अपने बेटे के साथ ऑफिस पहुंची मेयर सौम्या गुर्जर, विशेष बच्चों के साथ मनाया बाल दिवस
Jaipur Greater Nigam : अपने बेटे के साथ मेयर सौम्या गुर्जर नगर निगम ऑफिस पहुंची. जहां विशेष बच्चों के साथ बाल दिवस मनाया.
Jaipur Greater Nigam : आज बाल दिवस है. स्कूलों से लेकर अलग-अलग जगह पर बाल दिवस बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. दूसरी तरफ जयपुर नगर निगम ग्रेटर में बाल दिवस पर एक अलग ही नजारा देखने को मिला. 2 दिन पहले नगर निगम ग्रेटर महापौर की कुर्सी संभालने के बाद डॉक्टर सौम्या गुजरने स्पेशल बच्चों के साथ बाल दिवस सेलिब्रेट किया. सौम्या अपने बेटे सोहम के साथ निगम मुख्यालय पहुंची और चिल्ड्रन डे का सिलीब्रेशन केक काटकर किया.
जयपुर नगर निगम ग्रेटर मुख्यालय में बाल दिवस पर स्पेशल बच्चो की चहलकदमी और उनके चेहरे पर खुशी देखने को मिली. नगर निगम ग्रेटर महापौर डॉ सौम्या गुर्जर की पहल पर आज चिल्ड्रन डे नगर निगम ग्रेटर मुख्यालय पर केक काटकर सेलिब्रेट हुआ. स्पेशल बच्चों के अलावा स्कूली बच्चों ने आज मेयर की कुर्सी पर बैठकर शहरी सरकार को चलाया. इस दौरान मौजूद मेयर, निगम चेयरमैन, पार्षदो को भी अपना बचपन याद आ गया. डॉ. सौम्या ने कहा कि एक बाग की खूबसूरती जैसे फूलों से होती है. वैसे ही इस दुनिया की खूबसूरती बच्चों से है. यह खूबसूरती तभी बरकरार रह सकती है. बच्चों को उनका बचपन और अधिकार सहज रूप से मिले.
उन्होंने कहा कि मैने जब दो साल पहले जब पदभार संभाला था तो विकास का प्लान भी तैयार किया था. कड़े संघर्ष के बाद तीसरी बार मेने फिर से कुर्सी संभाली है. प्लान लागू करने से पहले कुछ ना कुछ इस तरह से हो जाता कि वह काम नहीं हो पाता. सरकार को शायद काम करने वाले लोग पसंद नहीं है. उन्हें रबड़ स्टैंप या डमी लोग ही पसंद है इस अवसर पर बच्चों को गिफ्ट भी दिये गए. साथ में नगर निगम की कार्यप्रणाली के बारे में भी समझाया गया. किस तरह से नगर निगम में आने वाली हर शिकायत का समाधान किया जाता है.
मेयर डॉक्टर सौम्या ने कहा कि ''मेरा नाम जोकर'' फ़िल्म में सुप्रसिद्ध गीतकार मुकेश द्वारा गाये गाना याद आ गया ''जानें कहां गए वो दिन'' जो आज के बचपन पर पूरी तरह से फिट बैठता है. . आज बाल दिवस है. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिवस है. .बच्चों से बेहद लगाव के चलते उनके जन्म दिवस को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसी बहाने बच्चे चाचा नेहरू को याद कर अपने चाचा से भी भावनात्मक रूप से जुड़ सकेंगे. चूंकि आज के भागमभाग भरी जिंदगी में बचपन के स्वरूप में खासा बदलाव आ गया है.
आधुनिकता के इस अंधे दौर में बच्चे सजग, स्मार्ट और हाइटेक तो हो रहे हैं. किन्तु अपनी विरासत, सभ्यता व संस्कृति को भूलने लगे हैं. समाज में बढ़ रहे एकल परिवार की अवधारणा के चलते बच्चों का बचपन गुम हो रहा है. एकल परिवार के आदी हो चुके बच्चे दादा दादी, चाचा चाची, नाना नानी व मौसा मौसी जैसे रिश्तों से बस औपचारिकता ही निभाते हैं. ऐसी स्थिति में चाचा नेहरू के जन्म दिवस को बाल दिवस के रूप में मनाया जाना बच्चों के दिलो दिमाग में चाचा के प्रति अगाध स्नेह व प्रेम भाव को उभारकर उसे दर्शाने में मददगार बन सकता है. .बच्चे चाचा नेहरू को याद करते अनायास ही अपने चाचा को याद करेंगे.
बहरहाल, 14 नवंबर का दिन बाल दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता हैबचपन एक ऐसी उम्र होती है, जब बगैर किसी तनाव के मस्ती से आनंद लिया जाता है. नन्हे होंठों पर फूलों सी खिलती हंसी, वो मुस्कुराहट, वो शरारत, रूठना, मनाना, जिद पर अड़ जाना ये सब बचपन की पहचान होती है. .सच कहें तो बचपन ही वह वक्त होता है. हम दुनियादारी के झमेलों से दूर अपनी ही मस्ती में मस्त रहते है.
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