कलेजे के टुकड़ों ने मां को निकाल दिया घर से बाहर, दीपावली पर आई घर की याद तो छलके आंसू
दीपावली पर अपना घर आश्रम से खुशियों की चमक है.आंखों में आसूं हैं,दिल में दर्द और चुभन है,उस घर की दहलीज की यादे हैं,जहां पूरी जिंदगी गुजारी लेकिन एक सच ये भी है कि अपना घर ही अपना है क्योंकि अपने तो पराए हो गए.
Jaipur: हर तरह दीपावली के रंग बिखरे है,दीपावली की चमक फैली हुई है और दीपावली की उमंग से खुशियों की झड़ी है लेकिन इन सबसे के बीच हमारे समाज की ऐसी तस्वीर भी है,जहां जन्म देने वाली मां की खुशियों को उनके बच्चों ने दीपावली के हर रंग छीन लिए. बुढ़ापे में सहारा बनने की जगह मां की जिंदगी के रंग बिखेर दिए.
बुढ़ापे में बोझ समझकर घर की चौखट से बाहर निकाल दिया
अच्छा लगता है,जब बुर्जुग मां के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट दिखाई देती है,अच्छा लगता है जब मां बच्चों की तरह खिलखिलाकर दीपावली के रंगों में डूबती है,अच्छा लगता है जब ये मां अपना बच्चा समझकर हमे आर्शीवाद देती है लेकिन इन मुस्कुराहट के पीछे जिंदगी के बहुत गहरे जख्म और दर्द छिपे हैं. जिंदगी के ये गहरे जख्म किसी और ने नहीं,बल्कि इनके अपनों ने ही दिए. उस मां को बुढ़ापे में बोझ समझकर घर की चौखट से बाहर निकाल दिया,जिस चौखट के अंदर कभी उसी मां ने कलेजे का टुकड़ा समझकर उसे बेटे को जिंदगी जीना सिखाया. जिस मां ने दीपावली पर खुद कभी नए कपड़े नहीं पहने,लेकिन अपने कलेजे के टुकड़े के लिए हर दीपावली पर कोई कमी नहीं छोड़ी लेकिन इस मांओं को क्या पता था कि जिस बेटे को हाथ पकड़कर चलना सिखाया,उसी बेटे ने जिंदगी के सफर में हमेशा के लिए साथ छोड़ दिया.
अपने तो पराए हो गए,अपना घर ने थामा हाथ
दीपावली पर अपना घर आश्रम से खुशियों की चमक है.आंखों में आसूं हैं,दिल में दर्द और चुभन है,उस घर की दहलीज की यादे हैं,जहां पूरी जिंदगी गुजारी लेकिन एक सच ये भी है कि अपना घर ही अपना है क्योंकि अपने तो पराए हो गए. अब इन माताओं ने इस आश्रम को ही अपना घर मान लिया. यहीं होली,यहीं दिवाली की खुशियां ढूंढ रही है. हालातों ने इन्हें आश्रम में रहने के लिए मजबूर कर दिया. अब इन्हें बिल्कुल भी गम नहीं,दर्द नहीं,क्योंकि अपना घर आश्रम इन्हें वो खुशियां दे रहा है,जो इनके अपनों ने नहीं दी. बुढ़ापे की उम्मीद ही नहीं,बल्कि पूरे विश्वास के साथ सेवा भाव से इनका ख्याल रख रहे है,जो इनके परिवार ने नहीं दी.
मां के चहरे की चमक बढ़ने लगी
जयपुर के जामडोली में अपना घर आश्रम केवल आश्रम नहीं, बल्कि मां की जिंदगी की खुशियों का खजाना बन गया है.जहां अब दर्द,पीड़ा और आसू नहीं,बल्कि खुशियों की चमक है. अपना घर आश्रम के सचिव रिम्मू खंडेलवाल और उपाध्यक्ष कविता मीणा की सेवा भाव के कारण इन मांओं की चेहरे की चमक अब फिर से लौटने लगी है,फिर से मुस्कुराहट दिखने लगी है,फिर से जीना सीख लिया है.
थोड़ी सी खुशियां हमने भी बांटी
जी राजस्थान न्यूज भी इस दीपावली इन मांओं के बीच पहुंचा है,थोड़ी सी खुशियां बांटने,थोडा सा दुख दर्द बांटने का प्रयास कर रहा है. क्या पता हमारी छोटी सी कोशिश से उन परिवारों का दिल पसीज जाए,जिन्होनें अपने द्धार से अपनी मां को घर से बाहर निकाल दिया.
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