Rajasthan में IT एक्ट-2000 लागू होने के 21 साल बाद आया पहला फैसला, परिवादी को मिला न्याय
राजस्थान में पहली बार आईटी एक्ट 2000 (IT Act 2000) की धारा 43 और 43-ए (Section 43 and 43-A) में न्याय मिला हैं.
Jaipur: जुर्म की दुनियां में अपराधी हमेशा कानून को गुमराह करने के लिए नए-नए तरीके ईजाद करते हैं. आए दिन उनके कारनामे खबरों की सुर्खियां बनते हैं. ऐसा ही एक मामला जयपुर में सामने आया हैं. जहां अपराधी ने बहुत शातिर तरीके से किसी अन्य व्यक्ति के नाम से एक्टिवेट सिम (Activate Sim) को खुद के नाम से निकलवाकर पांच दिन में लगभग 70 लाख रूपये का चूना लगा दिया.
लेकिन ठगी का शिकार हुए कृष्णलाल (Krishnalal) ने पुलिस में शिकायत के बाद जागरूकता दिखाते हुए अपने अधिकारों (Rights) का उपयोग किया और जिस कानून के बारे में आमजन को नहीं पता उस एक्ट (ACT) में अपील करते हुए न्याय की मांग की है और नतीजा एक्ट लागू होने के 21 साल बाद न्यायालय न्याय निर्णायक अधिकारी ने सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया है.
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कानून (Law) लागू होने के करीब 21 साल बाद राजस्थान में पहली बार आईटी एक्ट 2000 (IT Act 2000) की धारा 43 और 43-ए (Section 43 and 43-A) में न्याय मिला हैं. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 (आईटी एक्ट) की धारा 43-ए और इंफोर्मेशन टैक्नोलॉजी अधिनियम 2011 (Information Technology Act 2011) के नियमों के तहत न्यायालय न्याय निर्णायक अधिकारी और प्रिसिंपल सेक्रेट्री सूचना प्रौद्योगिकी ने टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया लिमिटेड (Vodafone Idea Limited) पर 27.53 लाख रुपये का जुर्माना (Fine) लगाया है. यह जुर्माना एक व्यक्ति को अलॉट मोबाइल नंबर को धोखे से किसी दूसरे व्यक्ति को अलॉट करने के मामले में लगाया है.
राजस्थान में किसी भी टेलीकॉम कंपनी (Telecom Company) पर इस नियम के तहत जुर्माना लगाने का यह पहला केस है. न्यायालय न्याय निर्णायक अधिकारी प्रमुख सचिव सूचना एवं प्रौद्यागिकी आलोक गुप्ता (Alok Gupta) की ओर से सुनाए गए फैसले में 10 फीसदी की दर से ब्याज राशि चुकाने के निर्देश कंपनी को दिए है. यह आदेश जयपुर के सिविल लाईन्स निवासी कृष्ण लाल नैन जो परिवादी है उनकी ओर से दायर केस पर सुनवाई के बाद दिया गया है.
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क्या है मामला
इस पूरे मामले में वोडाफोन आईडिया लिमिटेड टेलीकॉम कंपनी को दोषी माना गया है, जिसकी ओर से परिवादी के मोबाइल नंबर को किसी दूसरे व्यक्ति को अलॉट कर दिया गया. इस अलॉटेड मोबाइल नंबर के बाद दूसरे व्यक्ति ने परिवादी के बैंक खाते से 68.50 लाख रुपये ओटीपी के माध्यम से ऑनलाइन ट्रांजेक्शन (Online Transaction) भी कर लिए. इस पूरे घटनाक्रम के तीन साल बाद परिवादी ने न्यायनिर्णायक अधिकारी के यहां परिवाद दिया.
परिवादी ने क्या बताया
परिवादी ने बताया कि कंपनी के अधिकारियों ने मिलीभगत करके पहले मेरी सिम को बंद किया और उसके बाद 5 दिन के लिए अलवर के भानु प्रताप नाम के व्यक्ति की फर्जी आईडी से सिम को चालू कर दिया. इस दौरान जब मैं 5 दिन तक हनुमानगढ़ वोडाफोन स्टोर पर संपर्क करता रहा तब भी वहां के कर्मचारियों ने यह नहीं बताया कि उनकी सिम अलवर के स्टोर पर जारी सिम पर चालू हो चुकी है. इसे देखते हुए न्यायनिर्णायक अधिकारी ने कंपनी को दोषी मानते हुए परिवादी को 27.53 लाख रुपये जुर्माने के तौर पर परिवादी को चुकाने के आदेश दिए है.
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दरअसल जयपुर सी-स्कीम निवासी कृष्णलाल नैन के वोडाफोन आईडिया नंबर की सिम 25 मई 2017 को अचानक बंद हो गई. इस पर परिवादी ने हनुमानगढ़ जंक्शन स्थित वोडाफोन कंपनी के स्टोर पर जाकर जब शिकायत की तो वहां बताया गया कि सिम पुरानी हो गई है, नई लेनी पड़ेगी. उस दौरान स्टोर पर परिवादी को नया सिम कार्ड (New Sim Card) भी जारी कर दिया गया, लेकिन नंबर एक्टिवेट नहीं किया. आवेदक ने इसकी बार-बार हनुमानगढ़ स्टोर पर जानकारी भी दी पर नंबर एक्टिवेट नहीं किया गया. इसके बाद 30 मई को आवेदक जयपुर के अजमेर रोड स्थित वोडाफोन स्टोर पर पहुंचा और नम्बर एक्टिवेट करने के लिए निवदेन किया. अगले दिन 31 मई को दिन में आवेदक की सिम एक्टिवेट हो गई. अगले दिन आवेदक को पता चला कि उसके आईडीबीआई बैंक से इन 5 दिनों के अंदर 68.50 लाख रुपये दूसरे बैंक खातों में ट्रांसफर हो गए है.
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बैंक से पैसे निकलने की रिपोर्ट पुलिस में करवाने के बाद जब जांच हुई तो पता चला कि परिवादी के रजिस्टर्ड नंबर (Registered Number) पर ओटीपी (OTP) आने के बाद पैसे ट्रांसफर किए गए है. जांच में पता चला कि रजिस्टर्ड नंबर जो 25 मई को बंद हो गया था उसी दिन अलवर में किसी भानू प्रताप नाम की आईडी वाले व्यक्ति को अलॉट करके चालू कर दिया गया. इस दौरान वोडाफोन स्टोर पर आईडी की ठीक से जांच नहीं की और बिना जांच के ही कृष्णलाल नैन का नंबर भानूप्रताप को अलॉट कर दिया गया. इस नंबर पर आए बैंक ओटीपी से 6 अलग-अलग ट्रांजेक्शन के जरिए बैंक खाते से 68 लाख 50 हजार रुपये दूसरे बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिए गए.
अगर उपभोक्ता जागरूक हो तो वह ठगी और धोखाधड़ी से बच सकता है. साथ ही धोखाधड़ी और ठगी करने वाले को सजा भी दिलाई जा सकती है, ताकि वह अन्य किसी के साथ ऐसा नहीं करे.