मुख्यमंत्री गहलोत के आर्थिक सलाहकार के घर CBI रेड, 1688 करोड रुपए के लेनदेन का मामला
अखिल भारतीय सेवा के रिटायर्ड अधिकारी और भारत के पूर्व आर्थिक मामलात सचिव अरविंद मायाराम के ठिकानों पर सीबीआई ने कार्रवाई की है.
Jaipur News : अखिल भारतीय सेवा के रिटायर्ड अधिकारी और भारत के पूर्व आर्थिक मामलात सचिव अरविंद मायाराम के ठिकानों पर सीबीआई ने कार्रवाई की है. फिलहाल राजस्थान सरकार के आर्थिक सलाहकार के रूप में काम कर रहे अरविंद मायाराम के ठिकानों पर सीबीआई की इस कार्रवाई में जांच टीम ने कुछ दस्तावेज भी जप्त किए हैं. अरविंद मायाराम के जयपुर और दिल्ली स्थित ठिकानों पर चली दिनभर की कार्रवाई के बाद सीबीआई ने कथित तौर पर एक व्यक्ति को पूछताछ के लिए हिरासत में भी लिया है. हालांकि सीबीआई की तरफ से किसी को डिटेन किए जाने की पुष्टि नहीं की गई. गुरुवार शाम 6 बजे तक जयपुर स्थिति आवास पर चली कार्रवाई के बाद सीबीआई की टीम दो थैलों में दस्तावेज लेकर अरविंद मायाराम के घर से निकली. सीबीआई की टीम जाने के बाद अरविंद मायाराम से बातचीत की कोशिश की गई, लेकिन तब उन्होंने अपने नौकर से कहकर घर के दरवाजे पर भीतर से ताला लगवा दिया.
अरविंद मायाराम के ठिकानों पर यह कार्रवाई उनके केंद्रीय आर्थिक मामला सचिव रहने के दौरान करेंसी नोट की छपाई और उसके धागों को लेकर हुए ब्रिटेन की कंपनी के साथ करार के मामले में की गई है. इस मामले में सीबीआई के सब इंस्पेक्टर अमन राणा की तरफ से 10 जनवरी को अरविंद मायाराम और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 120 बी और 420 में मुकदमा दर्ज कराया गया है. बताया जा रहा है कि यह पूरा मामला 1688 करोड रुपए की लेनदेन और हेराफेरी से जुड़ा हुआ है.
ब्लैकलिस्टेड कंपनी को ठेका देने का है मामला
दरअसल, यह मामला करेंसी छापने के लिए मटेरियल सप्लाई करने वाली एक ब्लैकलिस्टेड ब्रिटिश कंपनी (DelaRau) से जुड़ा है. कंपनी को मटेरियल की क्वालिटी घटिया होने के चलते वर्ष 2011 में ही ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया था.
इसके बावजूद अरविंद मायाराम के फाइनेंस सेक्रेटरी रहते हुए बिना टेंडर प्रोसेस के कंपनी को तीन साल का एक्सटेंशन देकर नोट छापने में इस्तेमाल होने वाला कलरफुल धागा खरीदने का ऑर्डर जारी हुआ था. बताया जाता है यह ऑर्डर करीब 1688 करोड़ का था. यह खरीद 2012 में हुई जबकि कंपनी पहले से ब्लैकलिस्टेड थी.
क्या लिखा है सीबीआई की एफआईआर में?
14 फरवरी, 2017 को एक शिकायत से प्राप्त हुई थी. राज कुमार, संयुक्त सचिव और सीवीओ, आर्थिक मामलों का विभाग, वित्त मंत्रालय, नॉर्थ ब्लॉक, नई दिल्ली. इस शिकायत के आधार पर एक प्रारंभिक जांच क्रमांक. पीई 06(ए)/2018/सीबीआई/एसी-III/नई दिल्ली का संचालन सीबीआई, एसी-III, नई दिल्ली द्वारा किया गया था.
2. जांच से पता चला कि सरकार. भारत सरकार ने मैसर्स डी ला रुए इंटरनेशनल लिमिटेड, यूके (अब यहां मैसर्स डे ला रुए के रूप में उल्लेख किया गया है) के साथ वर्ष 2004 में एक अवधि के लिए भारतीय बैंक नोटों के लिए विशेष रंग शिफ्ट सुरक्षा धागे की आपूर्ति के लिए एक समझौता किया. पांच साल का. अनुबंध समझौते को बाद में 31.12.2015 तक चार बार बढ़ाया गया था.
3. जांच से यह भी पता चला है कि तत्कालीन माननीय वित्त मंत्री ने 17.07.2004 को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को सरकार की ओर से विशेष सुरक्षा सुविधा के आपूर्तिकर्ताओं के साथ विशिष्टता समझौते में प्रवेश करने के लिए अधिकृत किया था. भारत की. तत्पश्चात, की अध्यक्षता में एक उप समिति. पी.के. बिस्वास, कार्यकारी निदेशक, आरबीआई का गठन भारतीय बैंकनोट पेपर्स के लिए तैयार की गई तीन सुरक्षा विशेषताओं की विशिष्टता के सभी पहलुओं और कीमतों के विवरण में जाने के लिए किया गया था.
