Barmer News: गुजरात के NRI इंजीनियर बेटी की अमेरिका में सड़क हादसे में निधन होने के बाद थार की नवजात बेटियों को गोद लेकर उनका भविष्य संवार रहे हैं. प्रतिवर्ष 30 बेटियों को बेटी बचाओ का ब्रांड एंबेसडर बनाकर सुकन्या योजना के तहत प्रत्येक बेटी के नाम से ₹20000 रुपये की एफडी कराते हैं. अब तक उन्होंने जन्म लेने से लेकर 1 साल तक की 100 से अधिक बेटियों के नाम की एफडी करवा कर उनके भविष्य को सुरक्षित किया है. इनमे से अधिकांश बेटियों के पिता इस दुनिया ने नहीं हैं, तो कुछ बेटियां ग्रामीण इलाकों से अत्यंत गरीब परिवारों से है. यह कहानी गुजरात निवासी इंजीनियर अतुल पटेल की है जो बीते 40 सालों से पूरे परिवार के साथ अमेरिका में रहते है.


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20 हजार रुपए और एक पौधा देते हैं
इंजीनियर अतुल पटेल की बेटी का सड़क हादसे में अमेरिका में देहांत हो गया. अपनी16 साल की बेटी खोने के बाद एक बार तो वो टूट गए, लेकिन उसके बाद थार के रेगिस्तान की बेटियो में अपनी बेटी का चेहरा देख अब सैकड़ों बेटियों का सहारा बन गए है. वह रूमादेवी फाउंडेशन के साथ जुड़कर हर साल जरूरतमंदों बेटियों को सुकन्या स्कीम के तहत खाता खुलवाकर 20 हजार रुपए और एक पौधा सम्मान रूप से देते है. तीन सालों में 100 बेटियों को ब्रांड एम्बेसडर बना चुके है.


डॉ. रूमा देवी की मदद से शुरू किया
अतुल पटेल बताते है कि मेरी बेटी मेघा पटेल की 16 साल की उम्र में अमेरिका में कॉलेज जाने के दौरान सड़क हादसे में देहांत हो गया था. उस समय बहुत दुखी हुआ. कुछ समय बाद मैंने मोबाइल पर एक वीडियो देखा, जिसमें कुछ गांवों में बेटियों को जन्म होने के साथ मार दिया जाता है. जब उस बारे में इधर-उधर पता किया, तो तब पता चला कि बाड़मेर-जैसलमेर के गांव है. तब मैंने मन ही मन ठान लिया कि इन बेटियों को रक्षा करने के साथ यह पता लगाना चाहिए कि मारा क्यों जाता है. तब कौन बनेगा करोड़पति के एक शो मैं मैंने बाड़मेर निवासी डॉ. रूमादेवी को देखा. तब मैंने उनसे संपर्क किया. मारने का कारण जानना चाहा, तो उन्होंने बताया कि कई परिवार गरीब होते है और गरीबी के कारण उनका लालन-पालन नहीं कर पाते है. इस वजह से मार देते है. तब मैंने उनसे पूछा कि इन बेटियों को कैसा बचाया जा सकता है.


इस संस्था की मदद से कर रहे बेटियों की मदद 
अतुल पटेल का कहना है कि रूमा देवी के जरिए मेरा संपर्क ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान से हुआ. इनके सहयोग से मैं बेटियों के सम्मान के रूप में खाता खुलवाकर रुपए जमा करवाता हं, जिससे वो बेटियां बड़ी होने पर मा-बाप के सहारे नहीं रहे. तीन सालों में 100 बेटियों को ब्रांड एम्बेसडर बना दिया है. इस साल भी 500 के फॉर्म आए थे. इसमें से संस्थान द्वारा जरूरतमंद बेटियों का चयन किया है. 


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