पहली बार आयोजित हुआ अभंगवाणी संगीत समारोह, दक्षिण भारत के गायकों ने सुरमयी प्रस्तुतियां
मुंबई की प्रमुख संस्था ‘पंचम निषाद’ की ओर से जयपुर में पहली बार ‘बोलावा विट्ठल’ अभंग वाणी संगीत समारोह आयोजित किया गया. महाराणा प्रताप ऑडिटोरियम में आयोजित इस समारोह में दक्षिण भारत के जाने-माने गायक जयतीर्थ मेउंडी और रंजनी-गायत्री ने एक से बढ़कर एक रचनाओं के जरिए संगीत प्रस्तुति दी.
Jaipur: मुंबई की प्रमुख संस्था ‘पंचम निषाद’ की ओर से जयपुर में पहली बार ‘बोलावा विट्ठल’ अभंग वाणी संगीत समारोह आयोजित किया गया. महाराणा प्रताप ऑडिटोरियम में आयोजित इस समारोह में दक्षिण भारत के जाने-माने गायक जयतीर्थ मेउंडी और रंजनी-गायत्री ने एक से बढ़कर एक रचनाओं के जरिए संगीत प्रस्तुति दी.
समारोह में शामिल हुए तीनों कलाकारों ने इस मौके पर 12वीं शताब्दी के महाराष्ट्र और कर्नाटक के नामदेव, तुकाराम, ज्ञानेश्वर और बहिना बाई जैसे संतो के लिखे गए अभंगों की संगीतमयी प्रस्तुति दी. अभंग का अर्थ होता है, ईश्वर की स्तुति में लिखी गई काव्यात्मक रचनाएं. कार्यक्रम की शुरूआत गायक जयतीर्थ मेउंडी और रंजनी व गायत्री की तिगुलबंदी से हुई.
तीनों कलाकारों ने तीन शब्दों ‘राम-कृष्ण-हरि’ को सुर, लय और ताल की अलग अलग इकाईयों में पिरोकर करीब पन्द्रह मिनट तक भक्तिमय प्रस्तुति दी. इस रचना की खासयित ये थी कि, इसमें कलाकारों ने इन तीन शब्दों को ही अपनी सांगीतिक प्रस्तुति का माध्यम बनाया. इसके बाद रंजनी और गायत्री ने संत तुकाराम का अभंग प्रस्तुत किया. जिसमें महाराष्ट्र के प्रमुख तीर्थ स्थल पंढरपुर की अलौकिक महिमा का गुणगान किया गया. इसके बाद उन्होंने ‘बोलावा व्ट्ठिल’ नामक अभंग भी प्रस्तुत किया.
इसके साथ ही राग भटियार पर आधारित इस अभंग में भगवान विट्ठल के कृतित्व और व्यक्ति का गुणगान किया गया. किराना घराना शैली के गायक जयतीर्थ मेउंडी ने इस मौके पर भारत रत्न स्व. पं. भीमसेन जोशी का अभंग ‘तीर्थ विट्ठल क्षेत्र विट्ठल’ सुनाया. अनेक राग-रागनियों के मिश्रण से बने इस अभंग की लय-ताल में समाए भक्ति रस ने वहां मौजूद लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया. कार्यक्रम से पहले पत्रकारों से बातचीत में गायिका रंजनी और गायित्री ने कहा कि हम दोनों बहिनें हमेशा साथ ही गाती हैं, अब तक की सांगीतिक यात्रा में बहुत की कम ऐसे मौके आए हैं जब हमने अलग-अलग गाया हो. उन्होंने कहा प्रस्तुतिकरण को लेकर हम दोनों में कई बार ‘मतभेद’ होता है लेकिन ‘मनभेद’ हमारे बीच कभी नहीं हुआ.
जब भी संगीत को लेकर कोई मतभेद होता है तो हम उसे संगीत के व्यापक चित्रण को सामने रखकर सुलझा लेते हैं. किराना घराने के गायक जयतीर्थ मेउंडी ने शास्त्रीय संगीत के भविष्य पर चली बातचीत में कहा कि आज की युवा पीढ़ी के भीतर समर्पण का भाव नहीं है, ये लोग जल्दी ही नाम और पैसा कमाने चाहते हैं जबकि शास्त्रीय संगीत में धैर्य ही सबसे पहली शर्त होती है इसको सीखने के लिए कोई शॉर्टकट नहीं होता है.
पंचम निषाद क्रिएटिव्स के निदेशक शशि व्यास ने बताया कि संस्था पिछले सोलह साल से भारत के विभिन्न प्रान्तों में आषाढ़ी एकादशी के मौके पर यह समारोह आयोजित करती आ रही है. इस साल हमने जयपुर को भी इस अनूठे कार्यक्रम के लिए चुना है. कार्यक्रमों की क्रमबद्ध श्रंखला के रूप में यह समारोह इस बार भारत के नौ शहरों में आयोजित किया जा रहा है. इसकी शुरूआत 1 जुलाई को बैगलुरू से की गई थी और 24 जुलाई को इसका समापन मैंगलौर में जाकर होगा.
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