Jaipur: नगर निगम में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण कर रही बीवीजी कंपनी (BVG Company) का बकाया भुगतान भी सवालों के घेरे में है. कंपनी खुद का 300 करोड़ रुपये से ज्यादा बकाया बता रही है. 


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निगम ने कंपनी को 50-60 प्रतिशत से ज्यादा कभी भुगतान नहीं किया तो आखिर कंपनी इतने कम भुगतान में किस तरह काम चला रही थी? क्या यही तो वजह नहीं थी कि कंपनी ने कभी अनुबंध शर्तों का पालन ही नहीं किया. 


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जयपुर शहर में कचरा संग्रहण का ठेका लेने वाली कंपनी भारत विकास ग्रुप (बीवीजी) का दबदबा नगर निगम से लेकर सियासी नेताओं तक रहा है. कुछ राजनीतिक दल भी इससे अछूते नहीं रहे. 


उपायुक्तों ने सही गणना करके बिल नहीं भेजे
जानकारों के मुताबिक, ग्रेटर नगर निगम के मौजूदा बोर्ड में कंपनी को बाहर का रास्ता दिखाने की कवायद शुरू हुई तो सियासी हलचल मच गई. राजस्थान से लेकर दूसरे राज्यों के सियासी हलकों तक मामला पहुंचा. जबकि नगर निगम की ईसी की बैठकों में कंपनी की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठे. कंपनी को फाइनल टर्मिनेशन नोटिस देने की तैयारी हो चुकी थी और नया टेंडर डॉक्यूमेंट भी तैयार हो गया था. इसके बाद भी निगम ने ढिलाई बरती और कंपनी कोर्ट से स्टे ले आई. यही नहीं, खुद आयुक्त ने भी कंपनी के बकाया भुगतान की सही गणना के लिए सभी उपायुक्तों को भी निर्देश दिए थे. इसके बाद भी उपायुक्तों ने सही गणना करके बिल नहीं भेजे थे.


हूपर में दोनों तरह के कचरे एक साथ ही एकत्रित किए जा रहे
उधर BVG कंपनी ने अनुबंध के चार साल बाद भी ज्यादातर शर्तों पर अमल ही नहीं किया. सबसे बड़ी बात है कि कंपनी को तीनों पैकेज के लिए अलग-अलग कॉल सेंटर बनाने थे, लेकिन कंपनी ने दो ही कॉल सेंटर बनाए, वो भी निगम में आईटी सेवाएं उपलब्ध करवा रही ओसवाल डाटा कंपनी के साथ. इनमें भी एक कॉल सेंटर हैरिटेज निगम का दफ्तर खुलने के बाद शुरू किया गया. कंपनी की अनियमितताओं को लेकर एसीबी में पहले भी शिकायतें हो चुकी हैं. 


खास बात यह है कि डोर टू डोर कचरा संग्रहण शुरू करने का सबसे बड़ा मकसद सेग्रीगेशन का काम करना था यानि गीला और सूखा कचरा अलग-अलग एकत्रित करना. मगर आज भी शहर में इस दिशा में कोई काम नहीं हो पाया है. हूपर में दोनों तरह के कचरे एक साथ ही एकत्रित किए जा रहे हैं. इसके अलावा ओपन डिपो की वजह से सड़कों का कचरा फैला रहता था. डोर टू डोर कचरा संग्रहण शुरू होने के बाद निगम को ये डिपो बंद करने थे, लेकिन आज भी डिपो बने हुए हैं और पहले ही तरह की कचरा सड़कों पर डाला जा रहा है.


कंपनी ने सही अनुपात में पैसा खर्च नहीं किया
नगर निगम और BVG कंपनी के अनुबंध से पहले निगम ने जब डोर टू डोर कचरा संग्रहण को लेकर जो नियम बनाए थे. उसमें हर पैकेज में खर्च होने वाले रुपये का भी हिसाब शामिल किया गया था. इस हिसाब से कंपनी को करीब 125 करोड़ रुपये वाहनों की खरीद, ऑपरेशन, ऑफिस, स्टाफ पर खर्च करना था, लेकिन कंपनी सही अनुपात में पैसा खर्च नहीं किया, ​जिसकी वजह से शुरू से ही कंपनी सही तरीके से काम नहीं कर पाई. अनुबंध की शर्तों में कंपनी को वाहनों पर व्हीकल ट्रेकिंग सिस्टम लगाया जाना था, लेकिन आज तक यह सिस्टम गाड़ियों पर नहीं लगाया गया. 


वाहनों पर हो रहे खर्च का भी कोई हिसाब नहीं
इस वजह से वाहन कितने फेरे लगा रहा है, इसका कोई रिकॉर्ड निगम के पास नहीं है. कंपनी के ड्राइवर और श्रमिक भी निर्धारित ड्रेस में नहीं रहते हैं. वही डोर टू डोर कचरा संग्रहण का ठेका देने के बाद भी शहर में नगर निगम के 150-200 वाहन आज भी कचरा संग्रहण में लगे हुए हैं, जबकि कंपनी को तीनों पैकेज में पूरे शहर से कचरा उठाना था. ऐसे में निगम के इन वाहनों पर हो रहे खर्च का भी कोई हिसाब नहीं है. दूसरी तरफ सबसे बड़ी गड़बड़ यह है कि कंपनी को घरों के बाहर नगर निगम की ओर से झाडू लगाकर बनाई गई ढेरियों को उठाना था, लेकिन आज तक बीवीजी कंपनी के कर्मचारी ये ढेरियां नहीं उठाते हैं. 


निगम में बनी कथित हाथापाई की स्थिति
बहरहाल, नगर निगम ग्रेटर की स्वास्थ्य एवं स्वच्छता समिति के चेयरमैनों को बीवीजी के इस मामले से एकाएक दूर हो जाना चर्चा का विषय रहा जबकि इससे पहले तक सभी चेयरमैन निलम्बित महापौर के साथ शहर की बिगड़ी कचरा संग्रहण व्यवस्था के लिए जिम्मेदार कंपनी को बाहर का रास्ता दिखाने का ब्लू प्रिंट तैयार कर रहे थे लेकिन एकाएक सभी ने चुप्पी साध ली और केवल अपने स्तर तक ही मॉनिटरिंग करने का दायरा सीमित कर लिया. निगम में कथित हाथापाई से पहले ही यह स्थिति बनी.