Jaipur: प्रदेश में 2 दिन तक अनुसूचित जाति के अधिकारों को लेकर राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग अध्यक्ष विजय सांपला ने समीक्षा की है. 2 दिन की समीक्षा के बाद एससी कमिशन ने इस बात को माना कि प्रदेश में लगभग सभी विभागों में अनुसूचित जाति को जो लाभ और अधिकार मिलना चाहिए था वह नहीं मिला है. हर विभाग में खामियां है. अध्यक्ष विजय सांपला ने कहा कि आयोग ने अपनी पूरी टीम के साथ 2 दिन तक जनप्रतिनिधियों, विभागीय अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों के साथ में समीक्षा बैठक की है. 


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2 दिन की समीक्षा बैठक के बाद यह निष्कर्ष सामने आया है कि अनुसूचित जाति को जो लाभ या उनके जो अधिकार हैं वह राजस्थान में नहीं मिल पा रहे हैं. स्कीम्स, अत्याचार निवारण संबधी एक्ट, केंद्र की योजना का लाभ इन सभी को नहीं मिला है. आयोग ने कहा कि मुख्य सचिव ने आश्वस्त किया है कि जो खामियां आयोग को मिली है, उन्हें अगले 3 महीने में दुरुस्त कर लिया जाएगा. 3 महीने बाद अगर आयोग प्रदेश में आकर समीक्षा करता है तो उन्हें यह कमियां नहीं मिलेगी. इस दौरान बैठक में मंत्री टीकाराम जूली, राजस्थान एससी आयोग अध्यक्ष खिलाड़ी लाल बैरवा सहित अधिकारी मौजूद रहे.


आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला ने कहा कि जब स्टेट एक है और स्टेट के लिए नियम कानून भी एक तरह के है, तो फिर कुछ जिलों में अनुसूचित जाति को उनके अधिकारों से क्यों छीना जा रहा है. विजय सांपला ने कहा कि समीक्षा में यह बात सामने आई कि टीएसपी एरिया यानी ट्राइबल एरिया में अनुसूचित जाति को जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है, जबकि कोई भी पॉलिसी बनती है, तो वह पूरे स्टेट के लिए बनती है. अलग जिले के लिए अलग पॉलिसी नहीं बनती है. 


ऐसे में सरकार टीएसपी क्षेत्र के अनुसूचित जाति के लोगों के साथ भेदभाव नहीं कर सकती. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर जनसंख्या के आधार पर आरक्षण दिया जाएगा, तो प्रदेश के कई जिले से जहां पर अनुसूचित जाति की आबादी 40 फीसदी से ज्यादा है, क्या उन जिलों में अलग से अनुसूचित जाति को ज्यादा आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है. राज्य एक है और पॉलिसी भी पूरे राज्य के लिए बनी है तो जिलों में बटवारा नहीं किया जा सकता.


जालौर में स्कूली बच्चे की पिटाई से मौत के मामले पर आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला ने कहा कि जालोर में अनुसूचित जाति के बच्चे की मौत हुई है. ये मामला एट्रोसिटी एक्ट का है, उसी के आधार पर इस पूरे मामले की जांच होनी चाहिए. अलग-अलग तरह की बात मुझसे भी कही जा रही है. कोई कह रहा है कि घड़े में पानी पीने की वजह से बच्चे की पिटाई हुई लेकिन हम यह कहते हैं कि घटना पानी पीने की वजह से हुई या किसी अन्य कारण से सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए कि वहां एक अनुसूचित जाति के बच्चे की मौत हुई है, किसी भी कानून में बच्चे को पीटने के अधिकार नहीं है.  


एक नहीं 6 अस्पताल बदले गए बच्चे के इलाज के लिए, यह साफ बताता है कि किस तरीके से बच्चे की पिटाई की गई. यह एक अनुसूचित जाति के बच्चे की मौत का मामला है और उसी के आधार पर पूरे मामले की जांच होनी चाहिए, ना कि इस बात पर कि उसने पानी घड़े से पिया या नहीं. आयोग अध्यक्ष ने कहा कि देश में आज भी अनुसूचित जाति के लोगों के साथ भेदभाव हो रहा है, छुआछूत अभी भी हो रही है. राजस्थान में भी छुआछूत के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. 


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कई जिलों में इस तरह की घटनाएं ज्यादा है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. साथ ही उन्होंने कहा कि स्कूलों में भी बच्चों के साथ इस तरह का भेदभाव नहीं हो इसके लिए एडवाइजरी जारी की गई है. टीचर्स को ट्रेनिंग के वक्त ही एक शपथ पत्र देना होगा, जिसमें कि वह इस बात को लेकर आश्वस्त करेगी कि स्कूल में सभी बच्चों को समानता के साथ व्यवहार करेगा. साथ ही उन्होंने कहा कि टीचर को पता होना चाहिए कि समरसता के खिलाफ प्रकरण हुआ तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी.


आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला ने कहा कि राजस्थान में अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज करने का कोई नया मॉडल नहीं है. देशभर में अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज करने का नियम बना हुआ है. यह हर व्यक्ति का कानूनी अधिकार है कि उसके साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ तो पुलिस थाने में अपना मुकदमा दर्ज करा सकता है. राजस्थान में हो सकता है कि सरकार ने 2018 के बाद एफआईआर दर्ज करने की अनिवार्यता की हो, लेकिन यह भी सच है कि प्रदेश में अनुसूचित जाति के ऊपर हुए अलग-अलग तरह के अत्याचार के 18000 से ज्यादा मामले पेंडिंग है. आंकड़े भी बताते हैं कि किस तरह से प्रदेश में अनुसूचित जाति को उनके अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं और उनका किस तरह से हनन हो रहा है.


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