Jaipur: अस्पताल ने बदल दिए बच्चे, बेटा लेने को सब राजी लेकिन बेटी को करवाना होगा DNA टेस्ट
Jaipur: जयपुर के सांगानेरी गेट महिला चिकित्सालय में दो बच्चों की अदला-बदली का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. अस्पताल प्रशासन 1 सितंबर से लेकर अब तक ये तय नहीं कर पाया है कि आखिर हकीकत में बेटा किसका है और बेटी किसकी.
Jaipur: जयपुर के सांगानेरी गेट महिला चिकित्सालय में दो बच्चों की अदला-बदली का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. अस्पताल प्रशासन 1 सितंबर से लेकर अब तक ये तय नहीं कर पाया है कि आखिर हकीकत में बेटा किसका है और बेटी किसकी. सांगानेरी गेट महिला चिकित्सालय प्रशासन की मानें तो गलती से बेटा और बेटी की अदला-बदली हो गई है लेकिन अब दो परिवारों के बीच बेटे की चाह को लेकर जंग शुरू हो गई है.
दोनों परिवार अस्पताल की ओर से तैयार किए गए सबूतों को तभी मानने को तैयार है, जब उन्हें बेटा दिया जाए. वहीं बेटी देने पर डीएनए टेस्ट की मांग की जा रही है. ऐसे में दोनों परिवार बेटी को तब तक अपनी संतान मानने को तैयार नहीं है, जब तक उसका डीएनए टेस्ट नहीं करवा लिया जाए. वहीं बेटा उनका ही है यह बिना टेस्ट के मानने को तैयार है. इसके लिए कोई सबूत नहीं चाहिए लेकिन अपनी ही बेटी को अपनाने के लिए डीएनए टेस्ट का सबूत चाहते है.
क्या है पूरा मामला
जयपुर के सांगानेरी गेट महिला चिकित्सालय में चार दिन बाद भी दो नवजाद बच्चों को उनकी मां नहीं मिल पा रही है. अस्पताल में सात दिन पहले हुए निशा और रेशमा की डिलीवरी के दौरान हुए बच्चों में अस्पताल स्टाफ की लापरवाही से बदल गए. अब अस्पताल प्रशासन से हुई इस लापरवाही के बाद दोनों ही परिवार लड़की को अपनाने से इंकार कर रहे है. दोनों परिवार के परिजनों का दावा है कि बेटा उनका है. वहीं बेटी देते है तो उससे पहले डीएनए जांच करवा कर सबूत दिया जाए. वहीं अस्पताल प्रशासन ब्लड कोड के आधार पर तय कर चुका है कि बेटी रेशमा की है और बेटा नेहा का.
अस्पताल प्रशासन मामले को दबाने में जुटा है लेकिन परिजनों के अड़ जाने के बाद एक छह सदस्यीय जांच कमेटी बनाई गई है और अस्पताल प्रशासन की ओर से हुई इस लापरवाही की जांच अभी तक पूरी नहीं हो पाई है. अस्पताल प्रशासन बार-बार ब्लड कोड के आधार पर जांच कर फैसला देना चाहता है. मंगलवार को फिर ब्लड के सैंपल लिए गए, जिसकी रिपोर्ट आज आएगी और कमेटी आज ब्लड कोड जांच के आधार पर परिजनों का बताएगी कि बेटा किसका है और बेटी किसकी, लेकिन कोई भी परिजन लड़की को लेने से सहमत नहीं है. परिजनों की मांग है कि अस्पताल प्रशासन डीएनए जांच करवाकर सबूत देगा तब ही वह बेटी को लेंगे.
डॉ. रीना पंत की अध्यक्षता में बनाई गई जांच कमेटी भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि ब्लड कोड के आधार पर बेटा निशा का बताया जा रहा है. निशा और बेटे के ब्लड कोड के आधार पर ही यह तय किया गया है. निशा के पति का ब्लड सैंपल नहीं लिया गया है, इसलिए सवाल उठ रहे है कि सिर्फ मां के ब्लड के आधार पर ही कैसे तय हो सकता है.
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ऐसे में एफएसएल से जुड़े एक्सपर्टस से कहना है कि विवाद को हल करने का अब डीएनए ही विकल्प है. डीएनए के द्वारा नवजाद के जीन या ब्लड की जांच होती है. जांच में पता लगता है वह जीन जो माता-पिता से मिलते है. यह टेस्ट उचित पहचान का चयन करने और शिशु का पता लगाने में बहुत कारगर है. आपतकालीन स्थिति में यह जांच की रिपोर्ट तीन से पांच दिनों में आ सकती है.
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