Rajasthan News: राजस्थान के रेगिस्तान इलाके में पहले यातायात के संसाधन नहीं होते थे तो लोग ऊंट और बैलगाड़ी का इस्तेमाल आने जाने के लिए करते थे लेकिन अब तो यहां पर भी यातायात के साधन उपलब्ध हो गए हैं. 


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अब इतने संसाधन होने के बाद भी यहां शादी में ऊंट का उपयोग होता है. दरअसल, प्रदेश के मालधारी समाज के दूल्हे शादी के दिन तोरण ऊंट पर मारते हैं. कहते हैं कि शादियों में तोरण की रस्म बहुत जरूरी मानी जाती है.  


हजारों साल पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता और संस्कृति को आज भी घुमंतू जाति रबारी या मालधारी समाज के लोग निभा रहे हैं. इस समाज के लोग आज भी शादियों में पारंपरिक रूप से ऊंट पर ही तोरण की रस्म निभाते हैं. 


राजा की सवारी ऊंट
रबारी, देवासी और मालधारी समाज के लोग गुजरात के कच्छ, सौराष्ट्र, मारवाड़, मेवाड़ और शेखावटी में बहुत ज्यादा रहते हैं, जिनका मुख्य काम पशुपालन रहा है. वहीं, यहां के लोगों का कहना है कि पशुधन के साथ सूखे और अकाल के समय मुख्य आधार पर उनके ऊंट काम आता है, जिसके चलते वह सबसे ज्यादा प्यार और आदर ऊंट को ही देते हैं. इन लोगों में शादी वाले दिन दूल्हे को राजा माना जाता है और राजा की सवारी ऊंट पर होती है. 


युवा भी निभा रहे ये रस्म
हजारों साल पुरानी यह परंपरा आज भी शादियों में तोरणद्वार पर निभाई जाती है. इस समाज के लोग बरसों से इस परंपरा को निभा रहे हैं, ताकि वह अपनी संस्कृति से जुड़े रहे हैं. बुजुर्गों के अलावा इस समाज के युवा भी इस रस्म को बड़े आदर और प्यार से निभाते हैं. 


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