन्यथा देश के कई राज्यों में अब तक भाजपा तख्तापलट करने में क़ामयाब रही है, यही वजह है कि राजस्थान में ऑपरेशन लोटस के क़ामयाब होने की संभावनाएं बेहद कम हैं. दरअसल महाराष्ट्र में शिवसेना के ही विधायकों के बागी होने पर सरकार अल्पमत में आ गई है, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब अपने ही विधायकों के बागी होने चलते सरकारों पर सियासी संकट आया हो साल 2018 से लेकर अब तक राजस्थान सहित चार प्रदेशों में गैर भाजपा शासित सरकार सियासी संकट झेल चुकी हैं.
साल 2018 से लेकर अब तक जिन चार राज्यों पर सियासी संकट आया हैं, उन सभी 4 राज्यों में गैर बीजेपी की सरकार रही है. राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में गैर भाजपा शासित सरकारें रही हैं इसलिए कांग्रेस और अन्य दल बीजेपी और केंद्र की मोदी सरकार पर गैर भाजपा शासित राज्यों में सरकार गिराने की साजिशों के आरोप लगाते रहें हैं. जुलाई 2020 में कोरोना महामारी के बीच सचिन पायलट कैंप की ओर से बगावत करने के बाद गहलोत सरकार पर सियासी संकट आ गया था, सचिन पायलट अपने समर्थक 19 विधायकों के साथ मानेसर चले गए थे तो वहीं गहलोत बचे हुए विधायकों और समर्थित विधायकों के साथ बाड़ेबंदी में चले गए थे, इस दौरान सरकार पूरे 35 दिन बाड़ेबंदी में रही, बाद में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप के चलते सचिन पायलट कैंप की नाराजगी दूर हुई और वो फिर से कांग्रेस खेमे में आए.
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असल में राजस्थान में कांग्रेस के भीतर गुटबाज़ी बग़ावत और बड़े बंदी सहित तमाम सियासी गतिविधियों के बावजूद कांग्रेस सरकार बरकरार रही हैं, तो उसकी सबसे बड़ी वजह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सियासी मैनेजमेंट है. सियासी बाड़े बंदी के बाद अशोक गहलोत क़द्दावर और मजबूत नेता उभर कर सामने आए हैं. गहलोत ने अपने कुनबे को क़ायम रखा हैं बल्कि राज्य सभा चुनाव में तीन सीटें जीतकर ये बता दिया है कि राजस्थान की सियासत के सबसे बड़े जादूगर वे ही हैं. राजस्थान कि सियासत के जानकार मान रहें हैं कि भारतीय जनता पार्टी भले ही लाख दावें करें लेकिन राजस्थान में कांग्रेस के भीतरघात और बग़ावत के आसार नहीं हैं, उसकी एक बड़ी वजह कांग्रेस का कुनबा पहले से मज़बूत होना हैं साथ ही पायलट कैम्प के विधायकों और नेताओं को मंत्री पद और सियासी नियुक्तियों में एडजस्ट भी किया जाना हैं लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण चतुर्वेदी का यह बयान राजस्थान की सियासत में ठहरे हुए भँवर में हलचल पैदा करने के लिए काफ़ी हैं. कहा ये भी जा रहा है सचिन पायलट ने अपनी रणनीति बदल का धैर्य धारण कर लिया है, जिसका ज़िक्र अभी राहुल गांधी ने अपने भाषण में किया था. कहा जा रहा है कि संगठन चुनाव के बाद अगर राहुल गांधी अध्यक्ष पद की कमान संभालते हैं तो हो सकता है कि देश भर में 1 बार फिर से पार्टी के भीतर युवा चेहरों को नई जिम्मेदारियां दी जाए उसमें राजस्थान में भी, पंजाब की तर्ज़ पर बदलाव की संभावना है.अब एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी के नेता मध्यावधि चुनाव की आशंकाएं जाहिर करने लगे हैं, अब सियासी हलकों में सवाल फिर से उठने लगा हैं कि क्या महाराष्ट्र के बाद फिर से राजस्थान में ऑपरेशन लोटस की आहट सुनाई दे सकती हैं.
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