2 से ज्यादा बच्चों पर राजस्थान सरकार नहीं दे रही नौकरी...अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया शॉकिंग जवाब
Jaipur News: दो बच्चों के नियम पर राजस्थान सरकार की देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट की भी मुहर लग गई है. सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि अगर दो से ज्यादा बच्चे हैं तो सरकारी नौकरी देने से मनाही गैरभेदभावपूर्ण है. कोर्ट के मुताबिक, प्रावधान के पीछे का असली मकसद परिवार नियोजन को बढ़ावा देना है.
Jaipur News: राजस्थान सरकार की तरफ से दो बच्चों के नियम पर देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट की भी मुहर लग गई है. सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि अगर दो से ज्यादा बच्चे हैं तो सरकारी नौकरी देने से मनाही गैरभेदभावपूर्ण है. कोर्ट के मुताबिक, प्रावधान के पीछे का असली मकसद परिवार नियोजन को बढ़ावा देना है. यहां तक की पंचायत चुनाव लड़ने के लिए भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह के नियम को हरी झंडी दिखाई थी. देश की सर्वोच्च अदालत के अनुसार यह नियम पॉलिसी के दायरे में आते हैं और इनमें दखल की कोई भी आवश्यकता नहीं है.
दरअसल जस्टिस दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति, केवी विश्वनाथन और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने 12 अक्टूबर 2022 के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. जानकारी के अनुसार, पूर्व सैनिक रामजीलाल जाट की याचिका खारिज हो गई है. बता दें कि 2017 को रक्षा सेवाओं से रिटायरमेंट के बाद जाट ने राजस्थान पुलिस कांस्टेबल में पद के लिए 25 मई 2018 को आवेदन दिया था लेकिन जाट की उम्मीदवारी को राजस्थान पुलिस अधीनस्थ सेवा नियम 1989 के नियम 24 (4) के अंतर्गत खारिज कर दिया गया था, वजह 1 जून 2002 के बाद उसके दो से ज्यादा बच्चे थे और इसकी वजह से वह सरकारी रोजगार के लिए अयोग्य माना गया.
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इन नियमों में बताया गया कोई भी कैंडिडेट सेवा में नियुक्ति के पात्र नहीं होगा, अगर उसके 1 जून 2002 को या फिर उसके बाद दो से अधिक बच्चे हों. अदालत का कहना है कि यह निर्विवाद है. अपीलकर्ता ने राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल पद पर भर्ती के लिए अप्लाई किया था और यह भर्ती राजस्थान पुलिस अधीनस्थ सेवा नियम 1989 के द्वारा शासित होती है.
अदालत की मानें तो इस तरह का प्रावधान पंचायत चुनाव लड़ने के लिए पात्रता शर्त के रूप में भी पेश किया जा चुका है. उसे भी सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था. अदालत ने तब भी कहा था कि वर्गीकरण, जो दो से अधिक जीवित बच्चे होने पर कैंडिडेट को सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य घोषित करता है, यह गैर भेदभावपूर्ण और संविधान के दायरे से बाहर है क्योंकि ऐसे प्रावधान का उद्देश्य परिवार नियोजन को बढ़ावा देना है.