Jaipur: विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) पर राजस्थान (Rajasthan) के अलग-अलग हिस्सों के साथ ही देशभर में कई कार्यक्रम हुए. आदिवासियों ने अपनी परंपराओं को संरक्षित रखने की बात की तो साथ ही अपने आराध्य को भी पूजा लेकिन इन पूजा-पद्धतियों के बीच ही एक बार फिर आदिवासी समाज (Tribal society) से आने वाले नेताओं के बयान लोगों की चर्चा में जीवित हो उठे. 


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इसी साल 13 मार्च को आदिवासी समाज के एक कार्यक्रम में निर्दलीय विधायक रामकेश मीणा (Ramkesh Meena) ने कहा था कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं. इससे पहले विधायक गणेश घोघरा (Ganesh Ghoghra) भी विधानसभा के सदन में ऐसी बात कह चुके हैं. ऐसे में विश्व आदिवासी दिवस पर यह सवाल उठना लाज़िमी था कि वाकई आदिवासी क्या हैं? क्या आदिवासी हिंदू हैं? और जो लोग आदिवासी खुद को हिंदू नहीं मानने की बात करते हैं, आखिर उनका क्या तर्क है?


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आदिवासी समाज के लोगों की मान्यता है कि वे आदिकाल से इस धरती पर रहते आए हैं. वे प्रकृति पूजक हैं और इसीलिए वे आदिवासी कहलाते हैं. आदिवासियों के प्रकृति प्रेम और प्रकृति के संरक्षण के लिए ही 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में घोषित किया गया. यह घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ ने की थी. आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि आदिवासी समाज के लोग हिंदू धर्म के अनुयायी हैं. इसी कड़ी में महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि देश में सरकारी नौकरियों में आदिवासियों को आरक्षण के प्रावधान भारत की संविधान सभा ने किए थे लेकिन पिछले कुछ समय से आदिवासी तबके के नेताओं ने ही खुद को हिंदू धर्म से अलग बताने की परिपाटी शुरू की है. सबसे पहले कांग्रेस विधायक और वागड़ क्षेत्र से आने वाले गणेश घोघरा ने विधानसभा में यह बात कही. उन्होंने कहा कि वे हिंदू नहीं हैं और उन्हें यह धर्म मानने के लिए बाध्य भी नहीं किया जा सकता.


रामकेश ने कहा कि आदिवासी समाज के लोग हिंदू नहीं हैं
इसके बाद इसी साल 13 मार्च को राजधानी में आदिवासी समाज के एक कार्यक्रम में निर्दलीय विधायक रामकेश मीणा ने इस बयान को हवा दी. रामकेश ने कहा कि आदिवासी समाज के लोग हिंदू नहीं हैं. रामकेश के इस बयान का समर्थन कार्यक्रम में मौजूद अन्य लोगों ने भी किया. इस कार्यक्रम में कांग्रेस के विधायक गोपाल मीणा (Gopal Meena) और रफीक ख़ान (Rafiq Khan) भी मौजूद थे. इसके बाद विधायक कांति मीणा (Kanti Meena) और पीआर मीणा ने भी सोशल मीडिया पर अपनी बात रखी. पिछले दिनों आमागढ़ पर भगवा झंडा फाड़ने के बाद एक बार फिर रामकेश से इस बारे में पूछा गया तो वे हिंदू और गैर हिंदू की बजाय आदिवासियों को सनातनी बताने लगे.


किरोड़ीलाल मीणा ने रखी नई काट
दरअसल, रामकेश मीणा के बयान को उनके निर्वाचन क्षेत्र की डेमोग्राफी से भी जोड़ा गया. कहा गया कि उनके विधानसभा क्षेत्र में गैर हिंदू भी बड़ी संख्या में वोटर हैं और उन्हें प्रभावित करने के लिए संभवतया ऐसा कहा गया होगा लेकिन रामकेश के इस बयान को बेअसर करने के लिए राज्य सभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा ने पिछले दिनों नई काट रखते हुए कहा कि जो मीणा या आदिवासी खुद को हिंदू नहीं मानते, उन्हें हिंदू जनजाति होने के नाते मिला हुआ अपना आरक्षण भी छोड़ देना चाहिए. 


दौसा में मीणाओं की सभा के बाद किरोड़ी ने एक बार फिर अपनी बात दोहराई
अब विश्व आदिवासी दिवस पर दौसा में मीणाओं की सभा के बाद किरोड़ी ने एक बार फिर अपनी बात दोहराई है. उन्होंने कहा कि आदिवासी पहले भी हिंदू थे और आज भी हिंदू ही हैं. वे सीधे तौर पर तुष्टीकरण के आरोप लगाते हुए कहते हैं कि कांग्रेस और उसके समर्थक लोग भ्रान्तियां फ़ैलाने के लिए आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग बता रहे हैं. 


क्या यह समाज की परम्पराओं और उसके अस्तित्व से जुड़ी बात 
दरअसल, दौसा का नांगल प्यारी वास मीणा समाज के लोगों के बीच मीणा हाईकोर्ट की मान्यता रखता है. उस जगह से किरोड़ी ने जो बात कही. उन्हें पता है कि इसका मैसेज पूरे समाज में जाएगा लेकिन आदिवासियों को हिंदू नहीं मानने वाले लोग इस मुद्दे पर अभी भी समाज में अपनी बात रखने का दावा कर रहे हैं. ऐसे में सवाल यह है कि सही कौन है? आदिवासियों को हिंदू मानने वाले या इन्हें गैर हिंदू मानने वाले? साथ ही सवाल यह भी कि क्या यह सिर्फ एक सियासी मुद्दा है? या फिर यह एक समाज की परम्पराओं और उसके अस्तित्व से जुड़ी बात है?