Sheetla Mata: इस साल शीतला अष्टमी 2 अप्रैल को मनाई जाएगी. इस दिन शीतला देवी की पूजा होती है. शीतला माता को चेचक रोग की देवी के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म में इसे बसौड़ा भा कहा जाता है. शीतला अष्टमी पर माता की पूजा के लिए एक दिन पहले भोग तैयार कर लिया जाता है यानी माता को बासी खाने का भोग लगाया जाता है. 


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मान्यताओं के अनुसार, शीतला देवी की पूजा करने से चेचक रोग नहीं होता है. इसके अलावा छोटे बच्चों को चेचक रोग से बचाने के लिए शीतला देवी की पूजा की जाती है. ऐसे में जानिए शीतला देवी की कहानी. 



स्कंद पुराण में शीतला माता की कथा के अनुसार,  शीतला देवी का जन्म ब्रह्माजी से हुआ था. शीतला माता महादेव की अर्धांगिनी शक्ति का ही स्वरूप कहलाती हैं. पुरानी कथा के मुताबिक, देवलोक से माता शीतला अपने हाथ में दाल के दाने लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती पर राजा विराट के राज्य में रहने के लिए आई थीं, लेकिन उनको राजा विराट ने अपने राज्य में रहने नहीं दिया. 
 
राजा विराट के इस तरह के व्यवहार से माता शीतला गुस्सा हो गई. ऐसे में माता का क्रोध की आग से राजा की प्रजा के लोगों की त्वचा पर लाल रंग के दाने आ गए और लोगों की त्वचा जलने लगी. इसे देख राजा ने माता से माफी मांगी, जिसके बाद राजा विराट ने माता शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया. इसके बाद माता शीतला का गुस्सा शांत हुआ तभी से माता शीतला को बासी यानी ठंडे खाने का भोग लगाया जाता है, जो आज भी जारी है. 


स्कंद पुराण के मुताबिक, माता रानी का शीतला रूप सबसे अनोखा है. शीतला माता का वाहन गधा है और वह अपने एक हाथ में कलश, दाल के दाने, शीतल पानी और दूसरे हाथ में नीम के पत्ते और झाड़ू ले रखी हैं. कहते हैं कि चौसठ रोगों के देवता,  हैजे की माता, घेंटूकर्ण त्वचा रोग के देवता और  ज्वारासुर ज्वर का दैत्य सभी माता शीतला के सारथी हैं. कहा जाता है कि खुद भगवान शिव ने माता शीतला के पूजा स्तोत्र शीतलाष्टक की रचना की थी. मां का ये रूप बहुत अनूठा है.  


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