जानिए मौसम वैज्ञानिक बारिश आंधी का कैसे लगाते हैं अनुमान, एक गुब्बारा और 60 सेकेंड का खेल
वैज्ञानिक कैसे पता लगा लेते हैं कि आज इन इलाकों में ब्रजपात होगी या गरज के साथ छींटे पड़ेंगे. 40-50 किमी की रफ्तार से चलेगी हवाएं, कई जगह गिर सकती है बिजली और उसके बाद फटाफट सूचना और अलर्ट जारी करते है. डॉप्लर रडार के जरिए मिलती है ये जानकारी.
Jaipur: India Meteorological Department : भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) कैसे पता लगा लेते है कि देश के इन इलाके में बारिश होगी या फिर गरज के साथ छींटे पडे़ंगे. राजस्थान के इन इलाकों में धूल भरी आंधी चलेगी या फिर झमाझम बारिश से मौसम गुलजार होगा. आखिर मौसम वैज्ञानिक किस यंत्र के जरिए पता लगा लेते हैं कि आज इन इलाकों में ब्रजपात होगी और उसके बाद फटाफट सूचना और अलर्ट जारी करते है.
मानसून और बारिश के दिनों में मौसम विभाग मौसम की जानकारी उपलब्ध कराते समय बताया जाता है कि पिछले 24 घंटे में कितनी बारिश हुई. सवाल यह है कि वैज्ञानिक कैसे पता लगा लेते हैं कि अपने शहर में कितनी बारिश हुई है. दूसरी बड़ी बात है कि क्या हम भी पता लगा सकते हैं कि अपनी कॉलोनी में कितनी बारिश हुई. आइए जानते हैं-
डॉप्लर रडार के जरिए मिलती है सटीक जानकारी
आमतौर पर लोग बता देते हैं कि सेटेलाइट के द्वारा बारिश का अनुमान लगाया जाता है. जी नहीं..सेटेलाइट के जरिए इमेज तो आ जाता है लेकिन इंटेंसिटी यानी तीव्रता का पता नहीं चलता कितनी तेज बारिश होगी. सेटेलाइट सिर्फ ये बता पाता है कि यहां -यहां बादल है या फिर इस गति से चल रहे है. ये तो पता लगा लेता है, लेकिन इंटेंसिटी का अनुमान लगाने के लिए भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) द्वारा भारत के अंदर अबतक 32 रडार है. जल्द ही इसकी संख्या को बढ़ाकर 55 किया जाएगा. इस रडार को डॉप्लर रडार कहा जाता है.
डॉप्लर रडार का एंटीना एक बड़े गुब्बारा की तरह दिखाई देता है
डॉप्लर रडार काफी ऊंचाई पर लगाया जाता है और इसका एंटीना एक बड़े गुब्बारा की तरह दिखाई देता है और यह रेडियो तरंगों या रडार बीम्स के इस्तेमाल से बारिश के साथ-साथ आंधी-तूफान, ओलावृष्टि और चक्रवाती तूफान की भी जानकारी देता है.
डॉप्लर रडार मौसम की अतिसूक्ष्म तरंगों को भी कैच कर लेता है. इसकी रेडियो तरंगें प्रकाश की गति जितनी तेज चलती हैं और जब वह बारिश या ओलावृष्टि जैसी किसी चीज टकराती हैं तो वापस रडार पर लौटती हैं. मौसम विज्ञानी इन तरंगों की तेजी और उनके लौटने में लगे समय का विशलेषण करते हैं और उसके आधार पर मौसम संबंधी भविष्यवाणी करते हैं.
देश भर में है 32 डॉप्लर रडार
भारत के पूर्वी किनारा यानी इस्टर्न कोस्ट में 8 रडार लगे हुए है, जबकि पश्चिमी तट पर चार रडार लगे है और शेष पूरे भारत के अंदर 20 रडार लगे हुए है.
दिल्ली-एनसीआर में लगेंगे चार नए डॉप्लर रडार
दिल्ली-एनसीआर में मौसम की सटीक भविष्यवाणी के लिए भी चार नए डॉप्लर रडार लगेंगे. वहीं देशभर में इंसेट 3 डी, 3 आर 3 एस उपग्रहों से भेजी गईं छाया चित्रों को प्राप्त करने के लिए नए स्टेशन स्थापित होंगे. साथ ही अति उच्च क्षमता वाले कम्प्यूटर खरीदे जाएंगे. रेडियो सैंडो स्टेशन की संख्या 75 की जाएगी. इन स्टेशनों से सुबह और शाम गुब्बारा नुमा उपकरण छोड़कर तापमान, वायु दाब, आद्रता, हवा की गति, हवा की दिशा, बादलों की ऊंचाई की जानकारी प्राप्त की जाती है.
इस डॉप्लर रडार की रेंजिंग खास प्रकार से तैयार की गई है. ये बादलों से ही रेडियो वेब को रिवर्स कर वापस भेज देता है. ये रिफ्लेक्ट होकर बदलों से वापस आ जाती है. रेन से भी रेडियो वेब वापस आ जाती है. इसी से अंदाजा लगाया जाता है कि इन इलाकों में कम बारिश होगी या भीषण बारिश के संकेत है.
क्या होता है डॉप्लर इफेक्ट
डॉप्लर वेब में केवल 7 सेकेंड ही रेडियो वेब निकाली जाती है और 53 सेकेंड तक रेडियो वेब रिसिव किया जाता है. आइये बताते है डॉप्लर शब्द का मतलब क्या होता है. ये बिल्कुल एक इफेक्ट के तरह काम करता है. जिसे डॉप्लर इफेक्ट कहते है. उदाहरण के तौर पर इसे ऐसे समझे. कभी आपने स्टेशन पर खड़ा होकर दूर से आती ट्रेन के हॉर्न की आवाज सुनी होगी तो जैसे जैसे ट्रेन पास आती है तो उसके हॉर्न की आवाज पैनिक करता है. जब वो हमारे पास से गुजरती है तो बहुत तेज आवाज आती है. फिर जब ट्रेन हमसे दूर चली जाती है तो उसकी आवाज कम हो जाती है. इस प्रभाव को डॉप्लर इफेक्ट कहा जाता है, जो सापेक्षिक गति से नापा जाता है. बारिश को मापने में भी डॉप्लर रडार का उपयोग किया जाता है.
इसके अंतर्गत जो भी बारिश है इसकी कैलकुलेशन इस आधार पर की जाती है कि बारिश कितनी होगी, इसकी गति इतनी अधिक है तो बारिश भी ज्यादा होगी. यहां डॉप्लर और रडार का प्रयोग कर बारिश का अंदाजा लगाया जाता है. इसी रडार के द्वारा मानसून और बारिश का अनुमान लगाया जाता है.
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'रेनगेज' से मिलती है इलाके में कितनी हुई बारिश
किसी भी स्थान में वर्षा को मापने के लिए 'रेनगेज' या "वर्षा मापन यंत्र" का प्रयोग किया जाता है. यह यंत्र सामान्य तौर पर ऊंचे और खुले स्थान पर लगाया जाता है. इसके लिए ऐसा स्थान चुना जाता है जहां आसपास पेड़, ऊंची दीवारें ना हों. जिससे बारिश का पानी सीधे यंत्र में गिरे. मानसून के दिनों में दिन में दो बार ये माप होता है. सुबह 8 बजे और शाम 5 बजे.
Report-(Anuj Kumar)
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