Jaipur: प्रदेश में बजरी खनन पर जब सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई थी तब सरकार ने एम सेंड के इस्तेमाल का फैसला लिया. तर्क दिया गया कि ये बजरी से ज्यादा मजबूत होता है लेकिन बजरी पर रोक थी और बजरी पर रोक हटने के बाद भी ना तो सरकारी विभागों और ना ही लोगों ने एम सेंड का इस्तेमाल शुरू नहीं किया है. हालांकि मंत्री और अफसर बजरी खनन शुरू होने का हवाला दे रहे हैं लेकिन अभी तक तीन जिलों को छोड़ दें तो बाकी जिलों में एम सेंड की यूनिट तक नहीं लग सकी है.


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प्रदेश में वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने बजरी खनन पर लगाई थी रोक 
प्रदेश में वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने बजरी खनन पर रोक लगा दी. बजरी पर रोक लगने के बाद अवैध बजरी माफिया पनप गए. बजरी को लेकर प्रदेश में धीरे धीरे हालात बद से बदतर होने लगे. बजरी माफिया हावी हो गया और सड़कें खून से लाल होने लगी. वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार ने बजरी के विकल्प के तौर पर एम सेंड का उपयोग बढ़ाने के प्रयास शुरू किए. इसे लेकर वर्ष 2020 में राज्य में एम सेंड नीति भी जारी की गई. एम सेंड नीति में नए उद्योग लगाने के लिए काफी सहुलियतें दी गई, लेकिन हालात ढाक के तीन पात वाले रहे. प्रदेश के 33 जिलों में से मात्र तीन जिलों में ही प्रमुखता से एम सेंड क्रेशर लगाई गई. इसके अलावा कुछ जिलों में एक दो क्रेशर है, वहीं कई जिले ऐसे हैं जहां एक भी उद्योगपति ने एम सेंड यूनिट डालने में रूचि नहीं दिखाई.


प्रदेश में एम सेंड यूनिट के ये हालात
प्रदेश में एम सेंड यूनिट लगाने के सम्बंध में विधानसभा में सवाल लगाया गया था. इसके जवाब में उद्योग विभाग की ओर से बताया गया कि प्रदेश के भरतपुर में 33, जयपुर ग्रामीण में 11, बूंदी में 21 एम सेंड उद्योग इकाइयां लगाई गई है. इनके अलावा बीकानेर में एक, दौसा में दो, झालावाड़ में पांच, राजसमंद में दो, सवाई माधोपुर में एक सीकर में पांच तथा उदयपुर में एक इकाई सहित 84 यूनिट लगाई है. वहीं दूसरी ओर खान एवं भूविज्ञान विभाग की ओर से बताया गया कि उदयपुर में सात, राजसमंद में चार, सीकर में पांच, जयपुर ग्रामीण में छह, जोधपुर में चार इकाइयां लगाई गई है.


सरकारी लाभ लेने में भी पीछे
जानकारी के अनुसार एमसेंड स्थापित करने के लिए सरकार की ओर से लोन देने सहित ब्याज अनुदान लेने में लोगों ने रूचि नहीं दिखाई. प्रधानमंत्री लघु उद्योग प्रोत्साहन योजना के तहत एम सेंड प्रोजेक्ट के लिए भरतपुर में एक उद्योगपति ने तीन करोड़ 71 लाख रुपए का लोन लिया, वहीं बूंदी में दो उद्योगों के लिए 6 करोड़ 98 लाख रुपए तथा जयपुर ग्रामीण में दो करोड़ 86 लाख रुपए का लोन दिया गया. राजसमंद में दो इकाइयों के लिए 80 लाख रुपए का लोन लिया गया. कुल 9 यूनिट के लिए 16 करोड 25 लाख का लोन स्वीकृत किया तथा 16 करोड़ 13 लाख रुपए लिए.


मुख्यमंत्री की भावना, प्रयास नहीं लाए रंगे
खान मंत्री प्रमोद जैन भाया का भी कहना है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भी भावना थी कि बजरी का विकल्प तैयार होना चाहिए. बजरी की मांग और आपूर्ति में अंतर है और इस अंतर को कम किया जा सके. उसी भावना से विभाग के अधिकारियों ने एम सैंड नीति लागू की. कैबिनेट में प्रस्ताव लेकर एम सेंड को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए नीति पास की. उसी का परिणाम हुआ कि बजरी के विकल्प के तौर पर एम सेंड साकार हुई लेकिन फिलहाल प्रयास रंग नहीं ला पा रहे हैं.


एम सैंड की तरफ लोगों का रूझान कम - खान मंत्री प्रमोद जैन भाया
खान मंत्री प्रमोद जैन भाया भी मानते हैं कि एम एम सैड की ओर लोगों का रुझान भी कम है. वहीं भाया ने कहा कि जिन राज्यों बजरी का उत्पादन कम है वहां एम सेंड का ही उपयोग हो रहा है. तकनीकी लोगों की भी राय है कि बजरी की तुलना में एम सेंड ज्यादा मजबूत है, लेकिन लोग इसे समझ नहीं पा रहे हैं. भाया ने कहा कि लोगों में एम सेंड के प्रति जागृति लाने के लिए विशेष अभियान चलाया जाएगा, जिसकी रूपरेखा तैयार कर रहे हैं ताकि लोगों का रूझान बढ़ सके.


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वैध बजरी शुरू तो एम सेंड की तरफ कम रूझान - अग्रवाल
दूसरी ओर माइंस एसीएस डॉ़ सुबोध अग्रवाल का कहना है कि प्रदेश में बजरी बंद थी कि तो एम सेंड को बढ़ाया दिया गया. वहीं बजरी का वैध खनन शुरू हो गया तो लोग एम सेंड के बजाय बजरी काम में ले रहे हैं. पहले बजरी बिल्कुल ही बंद थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बाद बजरी खनन शुरू हुआ है तो लोगों में एम सेंड के प्रति रूझान कम हुआ है.


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