4. जांच से यह भी पता चला है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने मैसर्स डी ला रू के साथ 04.09.2004 को एक्सक्लूसिविटी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. समझौते के पृष्ठ 2 पर प्रस्तावना के पैरा 2 में यह कहा गया था कि "जबकि मैसर्स डी ला रू ने एक विशेष भारत विशिष्ट हरे से नीले रंग के लिए स्पष्ट पाठ एमआरटी मशीन विकसित की है
भारतीय में उपयोग के लिए पठनीय सुरक्षा धागा (इसके बाद क्लॉज 1.1 में परिभाषित).
बैंकनोट पेपर और जिसके लिए मैसर्स डे ला रुए अनन्य विनिर्माण रखती है.
पूछताछ में आगे पता चला है कि मैसर्स डे ला रू ने पेटेंट रखने के झूठे दावे किए थे और 2002 में प्रस्तुति के समय और 2004 में उनके चयन के समय उनके पास उनके कलर शिफ्ट थ्रेड के लिए कोई पेटेंट नहीं था. पूछताछ से यह भी पता चला है कि मैसर्स डी ला रू ने भारत में "ए मेथड ऑफ मैन्युफैक्चरिंग ए सबस्ट्रेट हैंग कलर शिफ्ट इफेक्ट" के नाम से पेटेंट के लिए आवेदन 28.06.2004 को किया था. इस पेटेंट के प्रकाशन की तारीख 13.03.2009 थी और पेटेंट देने की तारीख 17.06.2011 थी. जांच से पता चला कि एक्सक्लूसिविटी समझौते पर मैसर्स डे ला रू के पेटेंट दावे के सत्यापन के बिना भारतीय रिजर्व बैंक के कार्यकारी निदेशक पी.के.बिस्वास द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे.
6. जांच में आगे पता चला है कि आरबीआई और एसपीएमसीआईएल दोनों ने क्रमश: 17.04.2006 और 20.09.2007 को मैसर्स द्वारा पेटेंट न लेने के संबंध में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की. डी ला रुए उनके कलर शिफ्ट थ्रेड के लिए लेकिन . अरविन्द मायाराम ने माननीय वित्त मंत्री को इसकी जानकारी कभी नहीं दी.
7. आगे की जांच में पता चला कि मैसर्स डे ला रू के पास पेटेंट नहीं होने के बावजूद मैसर्स डी ला रू के अनुबंध समझौते को समय-समय पर 31.12.2012 तक बढ़ाया गया था.
8. जांच में आगे पता चला कि 10.05.2013 को मामला के संज्ञान में लाया गया था. अरविंद मायाराम, सचिव, आर्थिक मामलों के पद पर, कि मैसर्स डी ला रू के साथ अनुबंध समझौता 31.12.2012 को समाप्त हो गया था, इसलिए कानूनी रूप से विस्तार नहीं दिया जा सकता है
9. पूछताछ में आगे पता चला कि . अरविंद मायाराम, सचिव, आर्थिक कार्य विभाग ने 23.06.2013 को सु डी ला रुए के लिए एक समाप्त अनुबंध के तीन साल के विस्तार को मंजूरी दे दी. उन्होंने इस तथ्य को भी खारिज कर दिया कि गृह मंत्रालय से अनिवार्य सुरक्षा मंजूरी प्राप्त किए बिना विस्तार नहीं दिया जा सकता है.
पूछताछ में आगे पता चला कि अरविंद मायाराम, सचिव, डीईए ने 23.06.2013 को मैसर्स डे ला रुए को एक समाप्त अनुबंध के तीन साल के विस्तार को मंजूरी दे दी. उन्होंने इस तथ्य को भी खारिज कर दिया कि गृह मंत्रालय से अनिवार्य सुरक्षा मंजूरी प्राप्त किए बिना विस्तार नहीं दिया जा सकता है. अरविन्द मायाराम ने भी माननीय वित्त मंत्री से इसके लिए स्वीकृति नहीं ली.
पूछताछ में यह भी पता चला है कि अनिल रघबीर, मैसर्स डे ला रुए से अनुबंध समझौते के हस्ताक्षरकर्ता ने रुपये प्राप्त किए हैं. मैसर्स द्वारा भुगतान किए गए पारिश्रमिक के अलावा अपतटीय संस्थाओं से 8.2 करोड़. 2011 में डी ला रू. 11. इसलिए, जांच से प्रथम दृष्टया पता चला है कि एक आपराधिक साजिश रची गई थी.
मैसर्स डी ला रुए इंटरनेशनल लिमिटेड, यूके के बीच रची गई; . अरविंद मायाराम, तत्कालीन सचिव, वित्त मंत्रालय, सरकार के अज्ञात अधिकारी. भारत का, अज्ञात
आरबीआई के अधिकारी और अज्ञात अन्य. उक्त आपराधिक षड़यंत्र को आगे बढ़ाने में अरविन्द मायाराम ने मैसर्स डी ला रुए को अनुचित सहायता प्रदान की थी
मैसर्स डी ला रुए को अवैध विस्तार प्रदान करना जिसके परिणामस्वरूप अनुचित/गलत लाभ हुआ.
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