जयपुर: मरूधरा में पानी की कमी और दूसरी तरफ इसका दोहन. पिछले कई सालों में जनसंख्या बढ़ने के साथ ही पानी का अतिदोहन लगातार बढता जा रहा है. अतिदोहन की इस स्थिति से हमारी प्यास बुझाने वाली मरूधरा अब खुद सूखने लगी है. अगर हमने पानी को बचाने की तरफ ध्यान नहीं दिया तो आने वाले कुछ सालों में राजस्थान में पानी की किल्लत की समस्या और अधिक विकराल रूप धारण कर सकती है.


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राजस्थान में 9 जिले पिछले साल सूखा घोषित हो चुके, लेकिन यदि ऐसे ही हालात रहे तो बाकी दूसरे जिलों का भी कुछ ऐसा ही हाल दिखाई देगा. पिछले करीब चार दशक में मरूधरा की आबादी बढ़कर दोगुना हो गई है. लेकिन चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि इस अवधि में धरती से जितना पानी हमने निकाल लिया. उसके अनुपात में भूजल स्तर रिर्चाज तक नहीं हुआ है और भूजल स्तर में तुलनात्मक रूप से लगातार गिरता जा रहा है.


1984 में राजस्थान में कुल 13 हजार 790 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी रीचार्ज हुआ था और जो अब घटकर 11257 मिलियन क्यूबिक मीटर तक रह गया है. उस वक्त पानी का दोहन 4927 मिलियन क्यूबिक हुआ करता था, जो आज बढकर  15706 मिलियन क्यूबिक तक पहुंच गया है. यानि बीते सालो में पानी का दोहन 36 फीसदी से 139 फीसदी तक पहुंच गया है. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि आज पानी नहीं बचाया तो कल का भविष्य भतरे में है.


भूजल विभाग के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल मानसून सीजन से पहले राज्य में भूजल का औसत स्तर 25.26 मीटर था. जिलेवार आंकड़ों पर गौर करें तो न्यूनतम औसत भूजल स्तर बांसवाड़ा जिले का था. यहां भूजल स्तर 8.15 मीटर था. यानि पानी कम गहराई पर ही उपलब्ध हो जाता है. जबकि बीकानेर जिले में औसत भूजल स्तर 66.65 मीटर है. जो कि अधिकतम औसत स्तर है. भूजल स्तर में सबसे अधिक गिरावट दौसा जिले में हुई है. यहां माइनस 1.88 मीटर गिरावट दर्ज की गई. जबकि सबसे न्यूनतम गिरावट सीकर जिले में दर्ज की गई है. सीकर में भूजल स्तर में माइनस 0.19 मीटर की गिरावट आई है.


इन विपरित परिस्थितियों के बावजूद राजस्थान का 70 फीसदी सिंचित भाग भू जल संसाधनों और पेयजल योजनाओं का 94 फीसदी भाग भू जल स्त्रोतों पर आधारित है. इसके साथ ही वर्षा कम होना, अनियमित बरसात के कारण राज्य में अक्सर सूखे और अकाल की स्थिति बनी रहती है. ऐसे में भूजल के अंधाधूंध दोहन पर नियंत्रण रखना बेहद जरूरी है.