Jamwa Ramgarh: धनुर्धर अर्जुन के तीर से निकली बाण गंगा को पानी की आस, कागजी खानापूर्ति कर रहा प्रशासन
Jamwa Ramgarh: विराटनगर के मैड़ गांव की पहाडि़यों से निकलने वाली बाण गंगा नदी प्रशासनिक उदासीनता के चलते आज वर्षों से सूखी पड़ी है. जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत से अतिक्रमियों ने नदी के बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण कर गला घोंट दिया है.
Jamwa Ramgarh: विराटनगर के मैड़ गांव की पहाडि़यों से निकलने वाली बाण गंगा नदी प्रशासनिक उदासीनता के चलते आज वर्षों से सूखी पड़ी है. जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत से अतिक्रमियों ने नदी के बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण कर गला घोंट दिया है. ऐसे में तेज बारिश होने के बाद भी नदी सूखी रहती है.
नतीजा ये है कि राजधानी जयपुर की वर्षाों तक प्यास बुझाने वाला रामगढ़ बांध आज खुद पानी की बूंद-बूंद को मोहजात है. बाण गंगा नदी के उद्गम स्थल से लेकर रामगढ़ बांध तक करीब 70 किमी की दूरी में अतिक्रमियों ने जगह-जगह कच्चे-पक्के निर्माण कर अतिक्रमण कर लिए और इसके लिए राजस्थान हाइकोर्ट और सरकार द्वारा गठित कमेटी ने दौरा भी किया था, लेकिन दौरा महज कागजी खानापूर्ति में ही सिमट गया.
इसलिए कहते है बाण गंगा
रामगढ़ बांध को पवित्र जल से भरने वाली बाण गंगा का उद्गम महाभारत काल में हुआ. 74 साल तक गंगा जैसे पवित्र और ऊर्जावान गंगा जल का आचमन करने का जयपुर को सौभाग्य मिला. इस बांध ने 1931 से 2005 तक जयपुर को पानी पिलाया. महान धनुर्धर अर्जुन ने अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्रों को गंगा जल से शुद्ध करने के लिए बैराठ के पास मैड़ के जंगल की धरती में तीर चलाकर मां गंगा को आहूत कर प्रवाहित किया था. इस वजह से यह नदी आदिकाल से बाण गंगा नाम से प्रसिद्ध हैं.
आज भी होती है पूजा
आजादी के पहले तक यह नदी बारह महीने बहती थी. मैड़ में बाण गंगा तट पर मेला भरता, जिसमें हजारों लोग इसके गंगा समान पवित्र जल का आचमन कर धन्य होते थे. बाण गंगा के उद्गम स्थल पर राधेकांत जी के पांडव में मंदिर में विराजमान धर्मराज युधिष्ठर, गदाधारी भीम, धनुर्धर अर्जुन, पराक्रमी सहदेव और नकुल के अलावा द्रोपदी की अति दुर्लभ पौराणिक मूर्तियों की आज भी पूजा होती है.
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सर्पधारी गरुड़, कपासन माता, गणेश, हनुमान, कार्तिकेय के अलावा एकादश शिव ज्योतिर्लिंग भी है. कहते है रावण के पिता विसश्रुआ ने इन पहाडियों में तपस्या की थी. पांडवों ने वेश बदलकर राजा विराट के राज्य में वनवास बिताया, तब उन्होंने बाणगंगा उद्गम स्थल के शमी वृक्ष पर अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्रों को छुपाया था. वनवास पूरा होने के बाद अर्जुन ने छुपाए दिव्य अस्त्र-शस्त्रों को गंगा जल से शुद्ध करने का संकल्प कर लिया था. तब अर्जुन ने शमी वृक्ष के पास ही गंगा मैया आह्वान किया और धरती में तीर चलाया तब गंगा मैया वहीं पर प्रवाहित हो गई थी.
Reporter: Amit Yadav
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