Jaipur: संसद में इन दिनों शीतकालीन सत्र चल रहा है. उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है लेकिन तमाम मामलों के बीच संसद में सियासी पारा उफान पर है. किसान आंदोलन (Kisan Andolan) से लेकर सांसदों के निलंबन तक कई ऐसे मामले हैं, जिसकी वजह से छोटे-छोटे मुद्दों की ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता है.


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राजस्थान (Rajasthan) से बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा (Kirodi Lal Meena) ने इसी सत्र में दो ऐसे मुद्दे उठाए हैं, जो न सिर्फ बीजेपी बल्कि संघ के प्रमुख एजेंडों में से रहे हैं. 3 दिसंबर को सासंद किरोड़ीलाल मीणा ने संसद में भारत में समान नागरिक संहिता विधेयक, 2020’ पेश किया. समान नागरिक संहिता RSS की राम मंदिर (Ram Mandir) निर्माण के बाद दूसरी सबसे बड़ी मांग रही है. 


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इसी संसद सत्र में मीणा ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग की. राज्यसभा में किरोड़ीलाल मीणा ने कहा कि गाय भारतीय संस्कृति का हिस्सा है. जहां गाय को पूजा जाता है. गौ, गीता, गंगा और गायत्री सनातन संस्कृति की पहचान हैं. इसलिए ये वक्त की मांग है. इसलिए गाय की रक्षा को हिंदुओं का मूल अधिकार बनाना चाहिए.


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संघ जिस राजनैतिक और शासन की सोच के साथ आगे बढ़ता है. उसमें चाणक्य के नीति शास्त्र का अक्श देखने को मिलता है. विशेष तौर से राष्ट्र, राष्ट्र की सुरक्षा और संस्कृति के मामलों में संघ अक्सर चाणक्य का जिक्र करता है. किरोड़ी मीणा ने भी राज्यसभा में चाणक्य का जिक्र करते हुए कहा कि चाणक्य ने कहा था कि किसी देश को नष्ट करना है, तो पहले उसकी संस्कृति नष्ट कर दो. देश अपने आप ही नष्ट हो जाएगा.


मुद्दे उठाने के मायने क्या ?
किरोड़ीलाल मीणा जब संसद में समान नागरिकता संहिता पर प्राइवेट बिल लाते हैं. गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग उठाते हैं तो सवाल उठता है कि इसके पीछे क्या मायने हैं? क्या संघ की पौधशाला से निकले किरोड़ी उन मुद्दों को लेकर मुखर हो रहे हैं, जो संघ के एजेंडे में रहे हैं या फिर पार्टी समान नागरिक संहिता पर निजी बिल पेश कराकर टोह लेना चाहती है. ताकि समाज में इस पर धीरे-धीरे बहस शुरु कराई जा सके. या फिर अब वो वक्त आ गया है. जब सरकार इस तरह से निजी बिलों के जरिए ही इन मुद्दों पर संसद में बहस छेड़ना चाहती है और अगर समान नागरिक संहिता से लेकर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के मुद्दों पर बहस तेज होती है. तो बीजेपी को सबसे बड़ा सियासी फायदा होगा. 


वो मौके, जब किरोड़ी ने किया संघ का काम
ऐसा नहीं है कि किरोड़ीलाल मीणा पहली बार कोई ऐसा मुद्दा उठा रहे हैं, जो संघ की सोच के मुताबिक हो. पिछले दो सालों में वो कई ऐसे काम कर चुके है जो संघ के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष एजेंडों में रहा है. डूंगरपुर में हुई हिंसा से लेकर आमेर प्रकरण और अब संसद तक वो ऐसे ही मुद्दे उठाते रहे.


स्वर्ण दलित एकता की कोशिश
सितंबर 2020 में शिक्षक भर्ती को लेकर डूंगरपुर में हुआ आंदोलन हिंसक हो गया था. पुलिस प्रशासन की कई गाड़ियों में आग लगा दी गई. रात के समय इलाके की कई होटलों में तोड़फोड़ हुई. इसकी वजह से यहां स्वर्ण और दलित वर्ग के बीच में गहरी खाई पैदा हो गई. कुछ दिनों में प्रशासन ने कानून व्यवस्था बहाल की. सबकुछ शांत हुआ लेकिन समाजों के बीच जब नफरत की आग भड़कती है तो वो अंदर ही अंदर ज्वाला बनती है. ऐसे में किरोड़ीलाल मीणा करीब एक सप्ताह तक वागड़ इलाके में घूमे. आदिवासी भाईयों से लेकर स्वर्णों के बीच भी गए. और समाज में बिखराव को कम करने की कोशिश की.


संघ पिछले कई सालों से दलित और आदिवासी समाज को साथ में जोड़ने की कोशिश में लगा है. ऐसे में अगर इस तरह के आंदोलनों से स्वर्णों और दलितों में दूरियां बढ़ती है तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान संघ को ही होता है. 


आमागढ़ मामले में भूमिका
डूंगरपुर के बाद जयपुर के आमागढ़ में ध्वज फहराने को लेकर हुए विवाद में भी एक बार ऐसा लगा कि यहां मीणाओं और दूसरी जातियों के बीच टकराव हो सकता है. रामकेश मीणा जैसे विधायकों ने इस मामले को ये कहकर तूल दिया कि मीणा हिंदू है ही नहीं. ऐसे में ध्वज फहराने को लेकर दोनों समाजों में टकराव हो सकता था. लेकिन पुलिस के कड़े पहरे और बारिश के बावजूद रात 3 बजे जंगलों के रास्ते से जाकर किले पर ध्वज फहराया. मामले को इस तरीके से हैंडल किया कि हिंदू एकता भी बनी रहे और मीणा समाज का सम्मान भी बना रहे. 


संसद के इस सत्र में दो बड़े मुद्दे उठाने के बाद कयास यही है कि क्या संघ या बीजेपी इन मुद्दों पर नई बहस छेड़ना चाहते हैं या इन मुद्दों को उठाना किरोड़ीलाल मीणा की उस मूल सोच का हिस्सा है, जहां वो अक्सर हिंदुत्व और संघ की सोच से जुड़े सामाजिक मुद्दे उठाते रहते हैं.