1 प्रतिशत से कम मतदाता भी बदल देते हैं राजस्थान में सरकार, जानिए कितने प्रतिशत मत प्राप्त करने पर स्पष्ट बहुमत
राजस्थान न्यूज: यू तों प्रदेश में 1952 के पहले विधानसभा चुनावों से लेकर 1977 तक कांग्रेस एक बड़े स्थायी दल के रूप में रहा है लेकिन 1977 में पहली बार पूरे देश के साथ राजस्थान में भी कांग्रेस ने जनता का विश्वास खो दिया था.
राजस्थान चुनाव: प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा कांग्रेस के साथ ही सभी राजनीतिक दल जोर आजमाइश में जुट गये है लेकिन क्या आप जानते है प्रदेश की राजनीति में मतदान का प्रतिशत 60 रहे या 70 से भी ऊपर लेकिन स्पष्ट बहुमत उसी दल को मिलता है जिसके पास कम से कम 41 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हो.
इसके साथ ही एक अजीब बात ये भी है कि 39 प्रतिशत मत प्राप्त करने वाला दल सत्ता की तरफ बढ़ तो जाता है लेकिन बहुमत नहीं ला पाता लेकिन जब भी किसी दल ने 39 प्रतिशत का आंकड़ा थोड़ा सा भी पार कर आगे निकला है भले ही ये प्रतिशत .20 से लेकर .30 का ही क्यो ना हो वो सरकार बनाने में कामयाब रहा है.
राजस्थान विधानसभा चुनावों का एक बड़ा रोचक इतिहास
31 प्रतिशत वोटर रहा है कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक
1952 से लेकर अब तक इससे कम वोट नहीं मिले कांग्रेस को
1977 को सबसे मुश्किल वक्त में भी उसे मिले 31.5 प्रतिशत वोट
2013 में 21 सीटों के बावजूद कांग्रेस को मिले 33 प्रतिशत वोट
39 प्रतिशत मत प्राप्त करने के बावजूद नहीं मिलता बहुमत
लेकिन 39 प्रतिशत से कुछ आगे बढते ही हो जाता है कायापलट
भले ही ये प्रतिशत .20 से लेकर .30 का ही क्यो ना हो...
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिले थे 39.30% वोट
100 सीटों पर जीत हासिल कर गहलोत ने बनायी थी सरकार
यू तों प्रदेश में 1952 के पहले विधानसभा चुनावों से लेकर 1977 तक कांग्रेस एक बड़े स्थायी दल के रूप में रहा है लेकिन 1977 में पहली बार पूरे देश के साथ राजस्थान में भी कांग्रेस ने जनता का विश्वास खो दिया था.इस मुश्किल वक्त में भी कांग्रेस ने अपने खाते में 31 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त किये थे. ये अलग बात है 31 प्रतिशत मत के साथ कांग्रेस सिर्फ 41 सीटें ही जीत पाई. दूसरी तरफ जनता पार्टी ने रिकॉर्ड 51 प्रतिशत मत लेकर 151 सीटें जीतकर बहुमत में आई थी. तो वहीं 2013 में कांग्रेस को भले ही मात्र 21 सीटें मिली लेकिन उसका वोट प्रतिशत फिर भी 33 प्रतिशत रहा है.
