Jaipur: प्रदेश भर में आज गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है. भगवान गणेश की आराधना सभी प्रकार के विघ्नों को दूर कर सुख-समृद्धि देती है. प्रत्येक शुभ कार्य के पहले की जाने वाली गणपति की साधना में उनकी विभिन्न प्रकार की प्रतिमाओं का अपना प्रतिमा अत्यंत ही शुभ फल देने वाली होती है. 


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प्रदेश का एकमात्र सफेद आकड़े के गणेश मंदिर


राजधानी जयपुर के आमेर में विराजमान सफेद आकड़े के मंदिर को चमत्कारी माना जाता है. यह मूर्ति जमीन से पैदा हुई है. सूर्यवंश शैली में बने 450 साल पुरानें 16 वीं शताब्दी के आमेर महल रोड मानसिंह प्रथम ने मंदिर की स्थापना कराई गयी थी. सफेद आंकड़े के गणेशजी का मंदिर 18 प्राचीन स्तम्भों पर खड़ा हुआ है. मंदिर में गणेशजी की प्राचीन मूर्तियां है, जिनमें ऊपर वाली मूर्ति सफेद आंकड़े के गणपति की है और नीचे वाली पाषाण मार्बल की. औरंगजेब के जमाने में श्वेतार्क गणपती मूर्तियां हुआ करती थी. जब युद्ध होता था, तो सफेद आकड़े की मूर्ति को अलग रख दिया जाता था और पाषाण की मूर्ति को राजा-महाराज युद्ध में लेकर जाते थे. युद्ध में विजय प्राप्त करने की कामना से पाषाण स्वरूप की आराधना करते थे. युद्ध समाप्त होने पर पाषाण की मूर्ति को पुनः अपने स्थान पर लाकर रख देते थे.


जयपुर की स्थापना के पहले की श्वेत अर्क गणेशजी


इस दुर्लभ प्रतिमा को राजा मानसिंह प्रथम जयपुर की स्थापना के पहले हिसार हस्तिनापुर से लाए थे. इस मूर्ति को वापस मंगाने के लिए हिसार के राजा ने आमेर में अपने घुड़सवारों को भेजा था. राजा ने श्वेत अर्क गणेश के पास ही पाषाण की दूसरी मूर्ति बनवा कर रख दी थी, जिससे घुड़सवार आश्चर्य चकित हो गए और वे दोनों बालस्वरूप मूर्तियां यहीं छोड़ गए.  तभी से ये दोनों ढाई फीट की प्रतिमाएं बावड़ी पर स्थित हैं.


प्रथम निमंत्रण श्वेत अर्क गणेश को


विवाह आदि के निमंत्रण पत्र डाक या कोरियर से यहां भेजते हैं. गणेश चतुर्थी पर मेला भरने के साथ ही आमेर कुंडा स्थित गणेश मंदिर से शोभायात्रा का समापन आकड़े वाले गणेश जी पर होता है. महंत ने बताया कि चौथी पीढ़ी मंदिर में सेवा पूजा कर रही है, राजा मानसिंह जब यहां अनुष्ठान करते थे. तब गणपति के समक्ष रोजाना 125 ग्राम सोना प्रसाद के कटोरे में मिलता था.


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