अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज लिंबाराम की हालत गंभीर, सीएम गहलोत ने दी 10 लाख रु. की मदद
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर संवेदनशीलता दिखाते हुए अंतराष्ट्रीय तीरंदाज लिंबाराम को इलाज के लिए 10 लाख रुपये की अर्थिक सहायक दी है. तीरंदाज लिंबाराम की तबियत खराब चल रही है.
Jaipur/ Delhi: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Chief Minister Ashok Gehlot) ने एक बार फिर संवेदनशीलता दिखाते हुए अंतराष्ट्रीय तीरंदाज लिंबाराम (International Archer Limbaram) को इलाज के लिए 10 लाख रुपये की अर्थिक सहायक (Economic Assistant) दी है. तीरंदाज लिंबाराम की तबियत खराब चल रही है. इसलिए दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम (Jawaharlal Nehru Stadium) के होस्टल में रहकर अपना इलाज करा रहे हैं. लिंबाराम के अस्वस्थ होने की जानकारी मिलने पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तुरंत अर्थिक सहायता राशि पहुंचाई. मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद शुक्रवार को प्रिंसिपल रेजिडेंट कमिश्नर शुभ्रा सिंह के मार्फत लिंबाराम को ईलाज के लिए आर्थिक सहायत के रूप में 10 लाख रुपए का चेक भिजवाया.
लिंबाराम ने सीएम अशोक गहलोत (Chief Minister Ashok Gehlot) को आभार जताया और कहा कि सीएम अशोक गहलोत ने बड़ी सहायता दी है. शुक्रवार को 10 लाख दिए हैं. पहले भी 10 लाख की सहायता राशि दे चुके हैं. मेरे सिर का ऑपरेशन होना है, इस अर्थिक सहायता से ईलाज करवाना संभव होगा. लिंबाराम ने सीएम का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि CM साहब को बारंबार प्रणाम, उनकी उम्र बढ़े फिर सीएम बनें जनता की सेवा करें. CM साहब की मेहरबानी से यहां दिल्ली में कोई दिक्कत नही है, मुझे कई बीमारी हैं, ईलाज के लिए मुझे बाहर भी जाना पड़ सकता है. सीएम से कहूंगा जरूरत पड़े तो आगे भी मुझे मदद करें.
लिंबाराम (Limbaram) का जन्म राजस्थान के उदयपुर जिले की झाड़ोल तहसील के सारादीत गांव में 1972 में आदिवासी भील परिवार में हुआ था. राजस्थान का यह इलाका आदिवासी बहुल इलाका है. आज भी यहां के कई गांव विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं. इस क्षेत्र के आदिवासी उस परंपरा से आते हैं, जिन्होंने मेवाड़ के महाराणा प्रताप को अकबर के साथ हुए युद्ध में सहायता की थी. इनके धनुष-बाण शिकार के काम आते रहे हैं. लिंबाराम भी अचूक निशानेबाज थे और अपने तीरों से तीतर-बटेर के शिकार किया करते थे.
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लिंबाराम बचपन में गांव के दोस्तों के साथ शर्तों पर नारियल व खजूर को निशाना बनाते थे, उन्हें नहीं पता था कि एक दिन वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीरंदाजी में पहचान बनाएंगे, लेकिन बचपन के इस शौक ने उनके अंतरराष्ट्रीय मंच पर जाने की राह खोल दी. उन्होंने बचपन से वे घर में दादा व परदादा के धनुष व भाले देख बड़े हुए, जिससे उनका तीरंदाजी में बचपन से ही रुझान बढ़ गया. पिता को तीर-धनुष बनाते देख धनुष व तीर बनाना सीखा और अपने बड़े भाई से तीरंदाजी की तालीम ली. लिंबाराम ने बताया कि बचपन में वे निशानेबाजी के साथ-साथ गांव में दोस्तों के साथ कपड़े से बनी फुटबॉल से खेलते थे.
जब लिंबाराम की उम्र 15 साल की थी तो वर्ष 1987 में एक दिन उनके चाचा खबर लाए कि सरकार इस इलाके के अच्छे तीरंदाजों का चयन करने के लिए पास के गांव में एक कैंप में लगा रही हैं. लिंबाराम जैसे कई लड़के उस कैंप में पहुंचे. उस समय लिंबाराम सहित तीन लोगों का चयन हुआ था. इनमें एक श्याम लाल भी थे, जिनको बाद में अर्जुन अवॉर्ड मिला था. खेल विकास प्राधिकरण इन तीनों को दिल्ली ले आई और यहां आरएस सोढ़ी ने इन्हें प्रशिक्षण देना शुरू किया.
लिंबाराम की उपलब्धियां
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लिंबाराम को 1987 में भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा देखा गया और प्रशिक्षित किया गया. उसी वर्ष वह बैंगलोर में आयोजित राष्ट्रीय जूनियर स्तर की तीरंदाजी टूर्नामेंट में समग्र चैंपियन बने. ठीक एक साल बाद 1988 में लिंबाराम नेशनल सीनियर लेवल टूर्नामेंट में विजयी हुए. 1989 में वह स्विट्जरलैंड के लुसाने में आयोजित विश्व तीरंदाजी चौंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल में पहुंचे. उसी वर्ष वह व्यक्तियों में एशियाई कप में दूसरे स्थान पर रहे और भारत को गोल्ड मिला. उन्होंने तीन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया. 1992 में उन्होंने 30 मीटर स्पर्धा में बीजिंग एशियाई तीरंदाजी चैंपियनशिप में ताकायोशी मत्सुशिता के विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की. 1996 में वे एशियाई रिकॉर्ड के साथ राष्ट्रीय चैंपियन बने. उन्हें 1991 में अर्जुन पुरस्कार और 2012 में पद्मश्री से सम्मानित किया उन्होंने भारत को कई पदक दिलाए.
Report- Manohar Vishnoi