Bhilwara: राइट टू हेल्थ (right to health) बिल को लेकर राज्य सरकार व निजी अस्पताल के डॉक्टर्स के बीच आठ मांगों पर समझौता होने के बाद संतुष्ठ हुए डॉक्टरों ने बुधवार को 19 दिन बाद अस्पताल खोल दिए. इसी के साथ सोनोग्राफी केन्द्र, रक्त जांच केन्द्र और निजी क्लीनिक भी खुल गए और वहां मरीजों की भीड़ दिखाई दी.


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इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (Indian Medical Association) के भीलवाड़ा के पुर्व अध्यक्ष डॉ. दुष्यंत शर्मा ने बताया कि सरकार और डॉक्टर्स के बीच राइट टू हेल्थ बिल को लेकर कल 8 मांगों पर समझौता हो गया था . निजी अस्पताल संचालकों को अब राइट टू हेल्थ बिल की नियमावली का इंतजार है. नियमावली आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा की निजी अस्पतालों को इस बिल के तहत राहत मिली है या नहीं.


आईएमए के पूर्व अध्यक्ष व सिद्धी विनायक हॉस्पीटल के निदेशक डॉ. दुष्यंत शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की दूरदर्शिता व संवेदनशीलता से ही आज से राजस्थान में सभी निजी अस्पताल खुल गए है. गहलोत ने सभी विसंगतियों को दूर कर दिया है. करीबन 90 प्रतिशत हॉस्पिटल इस आररटीएच बिल के दायरे से बाहर होंगे.


लेकिन वह चिंरजीवी व आरजीएचएस की सेवाएं यथावत देते रहेंगे. इस संदर्भ में यह विधेयक विधानसभा में पास हुआ है. अभी राज्यपाल से मंजूरी मिलना बाकी है. कानून बनना बाकी है. यह सारी प्रक्रिया में करीबन तीन से चार माह लगेंगे. जनता में यह भ्रांति है की यह कल से ही लागू हो गया है. ऐसा नहीं है. नियम कानून बनने के बाद यह बिल लागू होगा. यह एक डॉक्टर्स समुदाय की जीत है.


वहीं निजी अस्पतालों के खुलने के बाद सरकारी अस्पतालों में मरीजों का भार कम पड़ा. ऐसे में दिन रात मरीजों की सेवा के लिए जूझ रहे अस्पताल प्रशासन व देर रात तक मरीजों के ऑपरेशन कर रहे डॉक्टरों ने भी राहत की सांस ली. गौरतलब है कि डॉक्टर्स की कल सरकार से वार्ता में 50 बिस्तरों से कम वाले निजी मल्टी स्पेशियलिटी अस्पतालों को आरटीएच से बाहर करने, सभी निजी अस्पतालों की स्थापना सरकार से बिना किसी सुविधा के हुई है. और रियायती दर पर बिल्डिंग को भी आरटीएच अधिनियम से बाहर रखने, आरटीएच के दायरे में निजी मेडिकल कॉलेज अस्पताल, पीपीपी मोड पर बने अस्पताल, सरकार से मुफ्त या रियायती दरों पर जमीन लेने के बाद स्थापित अस्पताल, ट्रस्टों द्वारा चलाए जा रहे अस्पताल को रखने, राजस्थान में अलग-अलग जगह पर बने अस्पतालों को कोटा मॉडल के आधार पर नियमित करने, आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए.


पुलिस केस और अन्य मामले वापस लेने, अस्पतालों के लिए लाइसेंस और अन्य स्वीकृतियों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम करने, फायर एनओसी नवीनीकरण हर 5 साल में करवाने, आईएमए के दो प्रतिनिधियों के परामर्श के बाद ही आगे से नियमों में कोई और परिवर्तन करने पर समझौता हुआ था .


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