Papmochani Ekadashi 2023 Date: चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है. पुराणों में कहा गया है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से जातक को हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है. ऐसे में जानें पापमोचनी एकादशी 17 या 18 मार्च को मनाई जाएगी. 


पापमोचनी एकादशी 2023 का समय (Papmochani Ekadashi 2023 Timing)


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होलिका दहन के बाद और चैत्र नवरात्रि की शुरुआत से पहले आने वाली एकादशी तिथि को पापमोचनी एकादशी मनाई जाती है. एकादशी तिथि 17 मार्च को दोपहर 12 बजकर 36 मिनट से शुरू होगी और 18 मार्च 2023 को सुबह 9 बजकर 43 मिनट पर समाप्त होगी.


कहा जाता है इस दिन व्रत करने वाले जातक अपने पापों का प्रायश्चित कर सकते हैं. जीवन में गलती से हुए अपराध के पापों से मुक्ति मिलती है. पापमोचनी एकादशी व्रत करने से संतान प्राप्ति के साथ संतान सुख मिलता है. व्रतों में सबसे अधिक महत्व एकादशी का होता है. इसके साथ ही सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. जानिए पापमोचनी एकादशी की तिथि,शुभ मुहूर्त और महत्व.


पापमोचनी एकादशी 2023 तिथि और शुभ मुहूर्त (Papmochani Ekadashi 2023 date and auspicious time)


पापमोचनी एकादशी तिथि- शनिवार, 18 मार्च 2023


एकादशी तिथि प्रारंभ: 17 मार्च 2023 दोपहर को 02 बजकर 06 मिनट से शुरू


एकादशी तिथि समाप्त: 18 मार्च 2023 को सुबह 11 बजकर 13 मिनट तक


व्रत पारण का समय: 19 मार्च सुबह 06 बजकर 25 मिनट से 08 बजकर 07 मिनट तक


पापमोचनी एकादशी 2023 का महत्व (Papmochani Ekadashi Significance)


पद्मपुराण में वर्णित कथाओं में एकादशी को भगवान श्रीहरि विष्णु का ही स्वरूप माना जाता है. माना जाता है कि इस दिन जातक के द्वारा व्रत रखने पर उन्हें सांसारिक सुख मिलता है. मृत्यु के बाद ऐसे जातक बैकुंठ धाम को जाता है. पापमोचनी एकादशी के दिन व्रत रखने से ब्रह्महत्या, सुवर्ण चोरी, सुरापान जैसे पापों से मुक्ति मिलती है. जातक ये व्रत रख अपने पापों का प्रायश्चित भी करते हैं.  ये व्रत दो प्रकार से रखा जाता है. निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत. इस दिन आप बिना कुछ खाए पीए व्रत रख सकते हैं या फिर जलके साथ फल लेकर भी व्रत रख सकते हैं. इस व्रत से एक दिन पहले सात्विक भोजन दिन में एक बार करना चाहिए.


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पापमोचनी एकादशी 2023 पूजा विधि


पापमोचनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें. भगवान विष्णु का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें. इसके बाद पूजा आरंभ करें. भगवान विष्णु को जल, पीला फूल, माला, पीला चंदन, अक्षत आदि चढ़ाएं. इसके बाद केला सहित अन्य भोग लगाएं और तुलसी दल चढ़ाएं. इसके बाद घी का दीपक और धूप जला लें. फिर मंत्र के साथ एकादशी व्रत कथा और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. इसके उपरांत विधिवत आरती कर भगवान विष्णु का ध्यान करें. इस दिन रात्रि में जागरण कर श्रीहरि की उपासना करने से पाप का प्रायश्चित कर सकते हैं. दिनभर एकादशी का व्रत रखें और द्वादशी के दिन पुन: पूजा करने के साथ ब्राह्मणों को दान देने के बाद व्रत खोल लें.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)