Papamochani Ekadashi 2023: पाप एक प्रकार की जीवन में गलतियां है जिसके लिए हमें दंड भोगना होता है. ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता हैं अगर पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखें.
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Papamochani Ekadashi 2023: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत महत्वपूर्ण स्थान है. हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है. इस साल 18 मार्च शनिवार के दिन पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा. प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं. जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है. हिन्दू धर्म में कहा गया है कि संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है जिससे जाने अनजाने पाप नहीं हुआ हो. पाप एक प्रकार की जीवन में गलतियां है जिसके लिए हमें दंड भोगना होता है. ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता हैं अगर पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखें.
सभी धर्मों में पाप-पुण्य का महत्व है. किसी के द्वारा किए गए सही और गलत कामों को पाप-पुण्य में बांटा जाता है. अनजाने में की गई गलतियों की सजा भले न मिले पर उसके परिणाम जरूर भुगतने पड़ते हैं. इसलिए हर धर्म में गलती होने पर उसके पश्चाताप के तरीके को सुझाया गया है. पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से सहस्त्र गौ दान अर्थात 1000 गौदान का पुण्य फल प्राप्त होता है.
प्राचीन काल में अपने किसी पाप का प्रायश्चित करने के लिए देवता, मनुष्य या भगवान अपने अपने तरीके से प्रायश्चित करते थे. जैसे त्रेता युग में भगवान राम ने रावण का वध किया, जो सभी वेद शास्त्रों का ज्ञाता होने के साथ-साथ ब्राह्मण भी था. इस कारण उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लगा था. इसके उपरांत उन्होंने कपाल मोचन तीर्थ में स्नान और तप किया था जिसके चलते उन्होंने ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति पाई थी.
कथा के अनुसार, एक बार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी वन में घोर तपस्या में लीन थे. तभी उस समय मंजुघोषा नाम की अप्सरा वहां से गुजर रही थी. तभी उस अप्सरा की नजर मेधावी पर पड़ी और वह मेधावी पर मोहित हो गईं. इसके बाद अप्सरा ने मेधावी को अपनी ओर रिझाने के लिए कई प्रयास कर उनकी तपस्या भंग करने लगी.
मंजुघोषा को ऐसा करते देख कामदेव भी उनकी तपस्या को भंग करने लिए मदद में जुट गये. इसके बाद मेधावी मंजुघोषा की तरफ आकर्षित होकर भगवान शिव की तपस्या करना ही भूल गए. समय बीतने के बाद मेधावी को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने मंजुघोषा को दोषी मानते हुए उन्हें पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया.
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अप्सरा ने अपने द्वारा की गई गलती की क्षमा मांगी. अप्सरा की क्षमा याचना सुनकर मेधावी ने मंजुघोषा को चैत्र मास की पापमोचनी एकादशी के बारे में बताया. मंजुघोषा ने मेधावी के कहे अनुसार विधिपूर्वक पापमोचनी एकादशी का व्रत किया. पापमोचनी एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से उसे सभी पापों से मुक्ति मिल गई. इस व्रत के प्रभाव से मंजुघोषा फिर से अप्सरा बन गई और स्वर्ग में वापस चली गई. मंजुघोषा के बाद मेधावी ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया और अपने पापों को दूर कर अपना खोया हुआ तेज और सौंदर्य को प्राप्त किया था.
पिछले जन्मों के पाप और पुण्य भी हमारे अंतर्मन में संग्रहित रहते हैं. जिस प्रकार सूर्य कोहरे को हटा देता है और बर्फ को पिघला देता है, उसी प्रकार श्रीहरि की भक्ति हमारे अंतर्मन से न केवल अनावश्यक विचारों को नष्ट करती है, अपितु पापों को भी नष्ट करती है. वास्तव में जब हम भक्तिपूर्वक उनका नामजप करते हैं, तब पाप करने की इच्छा ही नष्ट हो जाती है.
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् ।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