Chandra Grahan 2022: देश का एक ऐसा मंदिर जहां नहीं होता चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का असर
Chandra Grahan and karni mata mandir bikaner: राजस्थान के बीकानेर जिले के करणीमाता मंदिर देशनोक में कोई सुआ सूतक नहीं लगता है, इसलिए चंद्रग्रहण के दौरान भी मंदिर खुला रहता है और ओरण परिक्रमा, पूजा-पाठ और दर्शन जारी रहते है.
Chandra Grahan and karni mata mandir bikaner: आज चंद्र ग्रहण है और आज के दिन चंद्रमा और सूरज के बीच पृथ्वी आ जाती है, जिसकी वजह से चंद्रमा पर सूर्य की रोशनी नहीं पड़ती है. ग्रहण के दौरान मंदिरों के पट्ट बंद हो जाते हैं. किसी किस्म की पूजा-अर्चना नहीं की जाती, लेकिन राजस्थान के बीकानेर के करणी माता मंदिर में किसी भी तरह का ग्रहण (सूर्य और चंद्र) नहीं लगता है और उस समय परंपरागत तरीके से सभी कार्यों (पूजा-पाठ) का निर्वहन किया जाता है.
आज साल का आखिरी चंद्र ग्रहण
बता दें कि आज 8 नवंबर को साल का आखिरी चंद्र ग्रहण है और सूतक काल जारी है. ग्रहण भारत में ज्यादातर हिस्सों में आंशिक रूप से दिखाई देगा. सबसे पहले अरुणाचल प्रदेश में पूर्ण चंद्र देखने को मिलेगा. भारत में ग्रहण दिखाई देने के कारण इसका सूतक काल मान्य होगा. ग्रहण से 9 घंटे पहले सूतक काल लग जाएगा. यह ग्रहण आज मेष राशि और भरणी नक्षत्र में लग रहा है.
कहते है कि चंद्र ग्रहण के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. किसी भी तरह की पूजा-अर्चना नहीं की जाती यहां तक की मंदिर के पट तक बंद कर दिए जाते है. लेकिन बीकानेर के मां करणी मंदिर की पवित्र ओरण परिक्रमा अखंडित रूप से 6 नवंबर से लगाई जा रही है. बीकानेर जिले के करणीमाता मंदिर में कोई सुआ सूतक नहीं लगता. इस कारण चंद्रग्रहण के दौरान भी मंदिर खुला रहेगा और सालाना ओरण परिक्रमा जारी रहेगी.
देशनोक के करणी माता मंदिर के अलावा मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकाल मंदिर में भी सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण का सूतक नहीं लगता है. वहां भी महादेव की पूजा पाठ और दर्शन यथावत रहते है.
करणी माता मंदिर की कहानी
बीकानेर में स्थित करणी माता का मंदिर चूहों के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर पूरे भारत में बहुत फेमस है. यहां दूर-दूर से पर्यटक दर्शन करने के लिए आते हैं. ऐसा माना जाता है कि यहां करीब 20,000 काले चूहे रहते हैं और यह जगह बीकानेर से 30 किमी. दक्षिण में देशनोक में स्थित है. इस मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने 15वीं-20 वीं शताब्दी में करवाया था और मंदिर को मुगल शैली में सुंदर पत्थरों से बनाया गया है. करणी माता का जन्म चारण कुल में होने के कारण यह मंदिर चूहों का मंदिर भी कहलाया जाता है, करणी माता को मां जगदम्बा का अवतार माना जाता है.
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मंदिर में चूहों के प्रसाद के लिए चांदी की बड़ी थाली है. इन चूहों को पवित्र माना जाता है और इन्हें 'काबा' कहा जाता है. इतने चूहे होने के बाद भी मंदिर में आज तक कोई भी बीमारी नहीं फैली, यहां तक कि चूहों का झूठा प्रसाद खाने से कोई भी भक्त बीमार नहीं हुआ है. चूहे पूरे मंदिर में मौजूद रहते हैं और श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते.
चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जालियां लगी हुई हैं. यहां सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है. एक कथा के अनुसार 150 साल की उम्र में जब मां करणी की मृत्यु हुई थी तब वह मरने के बाद चूहे के रूप में परिवर्तित हो गई थी.
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