33 प्रतिशत रहा है भाजपा का परंपरागत वोट बैंक
1989 में स्थापना के बाद से ही रहा है ये वोट बैंक
1990, 2003 और 2013 में मिला है पूर्ण बहुमत
1990 में भाजपा को मिले थे कुल मतों के 46.90 प्रतिशत मत
140 सीटें जीतकर भैरोंसिंह शेखावत ने बनायी थी सरकार
2003 में 39.20 प्रतिशत मत से ही भाजपा को मिली 120 सीट
2013 में एक बार फिर भाजपा ने प्राप्त किये 45 प्रतिशत मत
वसुंधरा राजे ने 163 सीटें जीतकर बनायी थी भाजपा की सरकार
वर्ष भाजपा/जनता दल सीट कांग्रेस सीट
1977 50.35 152 31.49 41
1980 35.61 47 42.96 133
1985 39.00 46 46.56 113
1990 46.90 140 33.60 50
1993 38.69 95 38.27 76
1998 33.91 32 44.95 156
2003 39.20 120 35.65 56
2008 34.27 77 37.08 96
2013 45.00 163 33.00 21
2018 38.77% 73 39.30% 100
1985 में 39 प्रतिशत के बाद भी भाजपा को सिर्फ 76 सीटें मिली थी लेकिन 2003 में इसी भाजपा ने 39.20 प्रतिशत मतों से ही 120 सीटें प्राप्त कर बहुमत पा लिया था.2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 73 सीटों पर जीत मिली थी और उसका वोटिंग प्रतिशत 38.77% था. प्रदेश में मतों का प्रतिशत का पर एक नजर डाले तो साफ हो जाता है कि 32 प्रतिशत मत तो दोनों ही दलों का फिक्स वोट बैंक है. इसके बाद दोनों ही दलों की गिनती शुरू होती है. प्रदेश की जनता का मूड कभी भी एक जैसा लगातार नहीं रहा है.
विधानसभा चुनावों का इतिहास देखे तो साफ हो जाता है कि प्रदेश में जिस दल को 39 प्रतिशत वोट मिलते है वो बहुमत की तरफ बढ़ता है लेकिन इससे अधिक मिलने पर वो सरकार बना लेती है. लेकिन इसमें भी अलग वर्ष 2003 में हुए विधानसभा चुनाव एक अपवाद रहा है. जब 39.20 प्रतिशत मतों के साथ ही भाजपा ने 120 सीटें जीतकर बहुमत में आई थी.
40 प्रतिशत से अधिक मत उसी की बनी सरकार
वर्ष प्रतिशत पार्टी सीट
1977 50.35 जनता दल 152
1980 42.96 कांग्रेस 133
1985 46.57 कांग्रेस 113
1990 46.90 भाजपा 140
1998 44.95 कांग्रेस 156
2013 45.00 भाजपा 163
खास बात ये भी है कि 40 प्रतिशत मत के करीब पहुंचने वाला दल जोड़ तोड़ से सरकार तो बनाने में कामयाब रहे है लेकिन बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता है. 1993 में 38.69 प्रतिशत मत के साथ भाजपा को 95 सीटें मिली थी. यही हाल 2018 के विधानसभा चुनावों के भी रहे जब कांग्रेस कुल 39.30% वोट हासिल कर 100 सीटों पर जीत दर्ज की, लेकिन सरकार बनाने के लिए उसे अन्य निर्दलियों का साथ लेना पड़ा.
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जहां 39.30 प्रतिशत वोट मिले थे. तो बीजेपी को 38.77 पर्सेंट वोट मिले थे. दोनों के बीच जीत हार का अंतर पिछली बार भी बहुत कम था. यानी की 2018 के विधानसभा चुनाव में मात्र .53 प्रतिशत मत ही कांग्रेस को सत्ता में लाने का कारण बने थे. महज 0.53 फीसदी कम वोट होने के बाद भी कांग्रेस 100 — बीजेपी 73 के बीच सीटों का अंतर 27 था.
बहरहाल अगर प्रदेश में मतों के प्रतिशत का एक औसत रूझान देखे तो साफ हो जाता है कि 31 —32 प्रतिशत मत तो भाजपा और कांग्रेस का स्थायी वोट बैंक है. 38 प्रतिशत मत प्राप्त करने के बाद भी सरकार नहीं बना पाते हैं. वहीं 39 से लेकर 41 प्रतिशत प्राप्त करने वाला दल अक्सर सत्ता में रहा है. वहीं 41 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करने वाले दल को रिकॉर्ड बहुमत मिला है.
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