बांदीकुईः दौसा के बांदीकुई थाना क्षेत्र के जस्सा पाड़ा गांव में सूखे बोरवेल में डेढ़ साल की बालिका के गिरने से परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है, तो वहीं प्रशासन अपने स्तर पर बालिका का रेस्क्यू करने का प्रयास कर रहा है. दौसा कलेक्टर कमर चौधरी का कहना है मौके पर बांदीकुई तहसीलदार और मंडावर एसडीएम को भेज दिया है. साथ ही दौसा से सिविल डिफेंस एसडीआरएफ की टीम को भी मौके पर भेज दिया है. वहीं, जयपुर से भी एसडीआरएफ की टीम रवाना हो चुकी है. बताया जा रहा है बोरवेल सूखा था और 400 फीट गहरा है. बालिका का दादा कमल सिंह गुर्जर सूखे बोरवेल को भर रहा था. उस दौरान वह पानी-पीने के लिए घर के अंदर चला गया.


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 बोरवेल की चौड़ाई 8 इंच बताई जा रही 
पीछे से बालिका बोरवेल में गिर गई, बताया जा रहा है बालिका सौ से डेढ़ सौ फीट की गहराई पर बोरवेल में फंसी हुई है. जिसे सबसे पहले ऑक्सीजन देने का काम किया जा रहा है. बोरवेल से बालिका के रोने की आवाज भी बाहर सुनाई दे रही है. एसडीआरएफ के कमांडेंट राजकुमार गुप्ता ने कहा एसडीआरएफ की टीम भरसक प्रयास कर जल्द से जल्द बालिका को बोरवेल से बाहर निकालने का काम कर रही है, स्थानीय स्तर पर जेसीबी से बोरवेल के समीप खुदाई का काम भी जारी है. वहीं, बालिका के बोरवेल में गिरने की सूचना पर आसपास के गांव के लोग भी मौके पर जमा हो गए. बोरवेल की चौड़ाई 8 इंच बताई जा रही है. फिलहाल सब का एक ही प्रयास है, बालिका आरती गुर्जर को बोरवेल से सकुशल बाहर निकाला जाए.


देश में जब बनी थी सुर्खियां
21 जुलाई 2006 को हरियाणा के गुरूग्राम में प्रिंस नाम का बच्चा 60 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया था. 23 जुलाई को भारतीय सेना के जवानों ने उसे बाहर निकाला. तब यह घटना पहली बार देशभर में सुर्खिया बनी थी और सबने प्रिंस की सलामती के लिए दुआ मांगी थी. सेना ने तो प्रिंस को नौकरी देने का वादा भी किया था. इसी घटना के बाद जनहित याचिकाओं का सिलसिला शुरू हुआ था.


किसकी है जिम्मेदारी
बोरवेल खुदाई को लेकर अलग-अलग राज्यों का विभागों के साथ ही हाईकोर्टों के कई निर्देश हैं. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नियमों को पालन कराने की जिम्मेदारी कलेक्टर की होगी. वे सुनिश्चित करेंगे कि केंद्रीय या राज्य की एजेंसी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी मार्गदर्शिका का सही तरीके से पालन हो.


क्यों खुले पड़े रहते हैं बोरवेल
- लापरवाही और पैसा बचाने के लालच में बोरवेल, ट्यूबवेल को खुला छोड़ दिया जाता है
- कई किसान इस कारण भी खुला छोड़ देते हैं कि अगले साल पानी आने पर उन्हें पानी आने की उम्मीद रहती है
- किसानों को यह लगता है कि खेत में बच्चों का आना-जाना नहीं होता, इसलिए इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते
- वहीं कई संस्थागत बोरवेल ठेकेदारों द्वारा लापरवाही और पैसे बचाने के लिए खुले छोड़ दिए जाते हैं


समाधान क्या है?
- स्थानीय प्रशासन को ही सख्ती बरतना होगी
- हर बोरवेल, ट्यूबवेल की नियमित जांच होना चाहिए
- नियमों का पालन न करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो
- लोगों को स्व-विवेक से समझदारी दिखानी चाहिए


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