Nimbahera: आजादी के 75 वर्ष बाद भी बिजली सहित अन्य सुविधाएं नहीं पहुंची कौन है जिम्मेदार- आंजना
चित्तौड़गढ़ जिले के निंबाहेड़ा उपखंड क्षेत्र के कनेरा उप तहसील में एक गांव ऐसा भी है जहां पर लोग लगभग 60 वर्षों से रहते हैं लेकिन बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि 20 परिवारों के इस गांव में आज भी मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंची है.
Nimbahera: राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के निंबाहेड़ा उपखंड क्षेत्र के कनेरा उप तहसील में एक गांव ऐसा भी है जहां पर लोग लगभग 60 वर्षों से रहते हैं लेकिन बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि 20 परिवारों के इस गांव में आज भी मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंची है.
किसान नेता सोहन लाल आंजना ने बताया कि जब भारतीय जनता पार्टी के जिला महामंत्री होने के नाते कनेरा घाटा क्षेत्र का अनौपचारिक प्रवास किया, प्रत्येक ग्राम पंचायत के गांवों में जाना हुआ तो मन को झकझोर देने वाली स्थिति सामने आई और जब रात को 9:30 बजे टॉर्च के सहारे निंबोदा ग्राम पंचायत के एक गांव जिसे परपटिया के नाम से जाना जाता है उसमें जाना हुआ तो पाया कि इस गांव में 15 बीपीएल और 5 एपीएल परिवार रहते हैं.
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वास्तविकता में तो सभी बीपीएल परिवार ही है लेकिन आश्चर्य की यह बात है कि आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने की स्थिति में भी इस गांव में सरकारों की ओर से बिजली का एक बल्ब भी नहीं जला है, लोग आज भी अंधेरे में रह रहे हैं. इस गांव में कोई प्रधानमंत्री आवास नहीं है, कोई शौचालय भी नहीं है, यही नहीं 20 घरों के गांव में स्कूल नाम की कोई चीज ही नहीं है.
इस गांव के लोग बारिश के दिनों में जो पानी बरसता है उससे जो थोड़ा बहुत अनाज पैदा होता है उसी से अपना गुजारा करते हैं यही नहीं इस गांव में छोटे बड़े 400 गाय भैंस का पशुधन है, जिसको गांव वाले कुंए से पानी खींचकर पिलाते हैं. अब हम इस गांव की वास्तविकता से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखकर अवगत कराएंगे. जब गांव के भेरू लाल गुर्जर और लक्ष्मण गुर्जर से पूछा गया कि आखिर ऐसा आपके साथ क्यों हुआ तो उन्होंने बताया कि इसमें हमारा क्या दोष है, हम तो पीढ़ी दर पीढ़ी इस गांव में बसे हुए है.
जिस समय इस गांव की बसावट हुई उस समय किसी के घर का पट्टा दिया जाता है, इसका किसी को भी मालूम नहीं था, यह जमीन वन विभाग की है जब जनजाति क्षेत्र में वनों की जमीन पर मकान शौचालय बनाने की अनुमति है, कृषि करने की अनुमति है, बिजली ले जाने की अनुमति है तो फिर हमारे यहां क्यों नहीं, वे भी इंसान हैं और हम भी इंसान हैं.
हमारे वन क्षेत्र पर काबिज होने के प्रमाण सरकार और प्रशासन के पास वर्षो से हैं, हम लगातार कई वर्षों से जुर्माना भी जमा करवा रहे हैं लेकिन न मालूम पिछले चार-पांच सालों से जुर्माने की रसीद भी हमें नहीं दी जा रही है. प्रशासन उसमें भी घालमेल कर गया. आखिर हम जाएं तो कहां जाएं, प्रशासन तो कभी यहां आता ही नहीं है, जनप्रतिनिधि केवल वोट मांगने आते हैं इसके अलावा नहीं आते है. हमारे गांव में जब श्रीचंद कृपलानी विधायक थे उस समय वन विभाग को एजेंसी बनाकर 3 हैंड पंप जरूर लगवाए गए थे जिनका उपयोग हम आज भी कर रहे है.
गांव के महिला पुरुषों की बात सुनकर किसान नेता आंजना ने कहा कि सरकारों को इस गांव की दयनीय स्थिति पर ध्यान देना चाहिए और इन्हें सरकार की ओर से मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए आगे आना चाहिए. राज्य में कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां वन विभाग की जमीन पर लोग रहते हैं और उन्हें सुविधाएं मिल रही है लेकिन हमें लगता है केवल मात्र एक ही गांव यह है जिसमें अभी तक किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं पहुंची है, जिला कलेक्टर इस ओर ध्यान दें और जनप्रतिनिधि भी इस ओर ध्यान दें.
Reporter: Deepak Vyas
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