धौलपुर: 21वीं सदी में लोग गांव छोड़कर शहरों में भविष्य तलाश रहे हैं. भारत के लाखों गांव खाली हो रहे हैं. गांवों में टिकना लोगों को सजा या जुर्माना की तरह लग रहा है. लोग पूरा का पूरा परिवार लेकर मेट्रो सिटी पहुंच रहे हैं, जिससे  शहरों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो एक साल के भीतर किसी शहर की जनसंख्या डेढ़ से दोगुनी बढ़ जाती है, लेकिन इस सबके बीच देश का एक गांव ऐसा भी है, जहां किसी शहर के मुकाबले ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध हैं. जी हां राजस्थान के धौलपुर जिले में स्थित यह गांव स्मार्ट विलेज (Smart village)के नाम से जाना जाता है. 


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धौलपुर जिले में स्थित धनौरा गांव की कहानी विदेशी शहरों से कम नहीं है. यहां पर हर तरह की सुविधाएं गांव में ही मिल जाएंगी. इसके लिए शहर जाने की जरूरत नहीं है. टापू किनारे बसे धौनौरा गांव देखने में इतना रमनीय और रोचक है कि आप ''वाह कहे बिना रुक नहीं पाएंगे'' गांव को इतने करीने से सजाया गया है कि बाहर से आने वाले लोग भी इसकी मनुहार करने लगते हैं. गांव की बनावट और बुनावट ऐसी है कि लोग इसकी मिसाल देते हैं. यहां तक कि यह गांव कई मामलों में पुरस्कार भी हासिल कर चुका है. वहीं पीएम मोदी गांव की भव्यता और सुंदरात की तारीफ कर चुके हैं और अपने हाथों से सम्मानित भी कर चुके हैं.  


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अचानक से चर्चा में आया स्मार्ट विलेज 


दरअसल, आप सोच रहे होंगे कि आखिर स्मार्ट विलेज या आदर्श गांव की चर्चा अभी क्यों हो रही है. तो हम बता दें कि संसद के बजट सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्मार्ट गांव बनाने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि हमें अपने गांवों को भी स्मार्ट बनाना होगा. मोदी सरकार की सांसद आदर्श गांव योजना महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक हैं. सरकार का आदर्श गांव या मॉडल गांव बनाने पर ज्यादा फोकस है.राष्ट्रपति की स्पीच के बाद स्मार्ट गांव की चर्चा एक बार फिर लोगों के जुबां पर हैं. 


गांव में ये सारी सुविधाएं हैं मौजूद
धौलपुर जिले का धनौरा गांव देश का पहला स्मार्ट गांव है, जहां हर तरह की व्यवस्थाएं और सुविधाएं हैं. अच्छी सड़कें, स्वच्छ पानी, ड्रेनेज सिस्टम, मॉडल स्कूल,  सोलर स्ट्रीट लाइट, चमचमाती इमारतें, खेतों में पानी पहुंचाने के लिए नहर की सुविधा, मॉर्डन टॉयलेट, स्किल्ड विकास सेंटर, मेडिटेशन सेंटर और यहां तक की पब्लिक लाइब्रेरी की सुविधाएं मौजूद हैं.  धनौरा गांव जिला मुख्यालय से करीबन 30 किमी की दूरी पर है.


2 हजार की आबादी वाले इस गांव में ना तो किसी का किसी से विवाद होता है और ना ही नशाखोरी होती है. गांव में शराब की एंट्री पूरी तरह से बैन हैं. धनौरा गांव में दोनों गुटों के बीच विवाद होने पर आपस में सुलझा लिया जाता है. साथ ही गांव में एक भी युवा नशा नहीं कर सकता है. 


मॉर्डन टॉयलेट और कम्प्यूटर लैब से लैस है गांव


 यहां घरों और स्कूलों में मॉडर्न टॉयलेट बनाए गए हैं. परीक्षाओं की तैयारी के लिए छात्रों को अलग से कोचिंग देने के लिए इंस्टीट्यूट भी खोले गए हैं. आज के युग के हिसाब से चलने के लिए बच्चों को कम्प्यूटर शिक्षा भी दी जाती है. इसके लिए कम्प्यूटर लैब भी बनाया गया है. 


8 साल पहले गांव में नहीं था कुछ भी


आज से 8 साल पहले तक धनौरा गांव भी आम गांवों की तरह था. इस गांव के पास ऐसा कुछ भी नहीं था कि इसे स्मार्ट विलेज का तमगा मिले. जिला मुख्यालय से गांव आने के लिए अच्छी सड़क भी नहीं थी. बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूलों की भी कमी थी. बिजली तो गांव में नाम के लिए आती थी, लेकिन कहते हैं ना ''जहां चाह है वहां राह है'' क्षेत्र के जनप्रतिनिधि और गांव के लोगों ने मिलकर ठाना कि जबतक गांव को स्मार्ट बनाएंगे नहीं तबतक छोड़ेंगे नहीं और आज धनौरा गांव मॉडल को राज्य और देश की ग्राम पंचायत ने एक विकास मॉडल के रूप में अपनाया है.  गांव को आदर्श, मॉर्डन या स्मार्ट विलेज बनाने में यहां के स्थानीय प्रशासन, एनजीओ और यहां के प्रतिनिधियों का अहम योगदान है.