Doppler Weather Radar: उत्तरी भारत इस वक्त शीतलहर की चपेट में राजस्थान से लेकर दिल्ली तक तापमान में भारी गिरावट का दौर लगातार जारी है. लोगों का घरों से बाहर निकलना दांतों तले उंगलियां दबाने जैसा होता है. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि अचानक से मौसम में करवट होने लगती है और इन करवटों के कारण  प्रकृतिक को कई नेचुरल क्लैमिटी से होकर गुजरना पड़ता है. जिसमें हजारों बेगुनाहों की मौत हो जाती है. इसी को ध्यान में रखते हुए विज्ञान मंत्रालय ने डॉपलर रेडार को मौसम की सटीक जानकारी के लिए चुना है. 


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बता दें कि विज्ञान मंत्री ने दस में से दो स्वदेश निर्मित ‘एक्स-बैंड डॉप्लर वेदर रडार्स’ (Doppler Weather Radars- DWR) का ऑनलाइन उद्घाटन किया जो हिमालय पर मौसम के बदलावों की बारीकी से निगरानी करेंगे.


क्या है डॉप्लर वेदर रडार


डॉप्लर वेदर रडार से 400 किलोमीटर तक के क्षेत्र में होने वाले मौसमी बदलाव के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है. यह रडार डॉप्लर इफेक्ट का इस्तेमाल कर बहुत ही छोटी तरंगों को भी कैच कर सकते हौ. और जब यह अतिसूक्ष्म तरंगें  किसी भी वस्तु से टकराकर लौटती हैं तो यह रडार उनकी दिशा को आसानी से पहचान लेता है.


इस तरह हवा में तैर रहे अतिसूक्ष्म पानी की बूंदों को पहचानने के साथ ही उनकी दिशा का भी पता लगाया जा सकता है. यह बूंदों के आकार, उनकी रडार से दूरी सहित उनके तोज गति से संबंधित जानकारी को हर मिनट हर पल की अपडेट करता है. इस डाटा के आधार पर वैज्ञानिक यह अनुमान पता कर पाना मुश्किल नहीं होता कि किस क्षेत्र में कितनी वर्षा होगी या तूफान आएगा. इस सिस्टम का सबसे बड़ा दोष यह है कि किसी मौसमी बदलाव की जानकारी ज्यादा-से-ज्यादा चार घंटे पहले दे सकता है.



क्यों हैं इसकी जरूरत


बादल फटने की घटना का पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल होता हैं. मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार बादल फटने की घटना का अनुमान नाउकास्ट (NOWCAST) पद्धति के जरिए कुछ ही घंटों पहले  ही किया जा सकता है. बादल का फटना सबसे ज्यादा प्रभाव पर्वतीय इलाकों में देखने को मिलता है. इसका मुख्य कारण पर्वतीय ढलानों से बादल का टकराकर ऊपर उठना होता है. ऊपर उठाने के क्रम में बादल ज्यादातर ठंडी हवाओं के सम्पर्क में आने से संघनित हो जाते हैं और पानी की बूंदों में बदल जाते है.


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इसी प्रक्रिया के बार-बार होने के कारण इन बूंदों के आकार में वृद्दि होती रहती है और जब उनका भार इतना अधिक हो जाता है कि वायुमंडल इसे सहन नहीं कर  पता तो यह एख विशेष स्थान पर  अचानक से बरस जाते हैं, जिसे आम भाषा में बादलों का फटना कहते है. 


बादल फटने की घटना में कम-से-कम 10 मिलीमीटर या उससे अधिक वर्षा होती है जिससे प्रभावित इलाके में अचानक बाढ़ (Flash Flood) की स्थिति पौदा हो जाती है और जान-माल का काफी नुकसान होता है. डॉप्लर वेदर रडार की सहायता से इस तरह की घटनाओं के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा चार घंटा पूर्व जानकारी मिल सकती है, जिससे समय रहते लोगों को सूचना देकर इनका प्रभाव कम किया जा सकता है. हालांकि साइटंसटों को कहना है कि चार घंटे बेहद कम माने जाते है ऐसी स्थिति में लोकिन इंसाी जान माल को बचाने और उन तक सटीक सूचना पहुंचाने के लिए यह चार घंटे भी अहम साबित हो जाते है. 


यह डॉपलर सिद्धांत पर काम करता है. इस सिद्धांत में रडार में एक पैराबोलिक डिश एंटीना और एक फोम सैंडविच स्फेरिकल रेडोम का उपयोग किया गया है. इसका  इस्तेमाल कर मौसम  की पूर्वानुमान एवं निगरानी की जानकारी में सटीकता में सुधार के 
लिए डिजाइन किया गया है. 


किसने बनाया
DWR की डिज़ाइनिंग और विकास का कार्य ISRO  ने तैयार किया है. इसका निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के जरिए बंगलूरू  में किया गया है.


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बारिश की तीव्र वेग को मापने के लिए लगे है उपकरण
 डॉपलर वेदर रडार में बारिश की तीव्रता, एयर ग्रेडिएंट और वेग को मापने के लिए उपकरण लगे होते हैं. यह धूल हो या चक्रवात  के बवंडर वह किस दिशा में कितनी तेजी से आ रहे है अन्य जानकारियो के बारें  में सूचित करता हैं.


इस  डॉपलर सिद्धांत को लेकर IMD  के अधिकारियों ने बताया कि यह हमारे लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में साबित होगा. इसकी मदद से राज्यों में आने वाली आपदाओं को टालने में भी मदद मिलेगी. खासकर उन राज्यों में जहां गरज, आंधी के साथ तूफान और भारी बरसात की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं. साल 2022 के डेटा के अनुसार, गरज के साथ बिजली की घटनाओं के चलते सबसे ज्यादा 1285 जिंदगियां गई हैं. वहीं बाढ़ और भारी बरसात के चलते 835 लोगों ने अपनी जान गंवाई है.