Jaipur News: राजस्थान में 25 सितंबर को कांग्रेस विधायकों द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को दिए गए इस्तीफे के बाद अब विधायकों द्वारा ही इस्तीफे वापस लिए जाने की तैयारी है. इस बीच प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ ने इस्तीफा प्रकरण को नौटंकी करार दिया और कहा कि इस्तीफा वापस लेने से अब स्पष्ट हो गया कि विधायकों ने स्वेच्छा से अपने इस्तीफे दिए थे. यह तो वह वाली बात हो गई कि 'थूको और फिर चाटो'. राठौड़ ने विधायकों के 3 माह तक के वेतन भत्ते और इस दौरान विधायकों द्वारा विधायक कोष से जारी की गई स्वीकृतिया निरस्त करने की मांग की है.


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उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने ज़ी राजस्थान से कहा कि विधायकों के इस्तीफा देने के मामले में उन्होंने पिछले दिनों राजस्थान हाईकोर्ट में पीआईएल लगाई थी. पीआईएल की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी और सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया था. उनसे इस मामले में जवाब देते नहीं बन रहा है, क्योंकि संविधान में उल्लेख है कि इस्तीफे दिए जा सकते हैं, उन्हें वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है. पहले कह रहे थे त्याग पत्र दिए नहीं और अब वापस ले रहे हैं, हमारी भाषा में इसे 'थूको और फिर चाटो' कहते हैं.


राठौड़ से कोर्ट से यह मांग करेंगे 
इस मामले में आगामी 2 जनवरी को हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है. राठौड़ के अनुसार वह हाईकोर्ट में अब मांग करेंगे कि 90 से 95 दिन दिन कांग्रेस विधायकों ने अपने इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष को सौपे थे और उसके बाद भी कैबिनेट की बैठक में बैठकर निर्णय लिए जा रहे थे और वेतन भत्ते उठाए जा रहे थे, वह वापस लिए जाएं. साथ ही जो स्वीकृतियां बतौर विधायक उन्होंने विधायक कोष से जारी कि उसे भी निरस्त की जाए.


राठौड़ ने कहा कि सितंबर में कांग्रेस के 92 विधायकों ने त्यागपत्र दिए थे और यह नौटंकी काफी लंबी चली इस बीच तीन बार हमने विधानसभा अध्यक्ष को पत्र भी लिखा और एक बार नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया की अगुवाई में मुलाकात कर इस्तीफों पर निर्णय सुनाए जाने की मांग की, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने कोई निर्णय नहीं सुनाया तो मजबूरन हमें हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी. 


राठौड़ ने कहा कि कांग्रेस विधायकों का इस्तीफा और विधानसभा अध्यक्ष द्वारा निर्णय ना सुनाया जाना प्रजातंत्र का मजाक और संविधान का माख़ौल है. प्रतिपक्ष के उपनेता ने कहा कि जिस प्रकार कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष और पार्टी आलाकमान के जो दूत थे उनका राजस्थान कांग्रेस की सरकार और विधायकों ने अनादर किया वह सीएम की कुर्सी बचाने की नौटंकी थी.


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