Jaipur: कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) को लेकर दुनिया (World) में एक भय पैदा हो गया है. बताया जा रहा है कि ये तेजी से फैल रहा है पर अच्छी बात ये है कि ओमिक्रॉन से पीड़ित लोगों के गंभीर होने जैसे हालात अभी तक नहीं देखे गए हैं बल्कि ओमिक्रॉन से पीड़ित मरीजों की रिकवरी भी जल्द हो रही है. राजस्थान (Rajasthan) में भले ही ओमिक्रॉन के 69 केस आए हों पर 44 लोग अभी तक इस बीमारी से निजात पा चुके हैं. स्वास्थ्य विभाग की मानें तो अभी इस इससे एक भी कैजुअल्टी (casualty) नहीं हुई है. 


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ओमिक्रॉन ने भले ही दुनिया के कई देशों में अपनी पहुंच बना ली हो पर अभी तक कोरोना के दूसरे वैरिएंट मसलन डेल्टा (Delta) जैसी तबाही का नजारा देखने को नहीं मिल रहा है. ये कोरोना काल में अभी तक बहुत बड़ी राहत की बात है. उल्टे इस वैरिएंट को कोरोना के खात्मे के रूप में भी देखा जा रहा है. हाल ही में ब्रिटिश मेडिकल काउंसिल (British medical council) के पूर्व वैज्ञानिक (former scientist) ने दावा किया है कि ओमिक्रॉन कोरोना के खात्मे की वजह बन सकता है. ये वैरिएंट फेफड़ों (lungs) तक नहीं पहुंचता है बल्कि श्वास नली (breathing tube) में रुककर अपनी संख्या बढ़ाता है. तब तक इसकी रफ्तार 10 गुना कम हो जाती है. पूर्व वैज्ञानिक डॉ. रामएस उपाध्याय (Dr. MS Upadhyay) ने बताया कि यही वजह है कि लोगों को ऑक्सीजन (oxygen) की जरूरत नहीं पड़ रही है. 


वैज्ञानिकों का दावा- कोरोना फ्लू की तरह हो जाएगा
लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन (The London School of Hygiene & Tropical Medicine) के प्रोफेसर (Professor) बता रहे हैं कि आगे कोरोना फ्लू की तरह हो जाएगा. अब यदि यदि ओमिक्रॉन के तेजी से फैलने को लेकर बात की जाए तो इससे पॉजिटिव (positive) होने वालों की इम्यूनिटी वैक्सीन (Corona Vaccine) की इम्यूनिटी (immunity) के मुकाबले ज्यादा दिनों तक शरीर में रहती है. वैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना के इस वैरिएंट के साथ ही इस महामारी का अंत हो जाएगा. ऐसे में कोरोना काल में अब तक की ये सबसे ज्यादा राहत देने वाली खबर है फिर भी कोरोना से बचाव के लिए सुझाए गए एहतियात का पालन करना जरूरी होगा. 


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ओमिक्रॉन घातक नहीं क्योंकि...
ओमीक्रोन वेरिएंट कई म्यूटेशंस के साथ शरीर की पहली रक्षा पंक्ति यानी एंटीबॉडी (Antibodies) को हराने में तो सक्षम है, लेकिन यह शरीर की दूसरी रक्षा पंक्ति (टी-सेल्स) T-cells से जीत नहीं पाता है. ये टी-सेल्स न सिर्फ वेरिएंट की पहचान करने में बल्कि उसे बेअसर करने में भी बेहद प्रभावी हैं. टी-सेल्स व्हाइट ब्लड सेल्स (white blood cells) होती हैं, जो वायरस से संक्रमित कोशिकाओं पर हमले कर सकती हैं या उनका मुकाबला करने के लिए एंटीबॉडी बनाने में मदद कर सकती हैं. स्टडीज का अनुमान है कि 70-80 प्रतिशत टी सेल्स ओमिक्रॉन के खिलाफ फाइट करते हैं. एंटीबॉडी से इतर, टी-सेल्स वायरस के पूरे स्पाइक प्रोटीन को टारगेट करती हैं, जो ज्यादा म्यूटेशन वाले ओमिक्रॉन में भी काफी हद तक एक जैसा रहता है.केप टाउन यूनिवर्सिटी की स्टडी में पता चला है कि जो मरीज कोविड से ठीक हुए या जिन्हे वैक्सीन लगी है उनमें 70-80 फीसदी टी सेल्स ने ओमिक्रॉन के खिलाफ काम किया है. 


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Rajasthan में ओमिक्रॉन की ये है स्थिति
बुधवार यानी 29 दिसंबर को प्रदेश में ओमिक्रॉन के कुल 23 नए केस सामने आए थे. वहीं पुराने 46 मामलों में से 44 लोग रिकवर होकर घर जा चुके हैं. प्रदेश में अभी तक के ओमिक्रॉन मामलों पर नजर डालें तो जयपुर में 39 सीकर में 4 अजमेर में 17 उदयपुर में 4, भीलवाड़ा में 02, अलवर में 01 जोधपुर में 1 और महाराष्ट्र का 1 व्यक्ति ओमिक्रॉन पॉजिटिव पाये गये हैं. 


भारत में ओमिक्रॉन की अब तक...
भारत में 2 दिसंबर को ओमिक्रॉन का पहला केस सामने आया था. तब कर्नाटक में ओमिक्रॉन के दो मामले सामने आए थे. 17 दिसंबर तक देशभर में ओमिक्रॉन मामलों की सख्या 100 के पार हो गई थी. अब 29 दिसंबर तक ओमिक्रॉन के मामले 1000 पार हो गए हैं. हालांकि अभी तक 401 मरीज रिकवर होकर घार जा चुके हैं. बाकी मरीजों में भी कहीं गंभीर होने की सूचना नहीं आई है. 


डरने की जरूरत नहीं पर सावधानी बरतनी होगी- एक्सपर्ट
जयपुर के वरिष्ठ फीजिशियन डॉ. आरएस खेदर (मेडिकल डायरेक्टर EHCC हॉस्पिटल) ने Zee Rajasthan से बातचीत में बताया कि अभी तक इस कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट को लेकर जिस तरह के रिसर्च और हालात सामने आ रहे हैं उस हिसाब से ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है. कोरोना के अल्फा, बीटा और डेल्टा वैरिएंट के मुकाबले में भले ही ओमिक्रॉन 3 गुना तेजी से फैल रहा है पर इससे प्रभावित मरीजों में रिकवरी काफी तेज हो रही है. यूएस में तो 5 दिन में ही ये वायरस गायब हो जा रहा है. नई दवाएं भी इस वैरिएंट पर काम कर रही हैं. नवंबर-दिसंबर में आने दर्ज मामलों में 90 फीसदी मामले ओमिक्रॉन के ही हैं. इससे डेथ रेट भी दूसरे वैरिएंट के मुकाबले काफी कम है. डॉ. खेदर ने कहा- 'डरे नहीं पर सतर्क जरूर रहें, मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग अपनाते रहें.'