Aspur: राजस्थान के डूंगरपुर जिले में विभिन्न आदिवासी संगठनों की ओर से आज आदिवासियों का प्रयाग कहे जाने वाले बेणेश्वर धाम पर राष्ट्रीय आदिवासी महासम्मेलन का आयोजन हुआ. महासम्मेलन में राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से हजारों की संख्या में आदिवासियों ने भाग लिया. महासम्मेलन में वक्ताओं ने राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के टीएसी क्षेत्र को मिलाकर अलग से भील प्रदेश बनाने के साथ आदिवासी कोड सहित अन्य मांगें उठाई है.


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डूंगरपुर जिले में माही-सोम जाखम के त्रिवेणी संगम स्थल बेणेश्वर धाम पर विभिन्न आदिवासी संगठनों की ओर से आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी महासम्मेलन में हजारों आदिवासियों को ज्वार उमड़ पड़ा. महासम्मेलन में डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा विधायक रामप्रसाद डिन्डोर, चौरासी विधायक राजकुमार रोत सहित अन्य जनप्रतिनिधि और राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से हजारों की संख्या में आदिवासियों ने भाग लिया. 


इस दौरान महासम्मेलन को आदिवासी वक्ताओं ने संबोधित किया. अपने संबोधन में वक्ताओं ने देश के स्वतंत्रता आंदोलनों में भूमिका निभाने वाले संत गोविन्द गुरु राणा पूंजा, विरसा मुंडा, कालीबाई, नानाभाई खांट, सहित अन्य आदिवासी शूरवीरों के एतिहासिक जीवन पर प्रकाश डाला. वहीं इस दौरान आदिवासी वक्ताओं ने केंद्र और राज्य सरकारों पर जमकर निशाना भी साधा.


साथ ही उन्होंने कहा कि देश और प्रदेश में कोई भी सरकार रही हो, उन्होंने आदिवासियों को केवल अपना वोट बैंक ही माना है. उनके उत्थान के लिए कुछ ज्यादा प्रयास नहीं किए. संविधान में आदिवासियों को कई अधिकार दिए हुए है, लेकिन अधिकतर प्रदेशों में उन अधिकारों को सरकारों ने धरातल पर लागू नहीं किए है. वक्ताओं ने कहा कि ये महासम्मेलन सरकारों को जगाने का प्रयास है कि अब देश का आदिवासी जाग गया है और उसे अपने अधिकारों के प्रति लड़ना भी आ गया है. 


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महासम्मेलन में वक्ताओं ने राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के टीएसी क्षेत्र को मिलाकर अलग से भील प्रदेश बनाने की मांग उठाई. वहीं इसके साथ ही जनगणना में आदिवासी कोड करने, आदिवासियों के प्रयाग बेणेश्वर धाम की 80 फीसदी जमीन आदिवासी समाज के नाम से रिजर्व करने की मांग की है. महासम्मेलन में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से आदिवासी संस्कृति की झलक भी देखने को मिली.


Reporter: Akhilesh Sharma


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