Rajasthan Politics : क्या बीजेपी में बचा है वसुंधरा राजे के लिए कोई कॉम्पटीशन ?
राजस्थान बीजेपी (Rajasthan BJP)की अंदरूनी गुटबाज़ी को क्या आलाकमान ने पूरी तरह खत्म करने का मन बना लिया है ? कटारिया (Gulab Chand kataria)को राज्यपाल बनाए जाने के साथ क्या केन्द्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री (CM in Rajasthan)पद की उम्मीद रखने वालों की लिस्ट छोटी कर रहा है ? क्या वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje)और गजेन्द्र सिंह शेखावत(Gajendra Singh Shekhawat) ही बचे हैं रेस में ? क्या वसुंधरा राजे ही होगी राजस्थान में बीजेपी का सीएम फेस(CM face of BJP) ?
Vasundhara Raje : पिछले दिनों जब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और मेवाड़ से आने वाले बीजेपी के कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बनाने का फैसला लिया गया तो राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं थी, कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने एक तीर से दो निशाने लगाए हैं.
एक ये की कटारिया जैसे कद्दावर नेता को उनकी जीवन भर की सेवा के लिये पार्टी की ओर से राज्यपाल बना कर पारितोषिक दिया गया है. वहीं दूसरा ये कि बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद को लेकर प्रदेश बीजेपी में चल रही मगजमारी में एक ऐसे नेता का नाम कट कर दिया, जो मुख्यमंत्री पद को लेकर एक दावेदार हो सकता था.
याद करना जरूरी है कि पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान भी कटारिया ने मेवाड़ से एक राजनीतिक यात्रा शुरू करने का ऐलान किया था. ये वो वक्त था जब वसुंधरा सिटिंग सीएम थी और राजस्थान बीजेपी में उनकी तूती बोला करती थी.
यही कारण था कि कटारिया उस वक्त लाख चाहते हुए भी वो राजनीतिक यात्रा नहीं निकाल पाए. जाहिर है 2018 के चुनावों से ठीक पहले केंद्रीय आलाकमान किसी भी तरह की रिस्क नहीं लेना चाहता था और वसुंधरा राजे के बीजेपी में वर्चस्व को चुनौती देकर किसी भी तरह से पॉलिटिकल इम्बेलेन्स की स्थिति से बचना चाहता था.
बात सच है कि वसुंधरा को राजपूत समाज की ओर से लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा था. खास बात ये है कि ये विरोध आनंदपाल एन्काउटर की वजह से था और पेंच ये था कि तत्कालीन गृहमंत्री रहते हुए गुलाबचंद कटारिया भी विरोध के कारण में भागीदार थे.
नतीजा ये हुया कि वसुंधरा राजे के चेहरे पर बीजेपी चुनाव में उतरी और चुनाव हारी. हालांकि वसुंधरा समर्थकों का कहना था कि राजस्थान में सरकार बदलने की परंपरा रही है और हार का ठीकरा वसुंधरा के माथे फोड़ना सही नहीं होगा.
पिछले साढ़े चार साल के दौरान राजस्थान बीजेपी ने कई एक्सपेरिमेंट किये नेता के तौर पर बीजेपी में कई चेहरों को टटोला भी गया, लेकिन अभी तक कोई ऐसा नया नेता मैदान में नहीं दिखाई दिया. जिसका जादू बाबो सा माने स्व. भैरोसिंह शेखावत जैसा हो, या फिर दीवानगी ऐसी जो 2003 में वसुंधरा की ताबड़तोड़ जातिगत सभाओं के बाद वसुंधरा राजे के लिए देखी गई हो.
कुल मिलाकर बीजेपी ने तमाम चेहरों को टटोलने के साथ ही ये पाया कि फिलहाल बीजेपी में कोई ऐसा फेस नहीं है. जो सीएम के तौर पर एक मास अपील रखता हो. हालांकि इस बीच जोधपुर से आने वाले केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने जमकर पसीना बहाया.
2019 लोकसभा चुनाव में सिटिंग सीएम गहलोत के पुत्र वैभव को चुनाव में हराना उनके साफे में एक तुर्रा था. साथ ही दिल्ली दरबार तक उनकी सीधी पहुंच उनके फेवर में हवा भी बनाती रही. लेकिन राजस्थान की जमीन पर जिस जादू की उम्मीद किसी चेहरे से दिल्ली को थी. वो निर्विवाद रूप से गजेन्द्र सिंह शेखावत पर आज की तारीख में खत्म होती नहीं दिख रही.
मोदी शाह और नड्डा ये जानते है कि 2024 से पहले राजस्थान समेत 4 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव काफी कुछ तय कर सकते हैं और यही वजह है कि वो राजस्थान को किसी भी सूरत में हाथ से नहीं गवाना चाहते. पिछले कुछ दिनों से वसुंधरा की सभाएं और मोदी की सभा में वसुंधरा को मिल रही तरजीह भी ये स्पष्ट कर रही है की वसुंधरा से आलाकमान की दूरियां ना सिर्फ कम हुई है बल्कि आलाकमान वसुंधरा को लेकर कुछ तय करने के मूड में है.
यही वजह है कि राज्यपाल का नाम फाइनल करने की जब बारी आई तो वसुंधरा को राज्यपाल बनाने के बारे में विचार नहीं हुआ. मतलब साफ है कि आलाकमान वसुंधरा को फिलहाल एक्टिव पॉलिटिक्स से बाहर नहीं करना चाहता. साथ ही पिछले लंबे वक्त से राजस्थान बीजेपी के पोस्टरों से अंतरध्यान वसुंधरा का पुन: प्राकट्य उनके रेस में सबसे आगे होने का संकेत दे रहा है.
इतिहास गवाह भी है कि सालों से वसुंधरा का जमकर विरोध करने वाले एक-एक कर कैसे राजस्थान की एक्टिव पॉलिटिक्स से बाहर हुए और वसुंधरा को टक्कर देने वाले ठिकाने लगते गए. अब जब कटारिया संवैधानिक पद पर चले गये हैं तो वसुंधरा को चुनौती देने वालों की लिस्ट आलाकमान ने खुद ही छोटी कर दी है.
वसुंधरा राजे के अलावा क्या बीजेपी के पास कोई और चेहरा नहीं है ?
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