Bhilwara: भीलवाड़ा में मांडल कस्बे में दोपहर में मुख्य बाजार टंडन चौराहे पर सैकड़ों की तादाद में लोग इकट्ठा होते हैं और बादशाह बेगम की झांकियां तैयार कर खाटलीयों पर बिठाकर रेली के रूप में बस स्टैंड स्थित तहसील कार्यालय पहुंचे.


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जहां तहसीलदार मदन परमार को रंग लगाकर होली खिलाई. इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से सैकड़ों की तादाद में पुलिस बल तैनात था.एक जेड दोपहर बाद नहाने के बाद लोग कस्बे में अपने परिचितों के यहां मेहमान नवाजी के लिए गए हैं.


जहां विभिन्न पकवानों के साथ मान मनुहार हुई. सरपंच संजय भंडिया ने बताया की यह त्यौहार कस्बे का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है, जिसे मनाने के लिए दूर-दराज से बहन बेटियों को न्यौता दिया जाकर बुलाया जाता है.


यहां हुई प्रस्तुतियां 
राजस्थान लोक कला केंद्र मांडल के बैनर तले कस्बे के शेषशायी मंदिर चौक में किया गया जबकि दूसरा दशहरा चौंक में जहां हजारों की तादाद में दूर दराज के लोग नाहर स्वांग देखने पहुंचे.जहां ढोल की थाप और बाक्या वाद्य यंत्र की आवाज पर मस्त होकर रुई से तैयार हुए नाहरो ने स्वांग किया. बारिश के कारण कुछ व्यवधान हुआ किंतु नाहर नृत्य देखने पहुंचे लोग डेट रहें.


410 सालों पहले क्यों शुरू हुआ नाहर नृत्य
कहा जाता है करीब 410 वर्षों पूर्व 1614 में शाहजहां व अमरसिंह के बीच संधि होने के बाद शाहजहां उदयपुर से दिल्ली लौट रहे थे.इस दौरान रात को वह मांडल में ठहरे थे. उनके मनोरंजन के लिए पुरुषों ने अपने शरीर पर रुई लपेट कर नाहर स्वांग यानि नाहर नृत्य किया था. शाहजहां को नृत्य बहुत पसंद आया.कस्बे वासी अब तक हर रंग तेरस पर इसका आयोजन करते है और अब यह परंपरा बन चुकी हैं.


रूई से तैयार होते है आदमी नाहर नृत्य में पुरूष अपने शरीर को रूई से पूरा ढक देते है, सिर पर सींग बांधते है. इसके साथ एक पुरूष मोरपंख लेकर नाचता है. यह भैरव का रूप धारण करता है. ढोल,सारंगी और अन्य वाद्य यंत्रों की आवाज पर नृत्य कर सबका मनोरंजन करते हैं.


 ये करते हैं नाहर स्वांग
घनश्याम माटोलिया, राजू तड़बा, भंवर लाल माली, गोटू जोशी, साथ ही दोपहर निकाली गई बेगम बादशाह की सवारी में केदार बिड़ला बादशाह बने और प्रकाश जाट बेगम बना.


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