Jaipur: हमारे देश में कई मंदिर विद्यमान हैं, जिन्हें अपने चमत्कारों और आस्था के लिए जाना जाता हैं. आज हम आपको देवी मां के ऐसे ही एक अनोखे चमत्कारी मंदिर (Miraculous temple) के बारे में बताने जा रहे हैं. हिंदू धर्म की परम पूजनीय देवी मां दुर्गा (Maa Durga) और आदि शक्ति के नौ अवतारों में से एक माना जाता है मां शाकंभरी (Maa Shakambhari) का रूप. मां शाकंभरी के देशभर में 3 मंदिर शक्तिपीठ हैं. एक सहारनपुर (Saharanpur) में है. दूसरा सीकर जिले में और तीसरा मंदिर राजस्थान के सांभरलेक में स्थित सबसे प्रसिद्ध मंदिर है


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यह मंदिर झील के बीचों-बीच पडाड़ी पर स्थित है जो जयपुर (Jaipur News) से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. झील का क्षेत्रफल 90 वर्ग मील है. देश में कोरोना काल (Covid) के चलते इस बार नवरात्रों (Navratri) में मंदिरों में खासी भीड़ देखने को नहीं मिल रही है क्योंकि सरकार ने गाइडलाइन का पालन करते हुए मंदिरों में दर्शन की छूट दी है. मां दुर्गा ने चंड, मुंड, महिषासुर जैसे कितने ही राक्षसों से देवों और दानवों को मुक्ति दिलाई. इस दौरान मां ने नव रूप धरे. इन्हीं में से एक रूप है मां शाकंभरी का भी है.


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माता का ये नाम कैसे पड़ा
मां शाकंभरी का वर्णन महाभारत और शिव महापुराण में भी मिलता है. सांभरलेक (sambharlek) का नाम भी मां शाकंभरी के तप के कारण ही पड़ा. देवी भाग्वतपुराण में वर्णित कथा में बताया गया है कि राक्षसों के दुष्प्रभाव के कारण पृथ्वी पर अकाल पड़ गया था. तब सभी देवों और मानवों ने मां आदिशक्ति की आराधना की. सभी की पुकार पर मां आदिशक्ति ने नव रूप धारण करके पृथ्वी पर दृष्टि डाली तो उनकी दिव्य ज्योति से बंजर धरती में भी शाक उत्पन्न हो गए. इन्हीं शाक को खाकर सभी ने अपनी भूख मिटाई. इसी के कारण मां का नाम शाकम्भरी पड़ा. 


सांभरलेक में स्थित मां शाकंभरी का मंदिर करीब ढाई हजार साल पुराना बताया जाता है. मां शाकंभरी को चौहान वंश की कुल देवी माना जाता है लेकिन मां दुर्गा का अवतार होने के कारण हिंदू धर्म को माननेवाला हर व्यक्ति मां दुर्गा के इस रूप को समान भाव से पूजता है. सांभरलेक में कोई भी पूजा या संस्कार मां के मंदिर में ढोक (नमन करना) दिए बिना पूरे नहीं होते. मां शाकंभरी के मंदिर में चैत्र और शारदीय दोनों नवरात्रों के समय श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.


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कई हिस्सों से भक्त मां के दर्शन के लिए आते हैं
यहां देश के कई हिस्सों से भक्त मां के दर्शन और पूजन के लिए आते हैं. इसके अतिरिक्त हिंदी कैलेंडर (Hindi Calender) के अनुसार भाद्रपद महीने की अष्टमी तिथि को यहां भव्य मेले का आयोजन होता है. इस पहाड़ी शाकम्भरी माता की पहाड़ी पर चौहान शासक गोगराज (Chauhan ruler Gograj)ने माता की तपस्या की और जब माता प्रसन्न होकर प्रकट हुई तो उन्होंने उससे वरदान के लिए कहा तो गोगराज ने कहा कि उसके राज्य में चारों ओर चांदी ही चांदी हो जाए, इस पर माता ने कहा कि ऐसा ही होगा और तू अपना घोड़ा लेकर जहां तक जाएगा वहां चांदी ही चांदी हो जाएगी और मैं तेरे पीछे ही चलूंगी जिस स्थान पर भी पीछे मुड़ कर देख लिया मैं वहां रुक जाऊंगी.


राजा घोड़ा लेकर चला और काफी दूर चलने के बाद उसके मन में आया कि मेरे राज्य में चांदी हो रही है या नहीं जैसे ही पीछे मुड़कर देखा तो चारों ओर चांदी थी, लेकिन माता वहीं रुक गई और वहां पर माता का मंदिर बनाया गया. इसके बाद जब राजा अपने महल में आया तो उसकी मां ने कहा कि तूने यह क्या किया अब तो कई राजा इस चांदी के लालच में राज्य पर आक्रमण करेंगें, इस पर राजा फिर माता के पास गया और कहा कि माता इस चांदी को आप कच्ची चांदी यानी नमक में बदल दो जिससे मेरे राज्य पर आक्रमण ना हो और यहां के लोग इसका व्यापार कर जीवन यापन कर सके.


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शाकंभरी माता को लेकर यहां के लोगों में बड़ी आस्था है
कहा जाता है तभी से चांदी नमक में बदल गई. शाकंभरी माता को लेकर यहां के लोगों में बड़ी आस्था है. हर वर्ष भाद्रपद महीने में अष्टमी को इस मंदिर में विशेष मेले (special fair) का आयोजन होता है. इससे पूर्व रात्रि में विशाल भजन संध्या का आयोजन किया जाता है. इस मंदिर को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है वही दूर-दूर से सैकड़ों की संख्या में पैदल यात्राएं निकलती है, जिनमे हजारों की तादाद में महिला बच्चे और पुरुष श्रद्धालु झूमते-गाते नाचते पैदल यात्रा में सम्मिलित होकर माता रानी के दरबार में पहुंचते हैं और धोक लगाकर पूजा अर्चना करते है, अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं. वहीं, सच्चे मन से माता रानी की पूजा अर्चना करने वाले भक्तों पर माता की महर होती है और माता रानी सब की मुराद पूरी करती है.
Report -AMIT YADAV