Chittorgarh: कहते हैं कि आस्था का कोई पैमाना नहीं होता, लेकिन आस्था के बल पर कई समस्याओं का निदान मिल जाता है. भारत में कई ऐसे उदाहरण हैं जो साबित करते हैं कि आस्था का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. उसके बावजूद चमत्कारों की कमी नहीं है. ऐसी ही एक तस्वीर चित्तौड़गढ़ से सामने आई है. जहां कंबल वाले बाबा के दर पर आकर लोग लकवे जैसी बीमारी से मुक्ति पाने की बात कह रहे हैं. 


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चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय के 5 किलोमीटर दूर स्थित भाई खेड़ा में इन दिनों लगी भीड़ ना तो किसी जलसे में आई है और ना ही किसी मेले का आयोजन हो रहा है. यह भीड़ किसी राजनीतिक सभा की भी नहीं है बल्कि इन तस्वीरों में मौजूद लोग वह हैं जो या तो खुद लकवे से पीड़ित है या फिर उनका कोई अपना इस बीमारी के दंश को झेल रहा है. एक व्यक्ति जिसका नाम रमेश यादव है, जिसे लोग कंबल वाले बाबा के नाम से जानते हैं अपने सर पर रखी एक कंबल से पहले आदमी के शरीर पर झाड़ा डालता है और उसके बाद उसके शरीर के हिस्सों को दबाता है और ऐसा करने के बाद जो व्यक्ति लकवे से ग्रसित है वह चलने लगता है. आराम महसूस करता है. 


लोगों का कहना है कि बाबा के पास आने के बाद उन्हें फायदा मिला है. नागौर जिले से आए महेंद्र का कहना है कि उनकी बेटी जिसकी उम्र 7 साल है वह कभी बिस्तर से उठ नहीं पाई, लेकिन बाबा के पास आने के बाद आज उनकी बेटी आराम से बैठ पा रही है और उन्हें पूरा विश्वास है कि कुछ दिनों बाद उनकी बेटी खड़ी भी हो जाएगी. हालांकि चिकित्सकीय उपचार में उन्होंने कोई कमी नहीं रखी है. अपनी बेटी का वह दो बार ऑपरेशन भी करवा चुके हैं. कंबल वाले बाबा इस तरह के शिविर पूरे देश में लगा चुके हैं. पूर्व में चित्तौड़गढ़ से 60 किलोमीटर दूर खोडीप गांव में यह सिविल लग चुका है. जहां 30000 आदमी प्रतिदिन इलाज के लिए आ रहे थे. कंबल वाले बाबा के चर्चे इतने हैं कि चिकित्सक भी यहां आने की सलाह देते हैं. 


1 या दो नहीं बल्कि अलग-अलग जगह से आए लोगों से बात की गई तो सभी का कहना है कि यह कोई दैवीय चमत्कार है, लेकिन ज़ी मीडिया इसकी पुष्टि नहीं करता. लोगों का जो कहना है वह बाबा के प्रति आस्था को दर्शाता है. सालों के उपचार से निराश हो चुके लोग जब बाबा के यहां आ रहे हैं जो उन्हें फायदा मिल रहा है. चित्तौड़गढ़ के पर्यटक स्थल संगम महादेव पर लगे इस शिविर में दूर-दूर से लकवे के मरीज पहुंच रहे हैं और अपना इलाज करा कर जा रहे हैं लोगों को पता चलने पर दूर-दूर से कंबल वाले बाबा के पास इलाज कराने आ रहे हैं. वहीं, कंबल वाले बाबा के द्वारा आने वाले मरीजों से किसी तरह का शुल्क नहीं लिया जाता है और श्रद्धालु द्वारा दान दिए गए रुपये से आने वाले लोगों के लिए भंडारे का आयोजन किया जाता है.


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अब इसे अंधविश्वास कहें या आस्था क्योंकि ऐसी उपचार पद्धति को मेडिकल साइंस इसी तरह की मान्यता नहीं देती है. मेडिकल साइंस में अनेक बीमारी का उपचार नहीं है, लेकिन आस्था की बदौलत उपचार होने के लगातार मामले सामने आते हैं. ऐसे में यह तस्वीर भी साबित करती है कि कहीं ना कहीं आस्था के चलते भारत की संस्कृति में उस देवी शक्ति के प्रति विश्वास आज भी कायम है जो किसी न किसी रूप में आमजन को अपना आशीर्वाद देती है. चित्तौड़गढ़ में लकवा बीमारी को सही करने के लिए शक्ति पीठ जातला माता भादवा माता सहित कई माता जी के स्थान है, लेकिन श्रद्धालुओं में कंबल वाले बाबा के प्रति आस्था देखी जा सकती है.


Report: Deepak Vyas