Jaipur News: नगर निगम अब वेस्ट टू एनर्जी प्लांट से घर से निकलने वाले कचरे से अब निगम बिजली बनाएगा.इसकी तैयारियां निगम स्तर पर जोरों पर चल रही हैं.इसके अलावा जल्द ही कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन (सीएंडडी) वेस्ट का प्लांट चालू हो जाएगा.इससे सडक़ किनारे लगे मलबे के ढेर भी नहीं दिखेंगे.


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700 मीट्रिक टन कचरे से 12 मेगावाट बिजली मिलेगी
इन प्लांट के चालू होने से शहरी सरकारों को दोहरा फायदा होगा.निगम अधिकारियों की मानें तो दोनों नगर निगमों से वेस्ट टू एनर्जी के तहत पहले फेज में 700 मीट्रिक टन कचरे का निस्तारण होगा और उससे 12 मेगावाट बिजली रोज बनाई जाएगी.जो भी बिजली बनेगी, उसे जयपुर विद्युत वितरण निगम को 7.31 रुपए प्रति किलो वाट की दर से दी जाएगी.



यह दर राजस्थान इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेटरी कमीशन द्वारा निर्धारित है.जिंदल अर्बन वेस्ट मैनेजमेंट दिल्ली के साथ हेरिटेज निगम ने अनुबंध किया है.लांगडिय़वास में वेस्ट टू एनर्जी प्लांट तैयार किया किया जा रहा है.करीब 20 हैक्टेयर जमीन निगम ने उपलब्ध करवाई है.जो बिजली बनेगी, उसे डिस्कॉम 7.30 रुपए प्रति यूनिट में खरीदेगा.इसका कंपनी और डिस्कॉम के बीच एमओयू भी हो चुका हैं.


मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (एमआरएफ) प्लांट भी धरातल पर उतरेगा
इस प्रोजेक्ट पर 185 करोड़ रुपए खर्च होंगे और इसमें से नगर निगम 25 करोड़ रुपए देगा.बाकी पैसे कम्पनी ही खर्च करेगी...खास बात यह है कि निगम जो कचरा देगा, उसका 66 रुपए प्रति टन के हिसाब से शुल्क भी वसूलेगा.यानी निगम को सालाना 1.69 करोड की इनकम होगी.


हालांकि जयपुर में निगम के तीन एरिया मथुरादासपुरा, लांगड़ियावास और सेवापुरा में कचरे के पहाड़ हैं.जिसका निस्तारण होने में भी कई सालों का समय लगेगा.उसकी बड़ी वजह बिना सेग्रीगेशन के कचरे का डम्पिंग यार्ड पर आना है.घरों से जो कचरा आता है, वो मिक्स होता है.इसकी वजह से कचरे का संपूर्ण निस्तारण नहीं हो पाता है.



उधर लांगडिय़वास में सीएनडी वेस्ट प्लांट का काम भी अंतिम दौर में चल रहा है.अप्रेल में इसे चालू कर दिया जाएगा.300 टन प्रतिदिन सीएंडडी वेस्ट का इस प्लांट पर निस्तारण होगा.लांगडिय़वास में निगम ने 2.5 हैक्टेयर जमीन दी है. ही निगम एक हेल्पलाइन नम्बर जारी करेगा.उस नम्बर पर फोन कर शहरवासी कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन वेस्ट को उठवा सकेंगे.इसकी दर जल्द तय की जाएगी.जिसका नोटिफिकेशन भी जारी होगा.



नगर निगम अधिकारियों के मुताबिक जयपुर शहर में सड़कों पर फैला मकानों का मलबा भी अब उपयोग में आ सकेगा.इसमें पुराने मकानों को तोड़ने के बाद जो मलबा बचता है.उसका उपयोग इंटरलॉकिंग टाइल्स व ब्लॉक्स बनाने के काम में लिया जा सकेगा.रोजाना 300 टन मलबे का कलेक्शन, ट्रांसपोर्टेशन व प्रोसेसिंग की जाएगी.



टाइल्स, इंटर लॉकिंग व एम सेंड को भी निगम भुगतान कर उपयोग में ले सकेगा.दरअसल जयपुर शहर की सड़कों पर कई सालों से मलबा पड़ा था.यह मकानों को तोड़ने के बाद गुपचुप तरह से सड़कों पर डाला जा रहा है. इसे ना तो निगम उठाता है और ना ही कचरे के वाहन उठाते हैं.इस मलबे से कई सड़कों पर वाहनों की आवाजाही भी बाधित हो जाती है. 


तरह मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (एमआरएफ) प्लांट भी जल्द धरातल पर उतरेगा.डेढ़ हैक्टेयर में इसे विकसित किया जा रहा है.300 टन कचरा प्रतिदिन फर्म होटल और रेस्टोरेंट से एकत्र करेगी.खास बात यह है कि निगम को कम्पनी 15.50 रुपए प्रति टन की रॉयल्टी भी देगी.14 करोड़ रुपए प्लांट में खर्च होंगे और निगम 10 करोड़ रुपए खर्च करेगा.निगम अधिकारियों की मानें तो जो कम्पनी प्लांट लगा रही है, वही कचरा संग्रहण करेगी.


साथ ही यूजर चार्ज भी वसूलेगी यूजर चार्ज का 50 फीसदी निगम कोष में भी कम्पनी जमा करवाएगी..लांगडिय़ावास में कचरे से ईंधन बनाने वाले रिफ्यूज डिराइव्ड फ्यूल (आरडीएफ) प्लांट वर्ष 2008 से चल रहा है.इसकी क्षमता 350 टन है.लेकिन अभी कम्पनी को 220 टन कचरा ही मिल पा रहा है.



बहरहाल, स्वच्छ भारत मिशन के सपना तब ही साकार होगा जब राजधानी कचरा मुक्त होगी.इस लिहाज से वेस्ट टू एनर्जी मील का पत्थर साबित होगा.शहर से निकलने वाले कचरे का नियमित रूप से निस्तारण हो सकेगा.जहां कचरागाह हैं, वहां शहरी सरकारें सौंदर्यीकरण किया जाएगा.जयपुर में पहली बार सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर काम शुरू हुआ है.इसमें जनता का सहयोग भी जरूरी हैं.जो सूखा और गीला कचरा अलग-अलग करके निगम के वाहनों में डाले.


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